पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गङ्गाल-गरन गङ्गाल (हिं. पु०) पानी रखनका बडा बरतन, कण्डाला न्तिके दिन बहुत यात्री यहां इकट्ठे होते हैं। इस स्थान गनाला (हिं पु०) गङ्गाका चढ़ाव पहुंचने तकको पर दान ध्यान करनेसे अनेक फल प्राप्त होते हैं। इसके जमीन, कछार । | निकट एक कपिलाश्रम है । (मनसा. १९४११, मालमत्र .. गङ्गालाभ ( स० पु. ) गङ्गाया लाभ: प्राशि, ६-तत् । ___मंगा पोर सागा मगम देखो। गङ्गाकी प्रालि, मृत्य , गङ्गागों पर ज्ञामपूर्वक प्राणत्याग | गङ्गासत (स• पु.) गङ्गायाः सुतः, ६-तत् । १ भीम। गङ्गालहरी ( म. स्त्री. ) १ गगाया लहरी, ६-तत् ।। २ कार्तिकेय।। गगाको तरंग, गंगाको लहर। २ प्रसिद्ध पण्डित जग | गङ्गास्रान (म'• क्लो० ) गङ्गायाम् मानम् ७-तत् । गङ्गामें बाथ तकपञ्चाननका बनायो गगास्तव । सान करनेकी क्रिया। गङ्गावश-गावंश देखो। गशास्त्रायो (...वि.) गङ्गायाम नाति सा-णिनि । गङ्गावतार (म पु० )गगाया अवतार: ब्रह्मलोकाद भूमौ जो मनुष्य गंगासान करता है, गंगास्नान करनेवाला। पतनमत्र बहुव्री०। १ तीर्थ विशेष, गगाहार । गगाया गङ्गाह्रद ( म० पु० ) गंगाया, इद इव। १ भारत- अवतारः, ६-तत् । २ ब्रह्मलोकसे पृथ्वी पर गंगाका प्रमिद स्वस्तिपुरका एक कूप । इस कूपमें सव दा तोन आगमन । कोड़ तीर्थ अवस्थान करते हैं। इसमें साम करनेसे ___“भगौरवास हट गमावतार: ( काटबरी स्वर्ग की प्राप्ति होती है। २ कोटितीथ के अन्तर्गत एक गङ्गावती-हैदराबाद में रायपुर जिलाके इमो नामके सालक तोर्थ ब्रह्मचर्य अवलम्बन कर इस तीर्थ में स्नान करने- का एक शहर । यह अक्षा० १५२६ उ. और देशा से राजसूय और अश्वमेध यज्ञका फल होता है। भारत ७६ ३२ पू० पर आनगुण्डिमे पांच मोल उत्तरमै अवस्थित ॥८५१० ) गङ्गायाजदः, २६-तत्। गंगाका कूप। है। शहरसे दो मील पूर्व तंगभद्रा नदी प्रवाहित है। गणिका (.म. स्त्री०) गङ्गा स्वार्थ कन्-टाए इत्वञ्च । गङ्गा। लोकसंख्या प्राय: ६२४५ है। यहां एक विद्यालय, एक | गङ्गिरु–युक्तप्रदेशमें मुजफ्फरनगर जिलाका एक नगर । अस्पताल, एक डाकघर और प्राचीन मन्दिर है । प्रति | यह अक्षा २८ १८६ उ. और देशा० ७०.१५ ३ पू० रविवारको वाजार लगता है। पर अवस्थित है। यह नगर अत्यन्त प्राचीन है। ईटोंके गगावाली-बम्बई प्रान्तीय उत्तर कनाड़ा जिल्लाको | बने हुए घरीका भग्नावशेष अवतक भी पड़ा हमा है। मगावाली नदीका मुहानाति एक बन्दर । यह अक्षा० नगरके पूर्व हो कर एक नहर गई है। यहांको जनसंख्या १४.२६ उ० और देशा० ७४ २१ पू० पर अवस्थित प्राय: ६ हजार है। और अनकोलसे ५ मोल उत्तरमें पड़ता है। यहांको गङ्गः क ( स० पु० ) क गूक पृषोदरादिवत् निपातने साधु । लोकसंख्या लगभग १००. है। प्रतिवर्ष इस बदरसे धान्यविशेष, कौनो धान । (सात सय १०:) २००००, रु.की चीजें दूर दूर देशमें भेजो खाती गङ्गटी ( हिं० स्त्री०) दवा काममें लानको एक बूटी। और ४००० रुपयेकी चीजे यहां उतरती हैं। यहां एक एमके सेवन करनेसे फोड़ा गल जाती है और मल मूत्र सुन्दर मन्दिर है जिसमें शिवकी स्त्री गगाज़ीकी मूर्ति प्रामानोस उतरता है। स्थापित है प्रतिवर्ष आश्विन महीन्की अष्टमी तिथि, गरन ( हि स्त्री० ) औषविशेष । इस दवाईके पौधेका भिव भिब जगह मनुष्य मदिरके मामनको नदी में प्राकार सहदेई पौधेकै जैसा होता है। सिर्फ दोनोंम: सान करने के लिये पाते हैं। मंदिरके पासही कामबर इतना ही विभिपता है कि गङ्गरनके पर्स बहुत मोठे नामक एक लिङ्ग है जो विखकर्मासे स्थापित हा और दो अनीवाले होते हैं। इसका फ ल गुलाबी रंगका कहा जाता है। होता है और फल भी सहदेईके फलसे कुछ बड़ा होता गङ्गासागर (सं. पु०) गणग्या सम्मतः सागरः मध्यप० । है। इसके फल पकने पर पांच हिस्सोंमें बट आते। मह स्थान जहा. गङ्गा सागरसे मिलती है। पौष संका- इसका पौधा मूवमच्छ, सत और धोणरोग, खुजली, कुछ