पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५३९

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गोण्डवा-गोण्डा ब्राह्मण कहलाते थे, पीछे धीरे धीरे गोर या गोड़ ( गांड ३३ एवं ८२४६ पू०में अवस्थित है । इसको उत्तरको ब्राह्मण कहलाने लगे हैं। इनकी माध्यन्दिनो ओर मोमामें हिमालयके नोचेही पर्व तथणी है, पूर्म वस्ती कागव शीखा है तथा आपस्तम्बसूत्र है। इनमेंमे थोडे जिला, दक्षगामें फैजाबाद, बगवाङ्गो और घर्घरा नदो ऋग्वंदी आश्वलायनशाखाके अन्तगत हैं। ये शास्त्र तथा पश्चिममें चराइन है। भूमिका पग्मिाण २८१३ धागनुसार सदाचारी ब्राह्मण सम्प्रदाय हैं। ये मछली वग मोल है । लोकमख्या प्राय: १४०३.८.५ है। मांस नहीं खाते हैं। इनकी विद्यास्थिति भी अच्छी है। तमाम जिला ममतन जान पड़ता है। कहीं कहीं गोगड़वा-सिंहभूमक अन्तगत एक ग्राम । बड़ा बाजार थोड़ा बहुत ऊंचा नोचा भी है। यहां कहीं आमकी से १६ मील दक्षिण पथिम चाइवामा जाने के रास्ते पर ओर कहीं महुआर्क पडीको पति नजर आती हैं । दश अवस्थित है। गोगड ग्राम तथा धमनालालाके निकट. जिनकी जमीन तराई, ऊपरहार और तरहार इन तीन वर्ती विजक पहाडके पाददेशमें बहुतमी शिनालिपियां भागांमें विभक है। तगई या पानीको जग जिलेको खोदित हैं। इनमेमे दो शम्ब कारुति अक्षरमें और दो उत्तर मौमामे दक्षिण की तरफ गली नदीक दो मोल उड़िया अक्षरमें खोदो हुई हैं। शेषोक दो शिलाफलक दक्षि ग तक विम्त त है, इमो बीचमें बलरामपुर और रोमाजिडिपाचा मन उतरीला ये दो नगर भो , यसको भूमि कोचडवाली शामनकालमें ये लिप खोदी गई थीं। मुकन्दटव है, मिफ जिन जिन स्थानाम पाव तोय जलस्रोत जिले में हुगन्ती पर्यन्त राजत्व करते थे तथा उन्हींके गज्यकालमें हो कर राजी और बूड़ी गयी नदी में जा पड़ा है। उन इम ग्राममें दोनों प्रदेशका प्रधान व्यवमाय स्थान था। उन स्थानों में बाढ़ आनके ममयमै पहाड़ की धली हुई उक्त शम्ब कालति अक्षर बहुत दिन हैं कनिहम बान्न जम गई हैं. जिममे वहां कोचड़ नहीं है। तराई माहबका अनुमान है कि राजा मुकुन्ददं वकं बहुत पहले भूमिक चाद गोगडा नगरमे दो मोल दक्षिा तक ऊची ई० ७ शताब्दमें राजा शशाङ्ग राज्य करते थे, उन्होंक भूमि है । यहाँको जमोनमें कोचड़ और बाल दोनों हैं। समय में इस तरहका अक्षर प्रचलित था। उम ममयमे दमक बाद घरा नटोक किनारे तक तरहार जमीन आजकल ग्रामको अवस्था ममृद्धिशाली है। है। यहांको तीनों तरह की जमीन हो ज्यादा उपजाऊ गोण्डवाना-मध्यप्रदेश और मधाभारतका एक पगना हैं। हम जिलेमें उत्तर पथिममे दक्षिण पूर्व की तरफ मुमलमानी प्रान्त । अबुल फज लन निम्नलिखित रूपसे बहनेवाली कुक नदियां हैं, जिनके नाम डम प्रकार हैं- उमको सीमाको निर्देश कया है-पूर्व रत्नपुर, पश्चिम बड़ी गगो, रानी, सुवावन, कुवाना, विशूही, चमनाई, मालव, उत्तर पन्ना और दक्षिणमें दाक्षिणात्य । यह मनवर, तिर ही मरय और घबरा। इन नदियों मेंमे मिर्फ वण न वर्तमान सातपुरा अधित्यकाका बोधक है। मुमन- घर्घरा और गमो नदो, हो नाव चन्ना करती हैं। रामो मान गांड़ाके देशको गोंडवन ममझते थे, परन्तु आज. नदोमें सिवाय वर्षातर्क टूमा महीनाम नाव नहीं चलतो। कल वह नाम द्राविडोका है। इस विषयमेंक द्राविडा जिलेके भीतर भी बहतम जन मोजद हैं। गरमियों में ये को गोंड कैसे कहा गया पुरातन तत्त्वविद कनिङ्गहाम मुख जाते हैं, और वहां छोटे कोटे मढ़ा, जामुन, साहबने लिखा है-गांड शब्द "गोड़" का अपभ्रश है। आदिक पंड पैदा हो जाते हैं। नदी के किनार के बाल वाराणसोक एक शिलाफलकसे विदित होता है कि बड़े भयावन होते हैं। जगह जगह कोटे कोटे हद या तवार ( जवलपुरक निकट) के एक चेदिराज मालव तालाव भी देखनमें आत है। इन तालावाम खेतवालों प्रान्तर्क पथिम गौड़ जिलेमें रहते थे और भी चार पांच ___को खत्र सुविधा होती है । जिलेके उत्तगंगम पर्वतके शिलाफलकोंमें वहीं गाड़ होनको कहा गया है। मोमान्तवर्ती वनविभागमें, जोकि गवम राट के अधीन गोण्डा-अयोधमाके फैजाबाद विभागका एक जिला। ह. न, आवल श और वबन्न आदिक पंड़ ही यह अक्षा० २६४६ तथा २७५० उ० और देशा० ८१ अधिक है। इम जगन्नमें शेर, चीता, भाल , भेडिया, Vol. VI. 135