पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५३५

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गोचर-गोच्छगल नातवमें राजपूजा, आठवम धननाश, नौवें में धन वृद्धि, दग रवि और मङ्गल प्रथम दशाओं में रह कर ही अपना वम प्रोतिनाश, ग्यारहवेमें धनलाभ और बारहवें रानमें मम्प गण फल दे देता है। हम मिवा दूसरे अंशों में सनमे शारीरिक और मानसिक पीडा होती है। रहते हुए कुछ कुछ फल होता रहता है । इमो प्रकार __शक यदि जन्मराशिमें रहे तो शत्र नाग, हितय शुक्र और वृहस्पति बीचके दशांशोंमें, बुध तीम अशर्मि, स्थानमें रहनसे अर्थ लाभ, तीग्रम शुभफन, चौयं में चन्द्र और शनि चम्म दशांशाम रहते हुए फल देते हैं । धनलाभ, पांचवेमें पुत्रलाभ, छठे में मात्र वृद्धि मानवमें । इम मिवा दूमरे अंगर्म रहते हुए थोड़ा फल देते हैं। शोक, अाठ में अथ नाम, नाव में वस्त्रों को प्राशि, दशवमें ग्रह यदि गोचरम विरुद्ध हो, तो शान्तिक लिए दान और शुभफन्न, ग्यारहवमें बहुतर धन का लाभ और बारहवें ग्रहपुरथरणादि करना पड़ता है। इममे फिर किसी स्थानमें रहनमे धनका आगमन होता है। तरह के अमङ्गलको सम्भावना नहीं रहता। शनि जन्मराशिम पचनसे वित्तनाश और मन्ताप, गोचरो (हि स्त्रो०) भिक्षावृत्ति, भीख मांगनका पशा द्वितीय स्थानमै चित्त में लश, तोमरमे शत्रनाश और वित्त ग चम ( मं० लो०) गवां चम ६ तत् । १ गाका चमड़ा। लाभ, चौथ में शत्रोंकी वृद्धि, पांचवें एव और भृत्यादिः तन्वमें लिखा है कि स्तम्भनकायमें गो चर्म पर बैठना का नाश कुठे में अर्थ लाभ, मातम अनिष्ट, आठवें में उचित है। २ पग्मिाणविशेष, एक नाव वृहस्पति शारीरिक पीडा, नौव में धनत्तय. दशमें मानमिक कंमतम मात हाथका एक दगड, तोम दगड का एक निव जमा ग्यारमें वित्तनाभ और वार में स्थान नि तेन एवं दग निवत नका एक गो चम अर्थात २१०० रहनसे निहायत अमङ्गन्न होता है। हाथ लम्बो और इतनो हो चौडी होती है। महाभारत जन्मगशिमें द्वितीय, पञ्चम, महाम, अष्टम, नवम, में लिखा है कि जो एक गोचमपरिमित भूमि दान करता शशिम गहरनम अथ का क्षय, शत्र का है उमका जान पार अजानक्कत ममम्त पाप विनष्ट हो भय, कार्य को हानि, रोग, अग्निभय और मृत्य हा जात हैं। (पनग मन० २ ० ) करती है। इनके अन्नावा दूसरे स्थानाम गहक रनमे गो गर्म कगटक ( म० ए० ) पर्यटक, औषध उपयोगो एक कोई अनिष्ट नहीं होता, वल्कि शुभफल हो होता है। तहका पौधा। जमरामि ग्यारहवीं, तोमरी, दमवीं वा कठो गाचम वमन (म० पु० ) गोचम वमन यस्य, बहुव्री । राशि केतु रहे तो मम्बान, भोग, राजपूजा, सम्व और महादेव शिव । ( भारत १११७४. लाभ होता है और आज्ञाकारी पुरुष वा स्त्रोसे ग.चारक ( मं० त्रि.) गां चाग्यति घामादि गो-चर-पिच मुखभोग और पुण्य सञ्चय होता है। । गव ल । गोरक्षक, गोको रक्षा या पालन पोषण करने गोचरके ग्रहांका फलाफलनिर्णय-रवि और मङ्गल ये वाला। दो ग्रह प्रवेश करते ममय फल देते हैं। वृहस्पति और गोचारण (मं० लो०) गवां चारणं, ६.तत् । गाका चगना, शुक ये दोनों मध्य ममयम, गनि ओर चन्द्र आग्विरमें , गोको ग्विनानको क्रिया तथा बुध ग्रह हरवक्त अपना फन्न देता रहता है। गोचाग्नि ( म. वि. ) गाग्वि चरति चरणिनि ! गांक ___राब चन्द्र बादी भी 4 विवरण देखा । पोर्क पोक चलनवान्ना, एक तरह का तपखा। मूहत चिन्तामगिाके मतानुमार-मूर्य गन्तव्य राशिम पहले पांचदिन फल देता है। मङ्गल गन्तव्य राशिम ग'चो मं स्त्री० ) गामञ्चति अन्च किम् डोप नलोपे पहिले आठ दिन, बुध गन्तव्यरागिमे पहले मातदिन, चन्द्र अलापः । १ मस्यविशेष, एक प्रकारको मछन्नी। गाः गन्तव्य राशिम पहले तोन दगड, राहु गन्तव्यराथिके पहिले गिवस्तुतिरूपा: वाचः अञ्चत अन्न किप डोष । तीन माम, नि छह माम और वृहस्पति दो मास पहले : २मानयपत्री, हिमालयको स्त्री का नाम । अपना फल देता है। गोच्छगल ( म० पु.लो. ) गोमय, गोबर । Vol. VI. 134