महाराष्ट्र २०३ और कोशलादि देशके राजायोंको परास्त किया था. महाराष्ट्रदेशमें पुराण प्रसिद्ध देवयियोंकी उपासना ऐसा उनके ताम्रशासनमें लिया है। गोविन्द तृतीय, सभी जगह प्रचलित थी। पौद्धधर्म पयारगो दोन- • ८०८ ई० में उत्तर मालयसे ले कर काश्योपुर तक प्रम हो गया था | विन्तु जैनधर्मका प्रमाय ज्योंका प्रदेशीक राजचमायती थे। नासिक जिलेके अन्तर्गत त्यो धमा था। उस समय देश में संस्तविद्याका विशेष मोरगएड नामक गिरिदुर्ग में इन्होंफो गजधानी थी। प्रचार था। संस्कृत भाषा जाननेवाले वटुत-मे कयियों प्रयाद है, कि इनके राजत्वकालमें राष्ट्रकुट पुराणोक्त और पण्डितोंने उनकी समा मुशोभित की थी। इसी यदुवंशके जैसे अजेय हो गए थे। इन्होंने धारह राजाओं के कृष्ण नामक एक राजा पण्डित प्रयर हलायुध- की इकट्टी सेनाको बड़ी शूर वीरताके माथ हगया प्रणीन फाव्याहस्य नागक काय्यफे नायफरूपमै फरिगत था। इनके भाई लाटदेश (गुजरात)के राजा बनाये हुए थे। गद्रकूट राजा भी चालुपयों की तरह यहम, गये। अमोघवको समयमें मान्यग्नेट ( वर्तमान माल- पृथिवीयलभ और यल्लम नरेन्द्र आदि उपाधि धारणा इ) नगरमें राष्ट्रकूटोंको राजधानी स्थापित हुई ।। करने थे। दिगम्बर मतावलम्वी जैनौ वडे हो पक्षपातो थे। यही राष्ट्रकूट राजपूताने के उपाधिधारी राजपूतों- गहोंने स्वयं भी जीनधर्म ग्रहण किया था। उनके पुत्र के पूर्वापुरुष है। बहुसेरे अनुमान करते है, कि मृतीय कृष्ण अकाल वर्पने चेदिदेशके हैहयवंशकी राजकन्यासे! गोविन्द के समय दक्षिणापथ गद्रकटगण विजय प्राम विवाह किया । कृष्णके पुत्र जगतुइनने अपनी ममेरी ' करते हुए उत्तर भारतमें जा बसे। पदनको प्याहा । पे कमी भो सिंहासन पर बैठ न सके।। उनर चालुक्य। इनके पर्व इदराजने ११४ मे सिंहासन पर बैठते हो नैलप नामक जिस चालुपपयंशोय योरपुरापन राष्ट- २० लाख रुपपे धार्थ दान किये । इनके फनिमपुत्र !, कूटोंका सिंहासन यपनाया, उनके साथ पूर्व समयके · गोविन्द अपने बड़े भाई अमोघवर्षको सिंहासनसे । चालुपयराजवंशका कोई मम्बन्ध नहीं था। इसीलिए उसार स्वयं गद्दी पर ये और "मासा" को उपाधि उनका प्रतिष्ठित राजवंश उत्तर कालीन शालुपयन धारण को। इनकी प्रभूतवर्ष नया सुवर्णवर्ग भो उपाधि कहलाता है। इस राजय'फे राजाभोंको तालिका और उनके थो। यहिंग यदे हो सदाचारसम्पन्न राजा । नृतीय कार्य-कलापका विवरण नालुक्य रम्दमें देखा। रुंज्याराजने पाण्डप, सिंहल, चोल, चेर और अन्यान्य देश इस चाटुपप-राजगने 100से ११८६० नक महा. जीत कर बड़ी वीरतासे राज्य शासन किया था। राष्ट्र प्रदेश में राजकाज चलाया। कल्यान नगर इ. की इसके कुछ दिन पहलेसे दो चालुपयोंको क्षमता पट राजधानी थी। इनके ममपमें दक्षिणपथमे लिगायत् सम्म- रही थी। राष्टफूटोंने इनका दमन कर अपना प्रमाय दायका प्रभाव फैला हुआ था। बौद्धधर्म एकबारगी विलुप्त . भक्षण्ण रखा था। अन्तमें कमाल या दिनीय कर्बके । मोर जैनधर्म होनमम हो गश था। पुराण और स्मृति समयमै चालुपयोंको क्षमता इतनी बढ़ गई, कि महाराष्ट्र भारतको पा. कर. पाहाणोंने उस समय नियन्धन और को राजलक्ष्मी उनके पाम भानेको बाध्य हुई। चालुपय. मीमामा मन्योंकी रचना भारम्भ कर दी थी। इस ग्रंश पंशीय तैलप नामक एप पराममशाली व्यक्तिने काढलको | राजा बड़े हो विद्यानुरागांधे। काश्नारदेशके विहाकथि लड़ाई में हरा कर महाराष्ट्रका सिंहासन १९५०में इमी यंग. २य निक्रमादित्यफे १९७६-११३६ में ममा. भपनाया। परिक्त थे । यिकमादित्यने उन्हें विद्यानिकी उपाधि दी राष्ट्र फूटयंशने २२५ गर्ग नफ दक्षिणापथमे अपना थी। विहणने भी अपने माध्य दाताका गुणवर्णन करने प्रभाष एक-सा बनाए रखा । इलोराको प्रसिद्ध गुहा- दुए "विरमादयरचिन" नामक मम सर्गी का एक मन्दिर मी शके राजाओं ऐश्वर्ग तथा जिला काय रवा । इस काम नग्ध जैसा पदविन्यास देशा सौन्दर्यानुरागका परिचय देते हैं। इनके अमल । माता है। इसकी आद्योपान्त रचनामें प्रत्यकारने महो
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