पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२७६

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गाङ्गेयवंश विजयसेन, वृषध्वन, शक्ति, प्रगल्भ और फिर तत्पुत्र । ३२ उ० और देशा० ७४• २२ ३० पू०में गोकर्णनामक कोलाहल। इन्होंन गङ्गवाड़ी राज्यम कोलाहलपुर | प्रमिद्ध तोर्थ है ।* वहां गाकर्ण स्वामीको मूर्ति प्रति नाक नगर स्थापन कया। उत्कलराज नरसिंहदे वर्क ठित है। इन्हीं गोकर्णमे २ कोस उत्तर गंगावालि नढोके तौंना प्रस्थ ताम्रफनकीम निग्वा है कि उन्हीं कोलाहन्न तोर गगवालि नामक कोई बन्दर देख पड़ता है। वहाँ का नाम अनन्तवर्मा था। उनके पुत्र पौत्रोंने बहकाम्न इम ममय भी गंगादेवीका पुरातन मन्दिर विद्यमान है। कोलाहलपुरम गजत्व किया। सम्भवतः यह स्थान गगवशोयोंकी बहुत पुरानी राज- च डगनका उक ताम्रशासनपत्र देखते कोलाहलके धानी गंगवाड़ो है । गगावालि-प्रवाहित समुदय भूभाग पुत्रका नाम विरोचन था। फिर ८१ राजाओंके कोला पहले गंगवाड़ी राज्य जैसा प्रमिह था। फिर कोलाहल हलपरमें राजत्व करने पोछे उनके वंशम वीरसिंह नृपति- (अनन्तवर्मा ) के आधिपत्य काल यही क्षुद्र राज्य उत्त- ने जन्म लिया। वारमिह के कामार्णव, दानार्गव, गुणा- रको कोलहापुर, धारवाड और वे लगांवके कुछ अंश व, मानसिंह और वजहत पांच लड़के हुए । ज्य 8 पर्यन्त विम्त त हवा । मालम होता है कि उसी ममयसे कामागा व पिटव्यमा गङ्गवाडो राज्य प्रदान करके चागें | गङ्गवाडि गज्य ६ सहस्र ग्रामविशिष्ट जैसा गण्य हुआ। भाइयों के माथ अन्य राज्य जोतने चल दिये। गांगयराज १म अनन्तवर्मान अपने नाम पर जो कोला गणवाडो पार कोलाहलपुर कहां है? यह दोनों हलपुर नामक नगर बमाया, आजकल कोल हापुर कर स्थान बम्ब प्रन्सिमि हैं। कलभारिका शिला- | लाया है। वर्तमान कोल्हापुर नगरको अवस्था पर्यावक्षण फलक पढ़नसे अनुमित होता, 'कसो समय वर्तमान बेल- | करनेसे अतिशय पुगतन जैमा समझ पड़ता है। यहां गांव, धारबाड़ आर कोल्हापुर गङ्गवाड़ी देश अन्त- बहुत पुरान लाट अत्तरीमें खोदित शिलालिपि वद्य- गत था । नरसिंह देवक बर्ड तामफलकमें १म मान है महालक्ष्मीका मन्दिर अतिप्राचीन और प्रसिद्ध कामाण वकै प्रमग पर ममुद्रतटको गोकर्ण स्वातोका | है। करोग देखा । चोड़गग प्रभृतिक विम्त त ताम्र शास. उल्लख है। चौड़मङ्गक ताम्रशासनम लिपिबद्द हुआ है- नमें पहले ही लक्ष्मी देवोका म्तव दृष्ट होता है । मालूम महीपति कामार्णवन कलिङ्गाजयमे पहले गोका स्वामी- पड़ता है कि उक्त महालक्ष्मी ही गांगेय राजाओंकी दृष्ट की आराधना करके प्रसादमे साम्राज्य चित्ररूप वृषभ- देवी थौं। लाञ्छन पाया था। प्रत्नतत्त्वविद् राइस साहबके मतानुसार महिमुर सह्याद्रि पर्व त किनारे समुद्र तट पर अक्षा० १४ राज्यक पूर्वा'शमें अवस्थित कोलार जिला प्रधान नगर •नर मदहनामशान में 'मोहे-जय काभाग व भनि वर्तमान कोलार नामक स्थानमें प्राचीन कोलाहल- किन गःजय कनवाल, नर सहमति मिसन पर पविहित थे। क्या पुर था। बहोगमायोबके पित्य थे? परिमोथ वा + धारवादका पुगत्व देखने में समझ पड़ता कि १.५५०की गावाडी देगा चालकारा सोम थाके पुत्र पत्र विक्रमादित्यकामामन था । ई गाङ्गवंश दो शाखाओम विभक्त है, पूर्वीय और पश्चि- प्रान्तीय वेलगा। जिसके कवि याममे राममन्दिर के सम्मान किमो गिला- मोय। पश्चिमीय शाखाका विवरण इम तरह है-कहा कला परमादिस लि । उसमें निस्वा है कि गरमाही विषयक दन्तः | जाता है कि पूर्व कानको गगवंग राजा कदम्चगज गंत बादल मौके कमदवार ग्रामम गङ्गगज सेगा पेनिंदिन जिनन्द्र भवन मृगशवमसि पराजित किये गये थे। महाकूट-शिलालेख बनाया ।। राहगाको बहुत दिनसे गहरानापाको भूमि रहा ।। पढ़नसे जाना जाता है ये विपक्ष जनताकै अन्तगत .. सकताद लिf-मैं गगमकामा लेवर कशमका कथा भी उशिवित है। कादमय का वामान ममादलो और कुसवा सावि है। दांनी • सम्भवतः सक समुद्रतीरवा गांव के पास (म कामाय बने स्थान प. विसे प्रायः । कोस दचिपपस्थित है। गश्चम जिलेके मरम्हगिरि पर स्वतन्त्र गोकर्ण स्वामाको प्रतिष्ठा को गा । गांगयरामाचोंके साबशाम मैं क से लगो हुनायकी व सौहाम | कोकि चोड़ गग और पार गांगेय रामानों के ताशा सममें महेन्द्र गिरिस्थ | गोरखामोको तुति लिखी हुई महेन्द्र गिरि देख ।