पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४२५

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गुरुतण्ड ला-गुरुत्व ४२३ ककारलोपे साधुः। एक तरहका मयूर जो तिलमयूर कारण इम गुणका अनुमान कर लिया जाता है। कहलाता है। लौकिक व्यवहारमें इम गुणका रत्ती, मामा, तोला. मेर, गुरुतण्डु ला (सं० स्त्री०) उपसशाली, किसी किस्मका मन इत्यादि भिन्न नामोंमे उल्लेख किया जाता है। धान। (दिनकरो और कणादस व ) वल्लभाचार्यके मतमें स्पर्शविशेषको गुरुतम ( सं० त्रि०) अतिशय न गुरुः गुरु-तमप । १ अति हो गुरुत्व माना गया है। उनके मतसे इसका प्रत्यक्ष गुरु । माता पिता और प्राचार्य इन तीनीको गुरुतम होता है। कहते हैं। २ माता पिता प्रभृति गुरुजन । ३ अतिशय नैयायिक और वोषिकोंने मिर्फ जन्न मट्टीमें ही गुरुत्व गुरुत्वविशिष्ट, बहुत भारी । (पु०) ४ परमेश्वर, ईश्वर। गुण माना है। उनके मतसे-तेजः, वायु आदि अन्य . (भारत १३.१४४१३०) किमी भी पदार्थमें गुरुत्व गुण नहीं है। यह गुरुत्व गुरुतल्प (सं० पु०) गुरोः पितुस्तल्प भार्या यस्य, बह वी०। दो प्रकारका है-एक नित्य और दूसरा अनित्य । जल विमातृगामी, विमातासे गमन करनेवाला पुरुष । मनुने और मृत्तिकाके परमाणुओं में जो गुरुत्व है, वह नित्य है; ऐसे मनुष्यको महापातको बतलाया है | उमको या तो कभी भी उसका विनाश नहीं होता। इनके सिवा अन्य जलते हुऐ ता लोहपात्रमें मोकर अथवा ज्वलन लौह घणक आदिका गुरुत्व अनित्य है। इनकी उत्पत्ति मयो स्त्रीमूर्ति को आलिङ्गन कर मरजाना भला है । इस और नाश हुआ करता है। (भाषापरि ईद) प्रकारसे प्राणतयागसे भिन्न उसका और दूमरा कोई प्राय- मायमतमें अतिरिक्त गुणका उल्लेख न होने पर भी श्चित्त भी नहीं है। ( मन० ११४६) गुरुस्तल्पः, ६-तत्। मांख्याचार्य द्रव्यस्वरूपमें वैशेषिक मतमिड बहुतसे गुणी २ गुरुकी भार्या, गुरुको स्त्री। को मानते हैं। परन्तु द्रव्यके आश्रयके बिना गुणका अस्तित्व गुरुतल्पग (सं.) गरुतरूप देखा । नहीं इमलिये वैशेषिक मतमिड गुणोंको द्रव्यका गुरुतल्पिन् ( मं० पु. ) गुरोम्तल्प गम्यत्वे नास्त्यस्य गुरु- स्वरूप ही मानते हैं, उसे ट्रब्यके अतिरिक्त नहीं मानते । इनि। विमातगामी। इनके मतसे मूल कारण के अन्यतम तमः गुणका धर्म गुरुता (मं० स्त्रो० ) गुरोर्भावः गुरु-तल-टान । १ गुरुत्व, गुरुत्व है, सत्व वा रजोगुणमें गुरुत्व नहीं है। भारीपन । २ महत्त्व, बड़प्पन | ३ गुरुपन, गुरुका कर्तव्य, (साधकारिका) गुरुआई। ४ जाड़ा, अङ्गको जड़ता। मानामतमे ममस्त जन्य पदार्थ त्रिगुणमय अर्थात् गुरुताप ( मं० पु. ) अधिक गर्मी, कड़ी धप । सत्व, रजः और तमः गुणसे उत्पन्न हैं। महत्तत्त्व आदि गुरुताल ( मं० पु० ) गुरुरेव तालो यत्र, बहुव्री० ! ताल- सभी ट्रव्योम कारणरूपमे तमोगुण है। मांख्यमतको विशेष, जिसमें मिफ एक गुरु रहे। पर्यालोचना करनमे यह स्वीकार करना पड़ेगा कि, अन्य गुरुताई ( म० स्त्री० ) गरुला देना। ट्रष्य मात्रमें ही गुरुत्व है, तमोगुणके तारतम्यानुसार गुरुतोमर ( सं० पु.) एक तरहका छन्द, जो तोमरछन्दके किमी द्रव्यमें इमकी अधिकता और किमीमें नानतापाई अन्तमें दो मात्राए और अधिक रख देनेसे बन जाता है। जाती है। मिट्टो ओर पानीमें तमोगुणकै अंश अधिक गुरुत्व ( सं० क्ली० ) गुरोर्भावः गुरु-त्व। १ वैशेषिक मत- होने के कारण, इन दोनों का गुरुत्व सहज ही अनुभव सिद्ध चौबीम गुणों के अन्तर्गत एक गुण । भाषापरिच्छेद- होता है। परन्तु तेजः आदि पदामि तमोगुणके अंश के मतसे-पतनक्रियाका असमवायिकारण अर्थात् जिम बहुत थोड़े होते हैं, इमलिये उनके गुरुत्वका महजमें गुणके रहनसे द्रव्यका पतन होता है, उमको गुरुत्व कहते अनुभव नहीं होता। आधुनिक वैज्ञानिकोन बहुतसे हैं। यह गुण अप्रत्यक्ष है, किमी भी इन्द्रिय द्वारा इस- प्रमाणीं हारा वायभे गुरुत्व सिद्ध किया है। का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता। इस गुणवाले किसी द्रव्य- ____वाय पोर वायुमामय व देखा। को तराजके एक तरफ रखुनिसे उस पल्लाके झुक जानेके जैनदर्शनमें रूपी पदार्थ मात्रमें गुरुत्व माना है।