पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१८०

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गन्धका-गन्धवारिका ( खुजली ), कुष्ठ और विसर्प रोग जाता रहता है। इसके गधकमे अनेक प्रयोजनीय द्रवा प्रस्तुत होते हैं। पहले सिवा यह अग्निमडिकर, पाचन, पामशोधक, निवारक, इस देशमें गधकसे दियाशलाई बनाई जाती रही। कमिनाशक, विषघ्न, पुत्रोत्पादक, इन्द्रियबलकारक | आजकल भी बह तसी दियाशलाईम गंधक दिया पौर वीर्यप्रद है। यह सुवण में भी अत्यन्त वोर्यकर जाता है। है। रसेन्द्रसारम ग्रहमें गधकशोधनको एक दूमरी पाखात्य मतानुसार गंधकसे अनेक औषध प्रस्तुत तरकीब भी लिखी हुई है-गधकच ण को भृङ्गराज | होस है। गधकका बाष्प लेनसे रक्त परिष्कार होता है। के रममे भिगा कर धूपमें सुखाना चाहिए। इस तरह | फुमफुसेको पौड़ा, हृदयमें ढंढ लग जाना यक्ष्मा, उदरामय, तीनवार करके इसे बैरको लकड़ीको आगमे गलाकर फोड़े, कृमिरोग, शोतला, बात, वहुमूत्र, हैजा और प्रामा- वस्त्रम ठके ह ए पात्रपूर्ण भृङ्गराजरममें ढाल देना शय प्रभृति रोगोंमे गधकका प्रयोग विशेष उपकारजनक चाहिये । इस तरह दो बार करके धोने और सुग्वानसे है। क्या होमियोपेथी क्या एलोप था दोनों तरहको मंधक शुद्ध हो जाता है। ( रमन्ट मारमय ) चिकित्सा-प्रणालियोंमें हो इसका प्रयोग हा करता है। ____ पाशात्य मतसे गधक शुद्ध हरिद्रावर्णमा है। कभी गन्धककज्जली (स'• स्त्री० ) औषधविशेष : रसन्ट्रसार कभी हरिद्रावर्ण के माथ अन्यान्य रङ्गांकी आभा रहती संग्रहके मतानुसार इमको प्रस्तुत प्रणाली कण्टकारी, है। यह टहनशील, कठिन, भङ्गप्रवण तथा स्वादहीन है। निसिन्दा और नाटाकरजर्क रमको एक पावर यह २२६ डिग्री उत्तापसे गन्न जाता है और ५६ रख कर उसमें गधक मिला देना चाहिये आर अ डिग्रो उत्तापसे जल जाता है । जलनके ममय इमसे एक अग्निमे उसको गरम करना उचित है। गंधकके जन्न प्रकारको गध और नोमवर्ण शिखा बाहर निकलती जाने पर उमी परिमाणका पारा डाल दें। जब पारा और है। अधिक उत्साप लगनसे शिखा वंतवण' धारण गधक मिल जाय तब उसे नीचे उतार कर घोटना करती है। गंधक खनिज है लेकिन धातु नहीं है। खानमें यह कभी चाहिये । एसा करनसे जब वह कज्जलवर्ण हो जाय तो स्वतन्त्र, कभी मीमा, दस्ता, लोहा, विष, पारद और ताम- वहा ओषध प्रस्तुत हो जायगी। उसकी मात्रा एक रत्ती के माथ मिम्ला हा पाया जाता है। मरमकि वीजमें भी बना कर जारा एक माषा और ममक एक माषा लकर गंधकका अंश है। डिम्बके श्वेत अंशमें और मनुष्य देहके पानके साथ सेवन करना चाहिये। इसके सेवनसे त्रिदोष- रक्कम गंधक देखा गया है। खनिज गधक ही विशेष जनित ज्वर नाश होता है। औषध खानक बाद गर्म कर वावहारमें प्रशस्त है। मिश्रित द्रवाम गंधक चुत्रा जल पीना हितकर है। (रसेन्द्र सारसह ) कर निकाला जाता है। प्राग्नीय पर्वतके पाव देशमें | गन्धकच णे (सं० क्लो०) गन्धकप्रधानं च, मध्यपदलो० । हो गधक अधिक परिमाणमें पाया जाता है। इसके | गंधप्रधान चणे, बारुद। अतिरिक्त यूगेपर्क स्पेन, मिमिली, स्वीजरलै गड, अमरिकाके गन्धकद्रावक ( मं० लो० ) औषधविशेष । गधद्रावक देखो। युक्तराज्य, एमौयाके पारम, नेपाल, ब्रह्मदेश, वलुचिस्तान, गन्धकन्द ( सं० पु०) गंधप्रधान: कन्दोऽस्य बहुव्री। अफगानिस्तान, उत्तर ब्रह्म, भारतके मरिपहाड, डरा- | कशेरुक्ष, केशर। रममावल खॉ, उदयपुर प्रभृति स्थानों में भी गधक पाया गन्धकलो (म'० स्त्री० ) चम्पककलो। जाता है। अभी दक्षिण भारतमें ममलोपत्तन, मलेम, | गन्धकम्त रिका (म. स्त्री० ) सुगधि द्रव्यविशेष, एक कदापा, त्रिवाड़, विचिनापल्लो ओर उत्तर प्रोट खुशबूदार चोज । प्रभृति स्थानों में बहुत कम गधक पाया जाता है। भारत | गन स्त्रो०) सुगधि द्रव्यविशेष । के प्रसवव । बहत गधक पाया जाता है । इम | गन्धकारिका ( स० स्त्री०) गध गधप्रधान वेशादिक तरह उष्णप्रस्रवण यवहोप, 'सलिविश प्रभृति कई एक करोति । स्व रिंधी, परग्रहस्थिता शिल्पनिपुणा स्वाधीना स्त्री, पराये घरमें रहनेवालो शिल्पकारिणी स्त्री।