पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२६१

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गवाशिरा-गणित २५४ गवाशिरा ( मं० त्रि.) गोभिः क्षीरः उदकर्वा आशिर गविनो (मं० स्त्री०) गया ममूहः खन्नादि इनि डोप् । गो. मिथितः । तौमिथित वा उदक मिश्रित, दूध या पानी | समूह, गायका झुण्ड । मिला हुआ। (ऋग्वं? 1.३०।१) गविपुत्र ( पु० ) वैश्रवण, ये पुन्नम्तको गोनाम्रो भार्याक गवाख ( मं० लो० ) गोश्च अश्वश्च तयोः समाहारः अवडा- | गर्भमे उत्पन्न हुए हैं। देशः । गो अश्वका म्याहार, गाय और वोड़े का ममूह। विष् (मंत्रि.) गां तिवाचमिच्छति इष-किप । गवावादि ( मं० ली.) पाणिनीय गणपाठोत समाहार- स्तोत्रादि वाक्य इच्छा। इन्दनिमित्तक शब्द पसूह । यथा---गवाश्व, गवाविक, 'गविष: स्तात वाचा छत: मन्त.।' (मायण) गड़क, अजाविक, अजेड़क, कुलवामन, कुजकिरात, | गविष ( मं० त्रि.) गामिच्छति इषक । गोर्क प्रति इका पुत्रपौत्र, श्वचगडान, रव मार, दामोमाणवक, शाटोपटीर. विशिष्ट, जो गाय पालनको इच्छा करता हो। ( मायण ) शाटोप्रच्छद, शाटीद, उष्ट्रावर, उष्ट्रशश, मूत्रपूरीष, गविष्टि ( मंत्रि०) इष-किन् । गवामिष्टिरव षोऽस्ति यवन्म दः, मांमशोजित, दमभर, दर्भपूतीक, अर्जु नशिरीष अस्य । गोका अन्वेषण करनेवाला, मवशोका खोजन. तृणोपन्न, दामोदाम, मुटीकुट, भागवतीभागवत। वाला। (ऋ३ १६६।१५) ( या :- हार न माध नि । मिजान्तकौमुदी) गविष्ठ ( म० त्रि.) गवि स्वर्ग भूमी वा तिष्ठति स्था-क गवाषिका ( मं० स्त्रो० ) लाक्षा, लाह। अलुक स० । १ स्वर्ग स्थित । २ भूमिस्थित । गवाम ( मं. पु० ) गोनाशक, कमाई, हत्याग। "मारजे, दिग पवाद गविली गां गमतदा (भागवत १.३२३५) गवाह ( फा० पु. ) वह मनुष्य जिमन किमी घटनाको (पु.) ३ देत्यविशेष, एक असरका नाम । माक्षात् देवा हो, मानो, माग्यो । "गविप्तश्च बनायुश्च दोनय दानवः।" (भारत १६५ १०) गवाहिक ( म० लो० ) अभिवं दिनभोजनाय पर्याय गविष्ठिर ( मं० पु० ) गवि वाचि च स्थिर: पत्व अलक अहम् ढक् आह्निकम्, गो: आह्निकम् ६ तत्। गार्क एक | ममामः । १ गोत्र प्रवत्तक एक ऋपिका नाम । दिनक भोजन निमित्त पर्याप्त घामादि, मवेशीका एक (टक ५।१।१२) दिनका चारा। गवी ( मं० स्त्री) गो डोप । गाभि, गौ, गाय । जो मनुष्य पापामक्ति परिहारपूर्वक एक माम गवा- गवीधुका ( म० स्त्रो. ) गवेधका पृषोदगदित्वात्, साधुः । हिक प्रदान तथा एकमतव्रत करता है, उसका धर्म धान्यविशेष, एक प्रकारका धान । ( तत्तिरीयम ५.४।७।९) दिनोदिन बढ़ता जाता है । ( भारत १२॥१३२ १० ) गवीश ( मं० पु० ) गवामोशः। १ गोस्वामी। २ विष्णु । गवाहो ( फा० स्त्री०) किमी मे मनुष्यका कथन जिमन अष, मांट । माक्षात् घटना देवो हो, माक्ष्य, माक्षीका प्रमाण । गवोश्वर ( मं. पु० ) गवामीश्वरः, तत। गोस्वामी । इम- गविजात मं० पु०) गवि गोनामिकायां पुलस्त्यभार्यायां वा का पर्याय-गोमान और गोमी है। जातः अलुकममामः । १ ऋषिविशेष, एक ऋषिका गर्व गित ( मं० ली. ) गवामिङ्गितम्, अवडादेशः वा गो नाम। "लव त्वन्ध बनन. 'थन्म नफनागम. । गणको शुभाशुभसूचक एक चष्टा । जहम्पतिम हिताम नषम्य मम स्व गायऽभवन् मुनि ॥" कहा है-गायों के दोन भावापन्न होनसे गजाआंका अम- (भारत १२१५१ प.) ङ्गल, पाट हारा भूमि कुट्टन करनमे गग, चन अथ पूर्ण २ वैश्रवण, ये भा पुलस्त्यको गौनाम्नी भार्याम होनमे स्वामीका मृत्य, अार भोत हो करक शब्द करनेसे उत्पत्र हैं। तस्करीका मृत्य होता है । यदि गोगण अकारण वैमा हो "पुलव) माम म्यामोद मानमादयित: सुप्तः । गवि गौस ज्ञायां भार्याधी ।" ( भारत नोन्न कंठ ३१९७१०) शब्द करता, तो अनर्थ पड़ता और गत्रिको वमो हो गविन ( मं० पु०) कोकड़ नामक मृगविशेष, एक प्रकार- दशा रहनसे अमङ्गल बढ़ता है ! फिर गोगणक मक्षिकाओं का हिरन। हारा व्याप्त अथवा कुक्करों द्वारा वेष्टित होनसे शीघ्र ही