पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२५२
गलसुद्रा-गलइस्त

गलम द्रा ( म० स्त्री० ) गन्नमदरो देग्यो। । रसाना, प्रतिजिहिका, माध्वी और अलिजिबिका है। गलमेखला ( मं. स्त्री० ) गलमा मेखला इव । १ कण्ठाभ- ( याज्ञवल्का) रणविशेष, गलसूत्र । इसे सूत्रवली भी कहते हैं । २ हार, २ तालगत रोगविशेष । जिसकी श्लेष्मा प्रकपित हो माला। कर गलेमें अवस्थित हो जाती है, शीघ्र ही उमके गालमें गलरोग ( म० पु. ) गलजातः रोगः । गलदेश जात रोग, शोथ हो कर गलशुण्डिका रोग उत्पन्न हो जाता है। गल व्याधि, गलका एक रोग । (मपन ।२५ प. गलव थ---उत्तरपश्चिमाञ्चलमें बुलन्दशहर जिलेका एक चिकित्सक गण शस्त्र द्वारा शुण्डिकाको सुगमतासे.. नगर । यह बुन्नन्दशहरमे ६ कोम उत्तर और मेरठसे १४ काट देते हैं। उसके बाद पीपर, मरीच, हरीतकी, वच, धान्य और यवानिका इन सभीका काथ और गम स्वद कोमकी दूरी पर अव स्थत है। अकवर बादशाहने मेयद जातिक श्रोड़ मनुष्योंका यहांको थोड़ी जमीन निष्कर देते हैं। दिवारात्र मुखमें जवायन रखी जाती है। कठ- दान दिया था, किन्तु १८५७ ई०को यहाँक अधिकारी देश मर्दन करना चाहिये, इमसे रोगो सुस्थ होता है। गण अंगरजीक विद्रोही हो गये हम लिये अंगरेज गवर्म- श्व त सरमां, वच, कुड़, हरिद्रा, अल और लवण एकत्र एटन उनमे वह स्थान ले लिया। यहां आजकल मैन्यका करके कण्ठ पर लेप देनेमे रोग आराम हो जाता है। वाम, मरकारी डाक बंगला, डाकघर और थाना है। इस बीमारीमें तेल तथा कड़ा पदार्थ सेवन नहीं करना प्रत्य क मप्ताहमें यहां एक बड़ी हाट लगती है। चाहिये. (हचिकित० ५४ १०) गलवाना (हिं पं० क्रि०) गलानका काम कराना, गला-| गलशुगड़ी (म स्त्री०)१ गले शुगडोव । गलशुटिका रो नमें लगाना। २ जोभर्क आकारका मांसका एक छोटा खः । य: गलविद्रधि ( म० पु. ) गलरोगभेद, गलेको एक प्रकारकी- प्राणियोंक गलेके भीतर जीभको जड़क पास रहता है। वोमारो। शब्द उच्चारण करने में यह बहुत सहायता देता है. गलरोहिणी ( मं• स्त्री० ) गले रोहिति रुह-णिनि ङोप् । गनश एका देखो। गलशोथ ( म० पु.) गलेका फलना। कण्ठगत रोगविशेष । वायु, पित्त और कफसे गलदेश गलमिर। ( हिं० स्त्री० ) कठश्री नामका एक आभूषण, वईि त हो कर रक्त और माम दूषित हो जात तथा समस्त यह गले में पहना जाता है। पंग पर अङ्क र उत्पन्न होते हैं इसोको गलरोहिणो कहते गलसुधा (हिं पु०) एक रोग जिसम गालक नीचेका हैं। इम रोगमे रोगो शीघ्र ही मर जाता है। गललग्न ( मंत्रि.) मले लग्नः । गलदेशमें लग्न, गले. भाग फ ल जाता है। गलसुई ( स. स्त्री० ) एक छोटा, गोल और कोमल मे लिपटना। तकिया, जो गालांकि नीचे रखा जाता है । मलवन ( मं० त्रि.) जिसन प्रणामादिके लिये अपने गले- गलस्तन ( म० पु०) १ गलगण्ड रोग । २ बकरेके दोनों में वस्त्र दिया हो। ओर लटकतो हुई स्तनाकार पतली थे लो, गलथन। गलवात ( म० वि० ) गले गलव्यापार प्रात: निरामयः गलम्तनी ( स. स्त्री०) गले स्तनोऽसमा पक्ष अलुक् । ममर्थः । यथष्ट भोजन योग्य निरामय व्यक्ति, अधिक बकरियोंकी एक जाति। भोजन खानवाना, नोरोग मनुष्य। (पवतन्त्र ) गलस्वर (हि. पु०) एक प्राचीन कालका वाजा, जो मलयत ( म० पु. ) गरो गरणं गिलनं मर्यादिभक्षण व्रत | मुखसे फक कर बजाया जाता था। मस्य । मयर, मोर। गलहत (हिं० पु० ) गले का रोग। इसमें गला फस गलशु 'गड़का (मं० स्त्री०) स्वल्पाशुण्डा कन् । ताल उध्व- जाता है, घा। स्थित सूक्ष्म जिवा, तालूक अपरको छोटी जीभ, गलेका गलहस्त ( स० पु. ) गले न्यस्तो हस्तः । गले पर हा. कावा। इसका पर्याय-सुधाना, घण्टिका, लम्बिका, देकर अलग कर देना, गलधक्का । (थगित)