पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३०८

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३०६ गाबिलगढ़-गाम्भारी गया था। फिर गोंड़ सरदारने उसे अधिकार किया । गाभिनो (हिं० स्त्री०) जिसके उदरमें सन्तान रह, गभिणी। १७२४ ई०को महाराष्ट्र मामन्त १म रघुजी भीमलेन उम- गाम ( हि • पु० ) ग्राम, गाँव। को निजामक हायसे निकाला था। १८३३ ई०को जन-गामचा ( फा० पु० ) घोड़ के पारका वह अंश जो सम ओर टखनक बीच में होता है। रल वेलेसली और कर्नन्न दौवेन्मन बरारराज रघुजी गामबक्कल-वम्बई ,प्रद शक कनाडा जलामें होनावर भीमलेके विरुद्ध गाविलगढ़ दुर्ग अवरोध करके गोले ओर कुमत ग्रामकी रहनवालो एक जाति । इनको बरमान लग। ३ दिन गोले चलन पर १५ दिसम्बरको किला अंगरेजीको मिला और १८५३ ई०को तोड़ा गया। मंख्या १०५७२ है जिनममे ५२८७ पुरुष और ५२८५ स्त्रियां हैं। ग्राम शब्द के अपभ्रशमे 'गाम' निकला बरारमें अमरावतो जिलेक अन्तर्गत मेलघाट तालक- के मातपुराका एक पहाड़ी दुग । यह अक्षा० २१ २२ है। गङ्गावली और शिरावती में भी इन लोगोंका वाम अधिक है। हालवक्की वकिलसे ये बहुत कुछ मिलत . और देशा० ७७ २३ पूर्क बोच पूरण और ताप्ती नदीक सङ्गमस्थान पर अवस्थित है। यह दुर्ग कब और जुलत हैं। ये काले, मजबूत और लम्ब होते हैं । स्त्रियां किमम निर्माण किया गया है इसका पूरा पता नहीं भी पुरुषकी नाई लम्बी और काली होती हैं, किन्तु वे लगता है। लेकिन फिरिस्ताके ग्रन्थमे जाना जाता है कुछ कुछ दुबली पतली हैं। इम गामवकलको मातृभाषा कि वाहमनीकं गजा अहमद शाह वलीन १४२८ ईमे कनाड़ी है। इनका प्रधान भोजन चाबन्न और मछली यह दुर्ग निर्माण किया था। थोड़े समय तक यह दुर्ग है। गौ और पालतू सूअर का मांस छोड कर ये प्रायः कुछ नष्टमा हो गया था, तब १४८८ ई में फत उल्लाह- मभी जानवरोंको शिकार कर खाते हैं । पुरुष और स्त्रियां चल्ली नामकी देशीय शराब अधिक पीती हैं। पुरुष इमादुल-मुल्कन इसे पुनार सुधारा। १५७७ ई०में जब भिन्न भिन्न अङ्ग पर तरह तरह कपडे पहनते हैं, और अहमदनगरके मुर्तजा निजाम शाहने सुना कि अकबर दक्षिण देश जोतन आ रहा है तो उसने फिरमे किलेको औरते 'हान्लवको' का नाई वस्त्र परिधान करती हैं, गले- मरम्मत की थी। १५८८ ईमें मैयद यूसुफ खॉ मश- में ये लाल और काले काँचकी माला धारण करती हैं। हदी और शेख अबुल फजन्नने यह दुर्ग अहमदनगरक ये परथमी, मितव्यया, गंभोर और व्यवस्थित होते हैं। निजामशाहसे छीन लिया था। खेती बारी करके ये अपनी जीविका निर्वाह करते हैं। महाराष्ट्रको दूमरी लड़ाई में यह दुर्ग राघोजी भीमला- गामिक ( मं० त्रि. ) गामिन् स्वार्थ कन् । गमनकारी, जानवाला । के हाथ आ गया था; किन्तु उसी माल १४.३ ई० के १५ अयोध्यागामिका षः पन्था: " (रामायण .१०६) दिसम्बर में जनरल अथरने इसे नष्टभ्रष्ट कर डाला था। । गामिन् (मंत्रि०) गम भविष्यति णिनि । २ भावि-गमन- किलामें एक सुन्दर मस्जिद आज तक विद्यमान है ।। कारक, जो यात्रा करेगा। मस्जिदके सामने सात गुम्बज लगे हुए हैं जिनमेंसे मध्य- "नायगामो न कि शब्द एव।" (आधु ४८) का गुम्बज मबसे बड़ा है। मस्जिदके शिल्प कार्य २ गमनकर्ता, जानवाला। देखने योग्य हैं। इयं हिरदगामिना।" ( ० २।३०) गाम ( हि पु० ) १ पशुओंका गर्भ । २ गाभा देरखो। ३ बर- गामिनो ( मं० स्त्री० ) पूर्व ममयको एक प्रकारको नाव । तमका साँचा। इसकी लम्बाई, चौडाई और ऊचाई क्रमश: ८६ हाथ, गाभा (हिं पु० ) १ नवीन पत्ता जो नरम और हलके १२ हाथ तथा हाथको रहती थी। यह नाव प्राय: गंगका होता है, कोपल। २ केले आदि पेड़के भीतर समुद्रमें चलती रही, इस नाव पर यात्रा करनमें बडो का भाग। ३ लिहाफ तथा तोसकके मधाको निकाली कठिनाईयां झेलनी पड़ती थीं। हुई पुरानी रूई, गुडड़ ! ४ कच्चा अनाज। गाम क ( म० त्रि० ) गमनशोल, गमनकारी जाने ।। मामिन ( हि ) गाभिनौ देखो। गाम्भारी ( स० स्त्री.) गम्भारोतक्ष।