पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१७४

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१०२ गदाधरमित्र-गदिम खेजस्तो गदाधर इससे कुछ भी निरुत्साह न हुए । गदामुद्रा ( स० स्त्री० ) विष्ण पूजाका अङ्गमुद्राविशेष उन्होंने हरिरामकी पाठशाला परित्याग कर गङ्गास्नानके दोनों हाथोंको परस्पर मिला कर बंगुली आवद्ध करनी पथ पर एक स्वतन्त्र चतुष्याठी और उमरू मन्लग्न गक पड़ती है और दोनों अंगुष्ठ तथा दोनों मध्यमाको फूलबागान बनाया । उनके फ लबागान लगार्नका यह मलग्न करके प्रसारित करे इमोको गदामुद्रा कहते हैं। उद्देश्य था कि पण्डितगण पूजाके लिये फ ल तोड़ने यहां गदाम्बर ( म० पु०) मेघ, बादल . प्रायः प्राया कामे और उन्हींसे शास्त्रालाप करके अपना गदाराप्ति (स० प्र०) गदस्य अराति:, ६ तत्। ओषध, एक पांडित्य प्रचार करनेमें समर्थ होंगे। अपनी जन्मभूमि दवा। नक्ष्मोचापडासे थोड विद्यार्थी मगर्निकै निये आदमो गदालोल्न ( स० क्ली० ) गयातीर्थस्थ एक तीर्थ । विष्ण मजा । तब तक य फलबागानम 46 का फल प्रक्षा। भगवान्न हातरक्षका मार कर जस स्थान पर गदा साफ को ही लक्ष्य कर पढ़ाने लगे। अध्यापक और बहुतमे किया था वह स्थान गदालोलसे मशहर है। (गयामाहात्मा) छात्र फल तोड़नेके लिये अाने लग गदाधरको अध्या- गदावसान (म लो० ) गदाया जरामन्धत्यक्तगदागतर- पनाप्रणानी और व्याख्या सन कर वं मनही मन उनकी वमानमत्र, बबी० । मथुराके निकटस्थ एक स्थान । श्री- प्रश'मा करते थे । छात्रगण एकान्तमं आकर उनसे नाना । क. 'पणचन्द्रन कमको माग था। इम पर *मके श्वशुर विषयमें अपना अपना मन्देह दूर करते थे और कुछ जरामन्धने जामाटहत्यासे दुःखित हो यदुनन्दनको उनकी बनाई वाख्याको नकल करने लगे । उम ममय महार करने के अभिप्रायसे एक गदाको निन्यानवे (८८) नवहीपर्क सुप्रमिड नैयायिक जगदीश तर्कालङ्कारको बार घुमाकर गिरिव्रजमे मथ ग पर निक्षेप किया था। पा प्रत्यको प्रशंमा बहुत दूर तक फैली हुई थी। इन्होंने गिरिव्रजसे मथ रा १०० योजनकी दूरी पर है। इस लिये एकदिन गदाधरके बौद्धाधिकारदोधितिको टोका पढ़ कर गदा मथ रा तक नहीं पहुंच सकी। ८. योजन आकर कहा कि इम टोकाको पढ़ कर में निखय नहीं कर हो गदा पृथिवी पर गिर पड़ी। जिस स्थान पर गदा सकता कि कौन पाठ प्रकात है। इस तरह गदाधर की गिरी वही स्थान गदावसान कहलाता है । (भारत २।१८५०) ख्याति नवदीपमें परिवाराप्त हो गई और तभीसे मडके गदासन (म. ली.) आमनविशेष, एक प्रकारका भुड लड़के उनके पास पढ़ने के लिये आने लगे । गदाधर पासन । दोनों हाथों को ऊर्ध्व कर गदाकी नाई उपवेशन- भट्टाचार्य ने कई एक टीका प्रणयन को जो "गादाधरो। को गदासन कहते हैं। इस आमनसे मधि लाभ टीका" और "गदाधरीपञ्जिका"से मशहूर हैं। होती है। गदाधरमित्र-व्रजके एक हिन्दी कवि । १५२३ ई०को गदाह ( म.ली.) गद एव पाहा यस्य, बहुव्री० । कुष्ठ, इन्होंने जन्म लिया था। यह वह त अच्छी कविता कोढ़। करते थे- गदाद्वय ( ( स० को• ) कुष्ठ, कोढ़। "पाज नंदलाल मचन्द्र नयमन निरखि, परम माल भयो भवन मेरे गदाला (हिं पु०) हाथी पर कसनेका गद्दा । कोटि कन्दव लावल्य एकत. करि पारी तब ही नहि करे। गदावारण (हि.पु. ) एक प्रकारका प्राचीन बाजा .. सकल सुख सदन हर्षित गोपवर बदन प्रवल दल मदन जमा साधेरे। जिसमें सार लगा रहता था। कहा काठ कसे नारि सुधि बुध रहे गदाधर मिश्च गिरिधरम टेरे॥' गदित ( स. त्रि.) १ कथित, कहा हुआ । (क्लो०) गदान्तक (सं० पु०) गदासुरनिहन्ता विष्णु, गदासुर २ कथन, कहना। राक्षसके मारनेवाले विष्णु।। गदितोज्ज्वला ( म० स्त्री० ) छन्दविशेष, एक प्रकारका मदापाणि ( स० पु०) गदा पाणौ यस्य, बहवी.। छन्द । १ विष्णु। २ माटकादेवीभक्त राजा चापपाणीके पुत्र। गदिन् ( पु.) १ विष्ण । गदाभृत् (स.पु.)विणु। "विरोटिनगदिन' पनिषता (गीता)