पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महाराष्ट्र प्रधान सेनापतिने उनके नियमको उल्लङ्घन कर येगार पकड़। नवाव और कुटिलनोतिकुशल अङ्गवेज महाराष्ट्रशक्तिक ," वाया था, इस पर माधव इतने दिगडे कि आखिर उसे सामने सिर झुकाते थे। मध्यभारत और राजपूतानेके . माफी ही मांगनी पड़ी थी। प्रजाको सुखी करने के लिये | राजे महाराष्ट्र-विक्रम पर स्तम्भित हो पुनः पेशवाको कर. माधवरावने बहुतसे हितकर काम किये थे। सुप्रसिद्ध देने लगे। जार लोगों ने भी अपनी हार स्वीकार की। , न्यायपरायण पण्डित रामशास्त्रो विचारपतिके पद पर प्रति- केवल यही नहीं, १७७० ई०में दिल्लोका दरयाता भी ठित थे । मलहार राव होलकरके मरने पर उनकी पुत्र- मराठों के सिंहनादसे कांपने लगा । पानीपतमें । वधू प्रातःसारणीया अहल्यावाईको अधिकारच्युत करके पराजयके वाद मराठा इतने दिनों के अन्दर चर्मः .. अर्थलुब्ध दादा साहबने होलकर राज्यको खास करनेके ण्वती (चाम्बेल ) नदी पार कर सकेंगे, यह रोहिलों ने - लिये बहुत कोशिश की थी, पर न्यायपरायण माधव स्वप्नमें नहीं सोचा था। शीशाली सिासे के अफ रावने इस काममें वाधा डाली जिससे रघुनाथकी चेष्टा गान-दमनमें प्रवृत्त होनेसे रोहिलो'ने दिल्ली, आगरा और . पूरी न होने पाई। गङ्गा यमुनाफी अंतर्वेदीमें अपना अधिकार जमाया था। ___ इस समय हैदराबाद के निजामके दीवान रुखमत- :उन लोगोंकी स्पर्धा इतनी दूर, तक बढ़ गई थी, कि उद्दौलाने अपनी इमारत बनानेके लिये एक ब्राह्मणकी उन्होंने आखिर दिल्लोके शाह आलमको वृत्ति देना बंद जमोन जबरदस्ती ले ली थी। ब्राह्मणने निजामके पास कर दिया और गमोंके प्रति घुरो तरह पेश आये। । इसकी नालिश की, पर कोई फल नहीं हुआ। यादमें वह | इधर दिल्लीश्वर अंगरेजों के साथ युद्धमें हार खा फर . ब्राह्मण पेशवाको शरणमें पहुंचे। इस विषयका प्रतो- उनके आश्रयमें इलाहाबादमें रहनको याध्य हुए थे । मर- फार करनेके लिये पेशयाने फई पत्र निजामके पास होने रोहिलोंका दमन करके मुगलबंशधर शाह आलम ... भेजे. पर निजामने उस ओर कान नहीं दिया। इस ] को उनके पैतृक सिंहासन पर विठाया । १७७१ ई०की - पर माधवरावने नयायका होश ठंढा फरनके लिये २५वीं दिसम्बरको मरहठोंकी सहायता दिल्लीमें बढ़ो अपनी सेना सजाई। मराठा फौजक राजधानीके समीप धूमधामसे उनका अभिषेक हुभा । दिल्लीवासी रोहिलोंके. पहुंचने पर नवाबकी नोंद टटी। अब वे संधिके लिये उद्धत व्यवहार पर हत हो गये थे। प्रार्थना करने लगे। इस पर माधयने कहा, 'ब्राह्मणको | अपने प्रकृत पादशाहको सिंहासन पर अधिरूढ़ देख फूले । भूमि ग्राहाणको लौटा देनेसे ही आपका कुशल है। इस न समाये। उत्तर भारतमें मरहठोंको क्षमता पूर्ववत् । अभियानक व्ययस्वरूप माप जो देंगे वही मैं ले लूगा। फैल गई। किन्तु आपको कुरान छू कर घंशपरम्पराकमसे उस ' .इसके बाद मरहठा लोग मुसलमानों के हाथस ब्राह्मणको उसको भूमिका उपस्वत्व भोगनेको सन्द, लिखा • अयोध्या, याराणसी और प्रयागका उद्धार करनेका देनी होगी। नवावक यह प्रस्ताव मान लेने पर महा । उद्योग कर रहे थे। इसी समय दाक्षिणात्यसे पेशवा .. राष्ट्र सेना पूना लौटी। माधयरायकी अस्वस्थताको सपर आई। मरहठोके । ____माधवरायफे यत्नसे मरहठोंमें फिरसे नवजीवनका दुर्भाग्यवशतः २८ वर्षकी उमरमें माधवराव , यक्ष्मारोगस संचार हुआ था। पानीपतको लड़ाई में महाराष्ट्रोको | आक्रान्त हुए। उनके प्रधान सेनापतियों को उत्तर सर्वनाश हुमा है, समझ कर जिन्होंने सर उठाने की भारतमें अपना प्रभुत्य फैलाते 'देव, दक्षिण-पथ दैदरः । फोशिश को भी उनका. माधवरावने थोड़े हो दिनों के अलोने उपद्रय मचा दिया.या। इस कारण अपने सेना : अन्दर अच्छी तरह दमन किया। नागपुरके भोंसलोंने पतियों को राजधानी लौट जानेके लिये माधवरायने । इस समय एक गृहविवाद खड़ा कर दिया था। किंतु हुकुम दिया। सेनापतियों के दाक्षिणात्य पहुंचनेके पहले । माधवरायफे नीतिकौशलसे पुनः मरहठोंमें मेल हो गया। हो महाराष्ट्रपति माधवरायका जीवन प्रदीप युझ गया । दाक्षिणात्यम दुर्द्ध हैदर अली, निजाम अली, अरकाटके! उसके साथ साथ मरहठों को माशारूपी लता भी निर्मूल