पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२७४

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२४२ - पहाराष्ट्र भारतवपस जा मुसलमान-शासनका प्रभाव जाना । आदि विषय मल्हार राय होलकरके आदेशानुसार 'रहा और सर्वत्र हिन्दुओं को तूती बोलने लगी उससे लिखित यसरमें बड़ी ही मर्मस्पर्शिनो भापामें लिखे गये. . मुसलमान-समाजके अधिनायक बडे उद्विग्न हो गधे। हैं:। इस भयानक युद्धके विषयमें दोनों पक्षको . जिन दिल्लीश्वरके प्रतापसे एक दिन सारा भारतयष, भारी संशय था, इस कारण चोचमें सन्धिका प्रस्ताव ' कप उठा था, जिनके आदेशसे महाराष्ट्रपति शम्भाजी · भो उठा। किन्तु मुसलमान लोग उस सन्धिमें जो सब . निहत और उनके पुत्र शाहु परिवार समेत वन्दी हुए-थे, स्वत्त्व मांगने लगे, उसे महाराष्द्रयोर देनेको विलकुल कालचक्रके अद्भुत परिवर्तनसे उन्हीं के वंशधरों को तैयार न हुए। उस घोर आपत्कालमें महाराष्ट्र सेना.. आज मरहठों के हायका खिलौना देख उनके परितापको पति यदि शत्रु पक्षको कुछ भी शर्त मान कर उस समय " सोमा न रहो। ये लोग महाराष्ट्रशक्तिको सर्वमासिनो लड़ाई यंद कर देते और पोछे मौका देस कर प्रथम मूर्तिको देख कर बहुत डर गये। पीछे उन्होंने आत्म- मरहठायुद्ध में पराजित . अंगरेजोंकी तरह 'सन्धिपत्र । .. रक्षाके लिये उनसे मेल करना ही अच्छा समझा। पर पर कलकत्ते (महाराष्ट्रीय पक्षमें पूना ) के कत्तु पक्षका भीतर ही भीतर उनके विरुद्ध कार्रवाई भी करते रहे। हस्ताक्षर और सम्मति नहीं थी" आदि आपत्ति कर संधि अह्मदशाह अवदालीके पास भारतवर्ष पर आक्रमण तोड़ देते, तो भारतवर्ष का इतिहास इतने थोडे. दिनों के करनेके लिये उन्होंने चुपके निमत्रण-पत्र भेजा। बाद मध्य अन्य मूर्ति धारण करता या नहीं, संसद है। किंतु शाही स्थापनको दुराकांक्षाने फिरसे उनके वित्तक्षेत्र पर पूर्वोक्त वखर-ले नफका कहना है, कि फुरुपाएडवफे लोला- अधिकार जमाया। थोड़े ही दिनो के मध्य कुरुक्षेत्रके क्षेत्रमें कृष्णसहाय धर्मराज (युधिष्टिर )-फे विजयभूमिमें विस्तृत समरप्राङ्गणमें अहमदशाह, नजोव खां रोहिला, . पदार्पण करनेसे स्वधर्मानुरागी मरहठों का मुसलमानों के .. मुजाउद्दीला, कुतुबशाह, अह्मद खां, दुन्दे खां आदि , :प्रति विद्वप दहुत बढ़ गया था, इस कारण ये सन्धिः रोहिला, पठान और दुर्रानी-सरदारगण अपनी अपनी प्रस्ताव पर सहमत नहीं हुए। जो कुछ हो, युद्ध अनि- चतुरङ्गिणी सेनाके साथ युद्धार्थ उतर पड़े। पाय हो उठा।. १७६१ ई०के प्रारम्भमें पानीपतकी : ___ मरहठोंने भी विपुलवाहिनीके साथ उनका मुकाबला : लड़ाई में महाराष्ट्र वैभवको पूर्णाहुति हुई । भारतमे हिन्दू किया। दोनों तरफसे प्रायः ढाई लाख वीरपुरुप भारतके सानाज्यस्थापनकी उथाकांक्षा कुछ दिनके लिये विलान भागाका निर्णय करनेके लिये समरप्राङ्गणमें उपस्थित हो गई। हुए थे । दुःखका विषय है, कि राजपूतानेके हिंदूराजे मर... युद्धके बाद मुसलमानों ने जिन सव. महाराष्ट्र हठोंकी चलती पर जलते थे, इस कारण उन्होंने उनका : वोरोंका फैद किया था, उनके सिर, काट डाले। इतना साथ न दे कर मुसलमानोंका ही साथ दिया। जाटके. ही नहीं, जिन्होंने उनका शरण लो था, उन पर मा . सरदार सूरजमल्ल भी युद्वारम्भसे कुछ पहछे मरहठोंका ! : उन्होंने दया न दरसाई। इस प्रकार इतमागोंका कटा - पक्ष छोड़ कर सुजाउद्दौलाके साथ मिल गया। दिल्लीका “ हुआ सिर पर्वतके समान ढरे लग गया और निष्ठुर . आधिपत्य पानेमें असमर्थ हो मरहठोंके साथ उनका अफग़ानियोंके मानन्दका ठिकाना न रहा। वार्थसंघर्ष भी चला था। इन सब कारणोंसे मरहठोंको.. इस युद्धर्मे जय पाकर भो अवदालाको महतो क्षति एकमात्र आत्मशक्ति पर निर्भर करके हो वैदेशिक शक्ति- हुई थी। उत्तर भारतके मुसलमानोंका इस युद्धके का मुकाबला करना पड़ा । स्वधर्मरक्षाके लिये एक पुरस्कार स्वरूप कुछ भी नहीं मिला। दिल्लोका गौरय ..लाख सत्तर हजार महाराष्ट्रचीर अपने प्राणको न्योछावर पुनमहोप्त होने की बात तो दूर रहे, बादशाहको अवस्था

करने तैयार हुए । युद्धफे पहले उनका उत्साह, विध- दिनों दिन शोचनीय होती गई । पूर्वाञ्चलमें अगरेज

- मियोंके प्रति विद्वेष, हिन्दुधर्मरक्षा के लिये प्राणदिस- और दक्षिण भारतमें हैदर अली तथा पश्चायमें सिखजाति : जनमें अनुराग और आप्रह, युद्धका शोचनीय परिणाम ! : -का अभ्युदय हुआ।