महाराष्ट्र २१५ यहां उसको निजामने आश्रय दिया। इससे मुगलोंने | मान और कार्यदक्ष ब्राह्मणों की सहायतासे राज्यकार्य निजामको पराजित किया । ठीक इसी समय सन् १६२६) सञ्चालन करने लगे। अल्प समयमें ही सारे कोकण ई में महाराष्ट्र देश लगातार दो वर्षको अनावृष्टिसे जर्ज प्रदेशके साथ निजामशाहीके बहुतेरे प्रदेश शाहजीके रित हो गया। बहुतेरे भूखों मरे, देशके पशुपक्षी मर गये, हाथ मा गये। मुगलोंको दक्षिण विजय करने के लिये कितने ही लोगोंने भाग कर आत्मरक्षा की। जो देशमें वृहत् युद्धायोजन करना आवश्यक हो गया। रह गये, ये महामारोके कारण पञ्चत्वको प्राप्त हुए । इधर शाहजीके अध्यवसाय और कार्यकलापको देख मुगलोंकी बन गई। इन्होंने इस देशको ग्वार क्षार करना। दिलोसे शाहजहां स्वयं सैन्य परिचालन करनेके लिये स्थिर कर लिया था। ऐसे समय निझामने प्रसिद्ध । दक्षिणमें आया। शाहजीने मुगलोंको सागर प्रवाहिनी मालिक अम्बरके पुत्र फतेह खांको कैदसे छुड़ा कर मंत्रो सेनाको देख विजापुरके मुलतानको भुगलोंके विरुद्ध बना लिया। फल यह हुआ, कि फतेह खांने अब सुल- भड़काया। सुलतानने मुरारपन्त और रणदुल्ला खांको तानको हो कैद कर लिया और उसे मरवा डाला। सुल-| शाहजीकी सहायताके लिये भेज दिया। कुछ दिन युद्ध तानके प्रियतम सरदारों को इसो घटनामें प्राणत्याग करना होनेके बाद शाइजहांने सुलतानको सवर भेजी, कि जव पड़ा था। फतेह खां ऐसा कठिन काम करने पर भी स्वयं तक शाहजीको सहायता न दागे, तब तक विज्ञापुर पर राज्यभोग नहीं कर सका । वह निजामशाही धनवैमवके शाहो-सेना याक्रमण नहीं करंगो । मुलतानने वादशाहके साथ मुगलोंके अधीन हो गया। इस भुलावे पर कर्णपात नहीं किया। शाहजोने अपने फतेह खांके इन सब कामोंसे शाहजीके मनमें घोर , सैन्यको छोटे छोटे दलोंमें विभाजित किया और मध्य. घृणाका सञ्चार हुआ। उन्होंने निजामशाहोको रक्षाके | वस्थित युद्धनोतिको अवलम्बन फर मुगलोंको तंग कर लिये विजापुरकी आदिलशाही सुलतानसे साहाय्यको | डाला। इधर मुगलोंने भी शाहजीको अपदस्थ करने. प्रार्थना की। साहाय्य प्राप्त होने पर उन्होंने देवगिरि मैं जरा भो लुटि नहीं की। सेन्यसजा विशेप होनेकी या दौलतावादके किलेको फिर हस्तगत करने के लिये वाह मुगल सब जगह विजयो होने लगे। शाही सैन्यके यात्रा कर दी। किन्तु मुगलोंसे युद्ध करने में उनको विफ- उपद्रवसे तंग आ कर विजापुरके सुलतानने शाहजीका लता हुई। मुगलोंने निजामशाही राज्यके उत्तराधिकारी साथ छोड़ शाहजहाँके साथ सुलह कर लो। शाहजीने दश वर्षफे राजपुत्रको कैद कर दिल्ली भेजा । (सन् १६३३ / कोडण जा कर माधय ग्रहण किया। मुगलोंने यहां भी उनका पोछा किया। शाहजो प्लान्त हो गये थे, अतः उन्हें फिर भी शाहजी भोसले निरस्त न हुए। उन्होंने मुगलोंका विरुद्धाचरण परित्याग करना पड़ा : मुगलोंकी दो वर्ष तक मुगलसैन्यने कलह कर निजामशाहीकी अघोनता मनसवदारो करनेको उनकी इच्छा थी। किंतु पुनः प्रतिष्ठाके लिये प्राणपणसे चेष्टा की। इस कार्य में शाहजहांने इस प्रस्तावको रद्द कर शाहजोका विजापुरके उन्होंने जैसा अलौकिक शौर्य और साहस प्रकट किया था, सुलतानके दरवारमें रहनेका आदेश दिया। मुगलौने सामदान दण्ड विभेद नोतिका जिस तरह उन्होंने प्रयोग निजामशाहीके अन्तिम उत्तराधिकारी वंशधरको (सन् किया था, वह उनके अल्पवयस्क महात्मा शिवाजी १६३७ ई० ) कैद कर भागरेको भेज दिया । इस तरह रिये उदाहरण स्वरूप हो गया था। शाहजीने सहाद्वि- निजामशाही राजाके उत्तराधिकारीको समाप्ति हुई। के निम्न दुर्गम प्रदेशको हस्तगत कर मुगलोंके विरुद्धा. आदिलशाही वंश। चरणको व्यवस्था को। यथासम्भव युद्धका आयोजन। इस वंशके आदिपुरुष युसूफ आदिलशाद कुस्तुस्तु. सम्पन्न होने पर उन्होंने राजवंशीय एक दश वर्षके : नियाके राजचंशमै जन्मप्रहण करने पर मी भाग्यवश पालकको निजामशाहो राज्यके उत्तराधिकारी विघोषित | स्वदेश निर्वासित तथा नौकरोंके साय वास करनेको 'कर , राज्यसिंहासन पर बैठाया और बहुतेरे बुद्धि । वाध्य हुआ। सन् १४५६ ई०में वह मामान्य वेगमें
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