पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३०५

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गान्धार-गान्धारराज जलालाबाद, पूर्व में सिन्धनदो, उत्तरमें स्वात और स्वरान्तर्गत टतीय स्वर : मङ्गीतशास्त्रकै मतमें मयुरका बुनिका पहाड़ एव दक्षिणमें कालवाध है। शब्द षड़ ज, गौ का शब्द ऋषभ, छागका शब्द गान्धार गान्धार राज्य मर्वदा हिन्दु राजाओं के अधीन रहा। और क्रौञ्चका शब्द मध्यम माना गया है। भरतके मता. राजा अशोककै ममय यहां वौद्धधर्म प्रचार हुआ था । नुमार नाभिमे वायु उठ कर कण्ठ और मस्तक तक चली चीन-परिव्राजक के भ्रमण-वृत्तान्तमें लिखा है कि यहां गई है, इन मम्त स्थानोंसे नानाप्रकारको पवित्र गन्ध बडदेवने बोधिमत्वरूपमें एक व्यक्ति पर दया कर वहन करती है, इमलिए इसका नाम गान्धार पड़ा अपना नेत्र उमे प्रदान किया था। उनके म्मरणार्थ अशोक है। मङ्गोतदपणमें लिखा है कि यह स्वर देवकुलसे उत्पन्न राजाने गान्धारके नाना स्थानोंमें बौडम्त प निर्माण किये वैश्यजाति है। इसका वर्ग मवर्ग के मदृश पोत और थे । मंगयुनन अपने भ्रमण-वृत्तान्तमें लिखा है कि अशोक- उज्ज्वन्न है । करुणरममें इसका प्रयोग उत्तम है । ६ स्वर के पुत्र धर्म वड़ न यहाँक राजा रहे और यहांके मनुष्य ग्रामविशेष। इमका लक्षण यथा, -यदि मान्धार खर, हीनयान-वादमतावन्नम्बी कहलात थे । रि और मकी एक एक श्रुति, ध, ५ को एक थुति और खष्टीय प्रथम शताब्दीमें प्रवल पराक्रान्त महाराज निषाद ध और म को एक श्रुति आश्रय करे तो उसे गान्धार कनिष्क गान्धारमें राज्य करते थ, ये यहांक नाना स्थामां ग्राम कहते हैं। यह ग्राम स्वगलोकमें प्रयक्त होता है, में वाडकीर्ति स्थापन कर गये हैं। पृथिवीमें इमका प्रयोग नहीं होता। ७ रागविशेष । मुंगयुन ५२० ई०को गान्धारराज्यमें आकर अपन भ्रमण मङ्गीतदामोदर मतसे इसके मम्तकमें जटा, अङ्गमें भस्म वृत्तान्तमें लिखा है कि 'येथा। हण ) जातिन गान्धारके भूषण, पहिगवेमें गया वस्त्र, देह तीण और नयन मुद्रित बहुतम कानाको विध्वम कर डाला था और इसे अपन हैं। यह योगपट्टधागे और तपम्वी भैरवरागकं पुत्र हैं। अधिकाग्में लाकर लएलिको (मालवराजको ) प्रदान प्रातःकाल इमके गानका ममय है। (ली. )८ गन्धरम, किया । सुगयुनके ममयमें यहाँ मालवराज राजत्व गन्धवोल । ( पु०-स्त्री.) गान्धाररपत्य अत्र । ८ करते थे और पेशावर राजधानी रहो । मालवराज गान्धारिको सन्तान । (त्रि. ) गान्धार भवः, तस्य राजा वौद्धधर्म को नहीं मानते थे। वा कच्छादिभ्योऽगा । १० गान्धारदेशजात, गांधारदेशमें उत्पन्न होनेवाला। ( भारत १२८४ . ) युएनत्याङ्गन लिम्बा है कि गान्धार राज्यकी ।चीन | गान्धारक ( मं० त्रि०) १ गन्धारदेशकै मनुष्य । गन्धार- राजधानी पुष्कलावती थी। रामायणक मतसे भरतके देशस्थित। “गांधारकै: मतग: - (भारत १५०) पुत्र पुष्कलने अपने नाम पर यह नगर स्थापित किया । गान्धारपञ्चम ( मं० पु. ) रागविशेष, षादव नामका एक युएनत्यङ्ग के समयमें कपिश राजाक अधीनमें एक शासन- राग! करुणरम और अद्भुत हास्यमें उसका प्रयोग किया कर्ता आकर गान्धार देश पर राज्य करते थ । चीन- जाता है। यह मङ्गन्नजनक समझा जाता है । इस- परिव्राजकके वर्णनसे मान्न म पड़ता है कि इम राज्यमें | | का स्वरग्राम इस प्रकार है,-म प ध नि स ग म । इसमें नारायणदेव, अमङ्गवोधिमत्व, वसुबन्ध वोधिमत्व, धर्म ऋषभ नहीं होता; किन्तु प्रमन, मध्यम, अलङ्कार और त्रात, मनोहित और पार्श्व प्रभृति वोद्धशास्त्रकारोंका जन्म काकलोका होना जरूरी है। इमका अपर नाम केवल हुआ था। गान्धार भी है। मुसलमान जातिके अभ्य दयके ममय यहां बहुतमे गान्धारभैरव ( मं. पु० ) गगविशेष, एक गगका नाम । हिन्दुओंने इस्लामधर्म ग्रहण किया था और बहुतमे यह देवगाधारक मिलन पर होता है। यह प्रातःकाल- अपने धर्म की रक्षाक लिये भारतवर्ष की भाग आये। में गानमे अच्छा लगता है, तथा इसम मानो स्वर लगते तो . . . . सन्दहर, काबु, पेशावर, पकनावनो प्रति शब्द देखी। हैं। इसका स्वरग्राम यो है-धनि म रिग म प ध। , मान्धारोऽभिजनोऽस्य। ३ पित्रादिक्रमसे गान्धार• गान्ध रगज ( सं० पु. ) गधारस्य राजा समासान्स-टच । देशवामी सक्तिमात्र। ४ गान्धारदेश राजा। ५ मप्त- गांधारके राजा सुवल। (भारत १९१४)