पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गो-गापा का विनाश करने लिए दोड़ते हैं। उक्त देशके अमभ्य : कण्डु , मेत्ररो, किलाम गेग, प्रामवात, वस्ति, वेदना, मनुष्य अग्नि जला कर इन्ह किसो अपरिसर स्थानमें ले कुष्ठ, काम, श्वास, शोथ, कामला और पाण्ड रोगनाशक जाते और सबके एकत्र होने पर मार डालते हैं। है। मब तरहके मूत्रसे गौमूत्र हो अधिक गुणवि शष्ट है। __ लिथ येनिया विस्तृत अरण्यमें उडउरम नामको एक (भावप्रकाश व २ भा०) जाति देखी जाती है। चाल म् मैकेजि माहबन लिखा गम्यत ज्ञायत अनेन गम करण डो यहा शीघ्र गच्छति है कि इनका शरीर हाथोके मदृश वृहत्. चच उज्जल और गम कर्तरि डो। (प.) २ रश्मि, किरण, प्रकाश । रक्तवर्ण ग्रोवा छोटो होतो है और मोंग मोटे तथा कोटे ३ यन्त्र । ४ होरक, होग। गम्यत बहटानादिभिः गम् एनका सम्प गण शरीर कृष्णवण लोममे ढका रहता और कर्मगि हो। ५ स्वर्ग। गम्यत छापाट कर्मणा गात्रसे साधारणतः एक तरहका दुर्गन्ध निर्गत होता है। डो। चन्द्र, चांद। गच्छति प्राप्रोति भुवनं म्वतेजसा अमेरिका जगलों में पहले एक भो मवेशी नहीं। गम कर्तरि डो। ७ सूय ८ गोमधयन्त्र। ८. ऋषभ नामको था। पनवामी दूभरी जगहमे गोन्ना कर उमे जगन्नमें एक तरहको औषध । ( स्त्री० ) गम्यते विषयो यया गम कोड़ दिया करते । आजकल उनमे इतनी वंशवष्टि हो करण डो । १० चक्षु, प्रोग्य । ११ वाण, तौर । गम कर्मणि गई है कि एक पम्पाके वनमें ही लाव लाव गी देखे। डो। १२ दिक, दिशा। १३ वाक्य । गम्यतस्यां गम जाते हैं। शिकारीगण जगन्न जा दम गाको शिकार कर | अधिकरण डा १४ पृथिवी जमीन । १५ जल, पानो। १६ घर ले आते हैं। पशु, यथा बकरी, भैम, भेड़ो प्रभृति टुग्ध देनवाला पशु । वंद्यक मतकै अनुमार गोमांमका गुण-सुस्निग्ध, पित्त १७ माता । १८ पुलम्त्यका भार्याका नाम । इसका दूसरा और मडिकर, तहण, वन्नकर, पोनम और प्रदरना- नाम गविजाता था । गविनामा देखा। शक है । (भाव 17) गोदुग्धका गुण-पथ्य, अत्यन्त कचि १८ नवसंख्या, नौका अङ्ग । २० इन्द्रिय! ( पृ० क्ली० ) कर, स्वाद, स्निग्ध, पित्त और वातरोगनाशक, पवित्र । गम्यत सायत म्पर्शसुग्वमनन गम करण डो । २१ लोम, कान्ति, प्रज्ञा, अङ्गपुष्टि और वोय वृद्धि कर है। दधिका रोम । ( पु० ) २२ वृषराशि। २३ घोटक. घोड़ा। २४ गुण --अति पवित्र, शोत, स्निग्ध, दोपन, वलकर, मध र, गायक, गवैया, गानवाला। २५ प्रशमक । २६ भाकाश। प्रचि और वातरोगनाशक एव ग्राहो । नवनीत (मकवन) २७नंटो नामक शिवगण । (स्त्री० ) २८. विजनो। ३० का गुण शीतवण, वन्न, शुक्र, कफ, रुचि, सुख, कान्ति मरवतो। ३१ जिह्वा, जीभ । और पुष्टिकर, अतिमधुर, संग्राही, चक्षुका हितकर, व त. गोश्रय (वि.) गावो ऽग्रं यस्य, बहतो, मधिनिषेधः । मर्वाङ्गशूल, काम, श्रम और त्रिदोषनाशक है। इसका षनाशक है। इसका १जिम अग्रभागमें गो रहे जिमके आगेमें गाय हो। घृतका गुण-मुखप्रिय, वृद्धि, कान्ति, स्म ति, वल, मेधा (पु.) २ गोममूह, गायका झुण्ड । पुष्टि, अग्नि, शुक्र और शरीरको स्थ लता सुद्धिकर, वात, गोपजन (मं० त्रि०) प्रति चालयति अज ल्यु गवां अजन: नष्पा, श्रम और पित्तनाशक है। हव्यमें गौका घो थ ६.तत् । गोचानक । बहुगुणविशिष्ट है। राजनिवगट के मतसे प्रत्य षकालमें गार्ध ( मं० त्रि०) एक गोका मूल्य, एक गायका दाम । गोदुग्ध गुरु, विष्टम्भी और दुर्जर है। इसी कारण सूर्यो- गोअर्णम् ( मं० त्रि.) गावो ऽर्ण उदकमिव प्रवृद्धा यम्मिन् दयकै एक प्रहर पोछे टुग्ध ग्रहण करना अच्छा है। यह , बहुव्रो । जिममे जनको नाई गायको वृद्धि हो। पथा दीपन आर लघु है। दुमरा विवरण दुग्ध शब्दमें देखा। गोअश्व ( मं० लो० ) गोथ अश्वश्व, इन्दः । गो और अख, महा या पके आम माथ गोदग्धफन खानमे ग्रहणी रोग गाय और घोड़ा। दूर हो जाता है। गोखोव ( स० पु. ) मामभद। गोमूत्रका गुण-क्षार, कटु, तिक्त ओर कषायरस, गोपा-मन्नवार उपकूनम पोत गीज अधिक्कत एक भूभाग। तीक्षा, उशवीय, लघु, अग्निदोलिकारक, मेधाजनक, यह अक्षा. १४५३ तथा १५.४८ उ० ओर देशा०७३ पित्तहडिकर, कफ, वायु, शूल, गुल्म उदर, पानाह, . ४५ एव ८४४३ पू०के मध्य अवस्थित है। उत्तरसीमामें Vol. VI. 129