पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५३४

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गोचर रहने पर शवनाश तथा वृहस्पतिक रहनेमे मानमिक ये जन्म राशिक ग्यारहवें स्थानमें रहें तो मनुष्यके धन, पीड़ा उत्पन्न होती है। धान्य और मानकी वृद्धि होती है । ग्यारहवें स्थानमें रह चतुर्थ स्थानमें वहम्पतिक रहनेमे मनषार्म शास्त्रींक कर कोई भी ग्रह प्रशभ फल नहीं देता। विरुद्धम तौक्षावुद्धि पैदा होती है। रविक होनेसे महा वृहस्पति, रवि, शनि, राहु, मड़ल और चन्द्रके जन्म दःग्व, चन्द्र के रहनसे उदररोग, बधक ग्हर्नमे आरोग्यता, गशिम बारहवें स्थानमें जानेमे मनुषाके लिए वध और शुक्र रहनमे रोगका नःश, मङ्गलक हनिम शत्रु का भय । वन्धनका भय रहता है। बुध या शक्रके बारहवें स्थान • और शनिक रहनसे वित्तनाश होता है। में रहनेमे धैर्य की वृद्धि होती है। चन्द्र यदि जन्मराशिमे पञ्चम स्थानमें रहे तो दौर्भाग्य. किमी किमी ज्योतिषशास्त्रोंमें गोचरीका फल इम मङ्गल होनमे मानमिक उहग, शनि होनम नाना प्रकार प्रकार लिखा है,-रवि यदि जन्मराशिमें पचे तो मनुषा के दोषोंकी उत्पत्ति, रवि होनमे प्रिय व्यक्तिका विच्छंद, स्थानभ्रष्ट होता है। ऐसे हो हितोयस्थानमें रहनेसे भय, बुध होनेमे दौर्भाग्य और वृतमपतिक पञ्चम स्थानमें रह- तृतीय स्थानमें स्त्रीलाभ चतुर्थ में मानहानि, पञ्चममें देन्य, मे मनषाको सब विषयों की प्राप्ति होती है। षष्ठमें शत्रुनाश, मनममें अथ नाश, अष्टममें पीड़ा, नवम- जीत हैं। कारो वि ... बुध न. वध और शनि ग्रह र शान में कान्तिपुष्टि, दशममें कार्यको मिडि, ग्यारहवेमें सम्पत्ति रहें, तो बहुत धनधान्यादिको प्राति होती है। वहम्प वृद्धि और बारहवें स्थानमें रविक रहनेमे सम्पत्तिका नाश तिक कुठे स्थानमें रहनमे शत्र वृद्धि और मानसिक कष्ट हो कर मनुषा घोर विपत्तिमें पड़ जाता है। होता है तथा शुक्र रहे तो नाना प्रकारको शत्रु ता नष्ट .. जन्मराशिम चन्द्र के रहने से अथ नाभ, हितोयराशिमें हो जाती है। चन्द्रकं रहनेमे वित्तनाश, तृतीयमें द्रव्य नाभ, चतुथ में जन्मगशिको अपेक्षा मातवीं राशिमें चन्द्र रहे तो उदर पीड़ा, पञ्चममें काय हानि, छठे स्थान वित्तलाभ, स्त्रीलाभ, शनि रहे तो मानमिक उद्द ग, मङ्गल रहनसे मातवेंमें स्त्रीलाभ, आठवेमें मृत्यु , नोवेमं राजभय, दशमें धनक्षय, गृहम्पतिके रहनौ सम्पत्ति लाभ, शुक्रके रहनसे महासुख, ग्यारहवेमें धनको वृद्धि और बारहवें स्थानमें गेगोको वृद्धि और रविक रहनमे नाना प्रकारका अनिष्ट पहन रोग और धननय होता है। होता है। जन्मराशिमें मङ्गलके रहनसे शत्रुभय, द्वितीय स्थानमें मङ्गल यदि जन्मराशिमे अष्टम स्थानमं रह तो अग्नि- रहनमे धननाश, टतीयमें अर्थ लाभ, चोर्थमें शत्र भय, भय, बध रहे तो सुख, शनिम धन हरण, शक्रसे अर्थ लाभ, पांचवें में प्राणनाश, कठेमें वित्तलाभ, सातवे में शोक, रविसे मृत्य , वृहस्पतिम स्थानका नाश और चन्ट्रक आठवे में अस्त्राघात, नौवें में काय हानि, दशवे में शभ रहनमे नत्ररोग होता है। फल, ग्यारहव में भूमिलाभ और बारहवें स्थानमें रहनेसे जन्मराशिसे नौवं स्थानमं शनिक रहनसे अर्थ नाश, रोग, अर्थ नाश और अमङ्गल होता है। व धसे गेग, मङ्गल या शक्रस अर्थ लाभ, चन्द्रमै त्राम, जन्मराशिमें बुध रहनेसे वन्धन, हितोयमे धनलाभ, रविमे शोक और क्ले श तथा वहम्पतिक रहनमे सम्मान तोयमें धन और शत्रुको वृद्धि, चीथमें अर्थ लाभ, पांच- और पश आदिका लाभ होता है। में तङ्गी, छठे में अशुभ फल, सातवें में नाना तरहके रोग जन्मराशिसे दशवं स्थानमें बधके रहने मनमें और विपत्तियां, आठवें में धनलाभ, नौवें में अमाधा रोग, सुस्थता, रविसे इच्छानरूप कीर्ति, मङ्गलसे सम्पत्ति लाभ दम में शुभफल, ग्यारहवे' में अर्थ लाभ और बारहवें चन्द्र प्रधान पदको प्रालि, रविमे कार्य को मिडि, शुक्रमे म्यानमें जानेसे विसलाभ होता है। मित्रोक यशको वृद्धि और वृहम्पतिर्क रहनमे प्रीतिको जन्मगाशमें वृहस्पतिके रहनेसे भय, द्वितीय स्थानमें हानि होती है। वृहस्पतिके रहनेस अर्थ लाभ, तीसरेमें शारीरिक केश, रवि, चन्द्र, मङ्गल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और प्रानि--. चौथमें अर्थ नाश, पांचवे शुभ फल, छठे में अशुभफल,