पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१७

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पलय मलयजातिके अधिकांश लोग मुसलमानो धर्ममें , लंबाई ६ फुट होती है तथा यह कमरसे पैर तक लटका ...दीक्षित हुए हैं। सबसे पहले द्वोपपुञ्जको पकिनिस जाति-, रहता है। जब पे धरमें रहते हैं, तब एकमाल मारोंको ने १२०६ ई में मुसलमानी धर्म ग्रहण किया । पीछे . हो काममें लाते हैं । घरसे बाहर निकलने के समय मलु. मलझाकी मलयातिने १२७६ ई० में, मलझायासोने ; भार (पाजामा) पहन लेते हैं। शिङ्गापुरी, सलुमा, चीन १४७८ ई में और सेलिविसबासीने १४९५ ई०में उत। मलुया आदि अनेक किस्मके पाजामे प्रचलित हैं। अलावा • धर्म को अपनाया। ये लोग जबरदस्ती मुसलमान नहीं इसके बाजू यर्था : जाफेट मलय-परिच्छदका पक प्रधान बनाये गये हैं। अरवदेशीय वणिकोंने तथा क्यान्य , अङ्ग है। जो मका-तीर्थ जाते हैं ये सभी पगड़ी पहन मुसलमान धर्म प्रचारकोंने मलयजातिके साथ हेलमेल लेते हैं। कर. अपनी · युद्धिमत्ता और सभ्यतासे इन लोगोंके मलय-द्वीपपुक्ष, ( Malas Archipelago ) मलपका • ..चितको आकर्षण कर लिया था। धीरे धीरे उन प्रणालोके पूर्ववती द्वोपममूह । बङ्गोपसागरस्थ तन- लोगों के मध्य यापसमें आदानप्रदान होने लगा। इस सेरिम तौरवों मारगुई दोपपुञ्ज भी कभी कभी इसी प्रकार नाना कारणोंसे मलयजातिने स्वेच्छासे । नगमसे पुकारा जाता है। महम्मदका उपदेश अपनाया । मलय उपद्वीपके अधिः मलय-तेनसेरिमके दक्षिण प्रान्तसे ले कर विपुवरेखा वासियोंमें कोई कोई आज भी मूर्तिपूजा करते देखे जाते। तक कमसे कम ५०० मोल विस्तृत एक देशभाग। इस. हैं। यवद्वोपको पहाड़ी जाति हिन्दूधर्मावलम्यो हैं, ' का परिसर ५० मोलसे १५० मील और भूपरिमाण यह पहले ही कहा जा चुका है। इन लोगों में भी बहुत-! ८३००० वर्गमील है। जङ्गलमय पर्वतमाला इसके मध्य से कुसंस्कार प्रचलित हैं। ये लोग वृक्ष, नदी, वायु | भागसे होतो ई वहुत दूर तक चली गई है। आदिको भी देयता समझ कर पूजते हैं। वर्तमान समय में मलय-उपदोपका अधिकांश स्थान मलय लोगो कोई देशीय साहित्य देखनेमें नहीं | श्याम और अगरेजोंके अधिकारमें है। इण्डिया आता। पारस्य, अरव, श्याम आदि देशीय ग्रन्थादिको कम्पनीने १७७५ ई०मैं पेनां, १७६८ ई० में येलेस्ली प्रदेश, ये लोग पढ़ते हैं। इनलोगों के मध्य केवल 'हांतुया १८२३ ९०में गिगापुर और १८२४ ६०में मलमाको दवल नामक एक उपन्यासका प्रचार देखा जाता है। किया। पे सव स्थान १८६७ १०. तक उक्त कम्पनीफे मलय लोगोंके मध्य प्रचलिन प्रथा,-यूरोपवामिः। हो दग्पलमै रहे। पीछे यह अंगरेजोके फत्तत्वाधीन गण सादर सम्मापणके समय एक दूसरेका मुख चूमते एक शामनकर्ताके हाथ मौंपा गया। उस समय इमा हैं, मलयगण आपसमें नाक मलते हैं। अधिकांश लोग नाम हुमा 'नट सेटलमेण्ट'। जुआ खेलना पसन्द करते हैं। मुर्गियोंको लड़ाई इनके मलयके अधिकांश स्थानों में मलयज्ञातिका वास मध्य एक विशेष आमोदको जिम है। सुमात्रायामियों है। इसके अतिरिक्त सोमां, यकुन भारि जातिका भी के मध्य मेंइका सेल प्रचलित है। मलययामिगण । यास देखा जाता है। इनकी नाक विपटो, होठ मोटे अतिशय सङ्गीतप्रिय हैं। देशी याद्ययन्त्रके मध्य लड़ाई : और बाल छोटे नया घुघराले होते हैं। यहां रायत के इंफेको छोड़ कर और कुछ भी नहीं है। इन लोगों में अथवा मोरङ्गलीस नामक ममुद्यासी एक धेणीफ 'म्याद नामक नाटक खेलते देखा जाता है। ' लोग रहते हैं। ये लोग अकमर मछटोखा कर अपना पे लोग यपने दासे तरह नरहफे हथियार, पना गुजारा चलाने हैं। ये नितान्न दुन्ति, यमहिष्णु, हैं। तलवार, यो, फमान आदि सुधारको काममें मगीतप्रिय और शिल्पकार्यमें निपुण हैं। लाते है। दा. पेगक, मेलडोर, नेप्री मैम्पिलर और शुलाई मलयवासोका परिच्छद ।--त्रीपुरुप दोनों ही 'मारों' माङ्ग नामक गश उपरोपके मध्ययनों । पंदा नामक पायाक पहनते है। इस नारोंका घेरा ४ फुट और । गम्य तां नदीसे क्रियान् नदी तामिलन है... संदाक VoL XVII. ! .