पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"गोमा सोरकूल या अगेणम् नदो सावन्तबाड़ो राज्यमे इस भूभाग दुर्ग के निकट मागरमें जा गिरी है। इनके अतिरिक्त को पृथक करतो है, दक्षिणमें उत्तर कनाड़ा जिला. हिन्दुओं के लिए पुण्यप्रद अघाशो, कुशवतो प्रभृति रुद्र पूर्व में पश्चिमघाटको श्रणी इम भूभागको बेलगाम नदियां भी यहां प्रवाहित हैं। उक्त नदियों में तोनानामक जिला और उत्तर कनाडासे पृथक करती हैं। तथा पश्चि- नाव जाती आतो है । इम राज्यमें अनेक नदियों के प्रवा- ममें अरबमागर है। भूपरिमाण १३०१ वर्गमोल है, हित होनेसे रेतीलो मट्टो जम गई है और स्थान स्थान पर इमके मध्य उत्तरदक्षिणमें इसकी लम्बाई २ मॉल और छोटा छोटा होप उत्पन होगया है। इम्क नाना स्थानी. पूर्व पश्चिममें चौडाई ४० मील है। लोकसंख्या प्रायः में अच्छे अच्छे बन्दर हैं । इमोलिय विदं शौय जहाज ५ लाख होगी। प्रानको विशेष सुविधा है। ___ गोआ पव तमय है पथिमके मिवा तोनों ओर यह राज्य स्वास्थ्यकर है। कभी कभी ज्वर, अजागा सह्याद्रि गोत्राको घेरा इंपा है। यहां मह्याट्रिक कई एक और अतिमार हुआ करता है। उच्च शृङ्ग हैं, जिनमेमे मतरोमहलमें शोनमागर ( समुद्र यहा मर्वत्र मोगनीपत्थर दं खा जाता है। जाम्बुनो, पृष्ठमे ३८२७ फुट ऊंचा), कालञ्चिमोली ( ३६३३ फुट) वना, मतगे और पर्ण ममें लोहा पाया जाता है। वागुइरिम ( ३५०० फुट ) और मोनि म चगौर ( ममुद्र यहां पोर्त्त गोज कर्तृक गोपा दो भागमें विभक्त हा पृष्ठमे ३००० फुट ऊंचा), पूर्व और पश्चिमकै पोरागमें मिड- है। एक पूर्व विजित ( Villha ) और दूमरा नवजित नाथ, चन्द्रवतोमें चन्द्रनाथ, अस्त्रागारमें कोणसिद्ध तथा ( Novas conqure ) है। महाभारत और हरवंशमें एम्बर्वाकम् नामक स्थानमें दुदियागार नामका शृङ्ग है। यह स्थान गोमन्त, सह्याट्रिखण्डमें गोमाञ्चन्न और गोगष्ट्र ____इम राज्यमें असंख्य नदी प्रवाहित हैं, जिनमें २ एवं कदम्व राजाओं के अनुशामनपत्रमें गोपराष्ट्र और नदी प्रधान हैं। मह्याद्रिसे निःसृत नीलकूल या अराण्ड म् गोपकपुगे नाममे वर्णित है । पूर्व तन अरब ग्रन्थकारन नदो पहले मावन्तवाड़ी होती हुई प्रायः १४ मील जा "मिन्दवुर” नामसे इसका उन्नं ग्व किया है। कर परम महलको उत्तर मीमामें और गोपाके भीतर हरिवंशके पढ़नसे जाना जाता है कि जगमन्धर्क भयमे प्रवाहित हो अरबमागरमें जा गिरो है। रामघाटसे भोत हो कृष्ण बलराम दाक्षिणात्यमें परशुरामक निकट नि:सृत कालवली या चपोरा नदो-वारदेश, विचोलिम्, पहुंच। दोनांन परशुरामस मह्याट्रिस्थ गोमन्त पथका सङ्कलिम्, पर्णम, मले म, रेवोरा, कोन्लवली और चापोरा पता लगा लिया। परशुराम रामकृष्णको गामन्तशेलको ग्राम होती हुई मागरमं गिरी है । पर्व रघाटसे निर्गत ले आये । रामकृष्णन गामन्त शैल पर चढ़ कर देखा कि माण्डवी नदीकी लम्बाई प्रायः ३८ मील है। यह नदो यहां विविध पनम, पानातक, श्राम, वेतम, तिनिश, गोपा राज्यके मध्य मभीसे प्रधान है। इसी तोर पर चन्दन, तमाल इलायचो, मरीच, पिप्पली, विचित्र इङ्गद, गोपाका समस्त प्राचोन और वर्तमान नगर अवस्थित हैं। मज, शाल, निम्ब, अर्जुन पाटलो, हिन्ताल, जम्बू, रुद्र, इसकी बहुतसो शाखायें मपुमा, तिविम्, अश्वनरा प्रभृति चम्पक, अशोक, विस्व. तिन्दुक, नानाप्रकारके स्थलज और ग्राम होकर प्रवाहित हैं। वागा और सिंकुरिम् नामक जलज कुसुम शोभा पा रहे हैं। कहीं दरोमुखभ्रष्ट नदो नदियां वारदेशसे उत्पन्न हैं। पहलो नदी १ मील ओर प्रपातको झर-झर ध्वनि ! नानाप्रकारक विहट दमरी ३१ मोल विस्तृत है। दिग निघाटमे उत्पव कूजन ! कहीं मानु ममुदाय गरिकादि धातु नि जुआरीनदीको लम्बाई प्रायः ३८. मोल है, यह मर्मगोपा दिव्याङ्ग, पापदेश नम्मरिणो, दरीमुखमें कानन, उपमागरमें जा गिरी है। इसकी भी कई एक शाखा । शुभ्रवर्ग मेघमाला विस्तारित है । शिखर अनकर चार प्रशाखा हैं। माल नामकीन्दो प्रायः १५ मोल औषधियाँस उद्दोन ओर वानप्रस्थों को आश्रयस्था विस्टत है, यह वेतुल दुर्ग के निकट समुद्रमें सिलो है। परशुराम यः रामकणको रख कर आप शूर्पारक सलपोणा मदो अम्ब घाटसे निकल सलपोणा नामक क्षुद्र गये । यह स्थान दोनों भाइयोंके लिए प्रोतिकर