पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२८३

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गायवंश २८१ वतः १म नरसिंहदेवने फिर राद और वग्न्द्राधिपतिका । और तीसरा- पराजय करके १२७४ ई. में नतन मंवत् चलाया था और "अट शारदा मशक वर्ष अपनी कोर्ति अक्षय करनको कोणाकका प्रमिड सूय: प्रदत्त हुआ है। मन्दिर बमाया था। मुसलमान एतिहामिक फरिश्तान प्रथम आर दूसरे ताम्रफलकमें स्वराजाका २१ उक्त घटना न बतला करके लिखा है कि ६७८ हिजरो ओर २२यां अङ्क पढ़नेमे पहले उनका अधिकार कास (१२८८ ई०) को तुगरीन्न खा जाजनगर आक्रमण करके जेमा समझ पड़ता हैं किन्तु पहले पहल चोडम्स विस्तर अर्थ और एक शत जस्तो जीत ले गये। बाध और तत्पुत्र कामाग वका अभिष कशक तथा प्रत्येक होता है कि उन्होंने पहली घटना दवा डालन के लिये राजाका अधिकारवर्ष स्पष्ट लिखा रहनन मान्नम पडया शेषोक्त विवरण कल्पना किया होगा। इन्होंन १६०८ है कि १२१० शकको २य नरमिहका राजधागडा ई०को अपना ग्रन्थ बनाया। किन्तु उनसे बहत पहले हुआ। मम्भवतः "स्वराजा" निर्देशक अङ्ग १म नमः २य नरमिंहदेव ताम्रशासनमें १म नरसिंह देवक समय ११८६ शकको चन्ना होगा। पूर्वांत गांवय गढ़ और वग्न्द्र श्राकान्त होनकी बात निरवी जा चुको शकर्क माथ इमका कोई भी मासादृश्य नहीं पाता। , थी। प्रतापवीर थीनरसिंहदेवकं बाद उनक औरत २य नरसिंह प्रथम ताम्रशासनमें नवराज्य विज्या और माल्यचन्द्रात्मजा मोतादेवाक गर्भजात भानव को कथा मिलती है। थोकूम स्वामी मन्दिरकं बरसे गजामे अभि ष क हुए । इन्होंने १० वर्षमात्र राजत्व । योदित शिनाफलकों में वह वोरारि-वीरवर श्रोति किया। इन्ही भानुदेवको मभामें माहित्य दर्पणकार दं व नाममे लिखे गये हैं। इन शिलाफलकोंमें देव विश्वनाथ पञ्चाननके पिता चन्द्रशेखर कवि रहते थे। ममयको लिपि १२७१ शकको अङ्गित हुई । साहिल- उनके पछि २य नसिंह व राजा हुए। इन्हाने । दपणकार सुप्रमिड विश्वनाथने इन्हीं नृसिंहदेवको सभाको भानुदेवक औरम और चालुक्य कुलममभूता जाकल- उज्ज्वल किया था। देबीके गर्भ मे जन्म लिया था। श्य नरमिहदेव ही २य नगमिहदेवक मरने पर ततपत्र चोडदे प्रदत्त २१ तामफलकयुक्त ३ प्रस्थ सुवृहत् तामशामन जात रय भानुदे व सिंहासन पर बैठे। उनका उपाधि मिले हैं- श्रोवोरादिवीरथी था । पुरोके ताम्रशासनमें कि इनमें पहला- है कि भानुदे वर्क साथ गयाम-उद्-दोनका घोर . "मतदशोत्तरवादशययवतमरे" "स्वराजास्य कविंशत्य नवमयानर- हुआ । गयाम-उद-दीनने स्वीय मुसलमान इतिहास विजयसमये " मिस वषो मोमवार।" लिखा है कि गयाम-उद-दीन तुगलकके पुत्र अलिफ हानि दूमरा-- "सन दयोत्तर बादशमनमिले गतवति शमवतसरे" "मेष का नया मो ओरंग जय करके जाजनगर घेरा था । . विवार "बरााम्य विमा २य भानुदे वर्क पीछे लक्ष्मीदेवीके गर्भजात तहान •श्य मरमिदं व मुहहन तामफनक में वह स्थान कापाको पके नाम ३य नृसिंहद वन राज्य पाया। इनका उपाधि प्रताप- वरित है। सम्भवत: या मन्दिर १२७४ का पारम्भ और १२७८ को पूर्ण प्रमा। वोर श्रोनरनारसिंह था। श्य नरमिहक औरम गंगाः पूर्गक शो कूम खामा मन्दिा १ ममि ग्वादिन तथा १९५३ शक म्बिका गभमे ३य भानुदेवने जन्म लिया । यह प्रताप और को प्रदत्त भानुदैवकै मन्त्रीका दानपच दृष्ट होता है ! 88 से अभमान लगाने | श्रोभानुदे व उपाधि ग्रहण करके पिटमिहामन पर बैठे। ११५५१ क अर्थात १२११०ी गा पाभीमके राणापमे उनक राजत्वकालको वंगाधिप हाजि इलियमने हाती पहले विशिमें भान देव नाम पर कोई गला राजत्व करते थे। भिषय पकड़न लिये जाजनगर अधिकार किया था। 'बजक को यह नसिहदेव पुत्र पून पिस भानदेवसे स्वतन्त्र थे। शानिंग और पगारसामने करमि' के पद कबीर भरावा के गगे नामिका नगर राधिपन वीर भानुदेव पर धावा मारा। उनके नाम लिखा है। परन्तु या नाम गर्गिय रामाधों के पदात किमो भी सामशा- मग्न पर चालुक्य कुलसम्म त वीराद वोगर्भ जात प्रिया सम में देख मही पता। पुत्र ४र्थ नरसिंहद वन राज्य लाभ किया । उका Vol. VI. 71