पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पाहावीरस्वामी ... मझायीका जन्म हुथा। आपके शरीरका रंग सुवर्ण- पिता-माता और कुटुम्बिारोको मानन्दित करते हुए तपा.. सहय, दीप्तिमान मुखमण्डल, यमके समान अस्थियां राजकार्यका पर्यवेक्षण करते हुए स्यामीने ३० वर्ष प्नोत . और परम रुपयान मुहद शरीर था। जन्म होते हो। फर दिये। वियाह करने को तरफ उन्होंने बिलकुल ही सौधर्म और ईशान इन्द्रने मापको क्षीरसागर यभिषेक ध्यान न दिया, पाल ग्रह्मचारी कर पयित जीवन । पूर्वक स्नान कराया और बड़ा भारी उत्सव किया। पिताया.! उसी समय उनका वीर और पदमान नाम रफ्ला गया। ___एक दिन, काललब्धि भऔर चरित्रमोहनीय कर्मके वित जैसा कि कहा है:- क्षयोपशम होनेसे, स्यामीके मनमें सहसा वैरापका "भय स्यान्महता यौर: कारतिनिकंदनात् । उदय हुमा। उस समय अवधिशानसे स्यामी विचार श्रीवर्तमाननामासो यर्द्धमानगुणा श्यात् ॥" किया-मैंने इस सदमा नभ्या जगत्मे मील, मारोवल. उस कालमें जैसे अन्य पालकों को ५ वर्षको अवस्था पुत्र, तियच (पशु मादि), नरक भादि मय धारण area में अक्षराम्भ और ८ धर्मको अवस्थामै गुरुके निकट ही अनेक कर उठाये। परन्तु कहीं पर भी मारमानंदका उपासकाध्ययन आदि ग्रन्थ पढ़ने पड़ते थे, पैसे महा. अनुमघन किया। अहो ! मुम मुहके इतने दुर्लग दिन चीरस्यामीको पढ़नेको आवश्यकता न हुई । पोंकि पूर्ण इस जगसमें बिना महाग्रतके मोहोचले गये। मैंने इस मयम संस्कारसे महावीर जन्मसे हो मति-धुत-अवधिशानके भो तोन शानके धारो मोर भात्महानो हो कर इस गृह धारक थे, जिससे अन्य शास्त्र पढ़ना उनके लिए प्यर्ण जालमें इतने दिन पृथा हो हो दिपे। जो लोग शान का था। उन्होंने किसीका शिष्यत्य प्रहण नहीं किया था। कर निर्दोष तपका भाचरण करते है, उम्दीका काम सफल' माठ वर्षाको अवस्थामें स्वामीने गृहस्थोंके उपयुक्त | है, दूसरोंके लिये ज्ञानाम्पासादि मात फ्लेशरूप हो। छायशयत प्रहण किये। * शानवानों को कोई भी पाप नहीं करना चादिपे, पोंकि ___ महायोर कुमारावस्थामें ही यई योर और साहसी) मोहसे दुर राग और प्राय जाने पर भी माहादि निप. थे। एक पार मोधर्म ने अपनी समामें स्वामीके बल कर्मरूप प उत्पन्न दोते हैं। जिनको वश हो पर यह को प्रशंसा की। संगम नामक एक देयको विश्वास न प्राणी महाघोर पाप फर ले। है और पापसे चिरकाल हुआ। यह परीक्षा करने के लिये एक बड़े भारी काले | दुर्गतिमें दुःख पाता है। शानियोको उचित ६, कि पहले नागके रूपमें भाया, मोर जहां राजकुमारों के साथ श्री. प्रगर घेराग्यरूपी खगले सर्य अनर्थ के कारण दुष्ट मोह. महायोर खेल रहे थे, यहां जा कर जिस गृक्ष पर कुमार | झपो शत्रुओं का संहार करें। अहो ! इस मोहका शीतना चढ़े थे, उससे लिपट गया। अन्य सय कुमार मयमोत गृहस्थियोंसे नहीं हो सकता, इसलिये पापके समान दो पक्षसे फूद कर मागे; परंतु पीर "मारको कुछ भी गृहके यधनको मा दूरसे छोए देना चाहिये । वास भय न हुमा। ये उस सपंको पकड़ कर उसके साथ जगत्में पूज्य मान बार धेयान है, जो युवा भयापा मीदा करने लगे। इनके इस तरह के बल को देख यह देय दुर्गय कामरूपा शवको मच्छो सरद नारा कर चालते • भनि प्रसन्न हुआ और बहुत भांति स्तुति कर स्वर्गलोका है। ऐसा विचार कर गृहवासको कैसाम के समान गया। जान कर स्यामोने इसही स्पाग पर सपोवन जाना

सम्पपत्य और प्रत तथा अधिष्ठानके प्रभायसे | निश्चय किया।

छमारका पूर्ण उदासीन चित गृद-जालौ न ठहरा, यह इसके बाद मगु मरी माता पितादि एम्पियसि । जलमें कमलको सरद संसारसे निर्लिप्त प्दा । इसी शरद ममता जोड़ कर मारमा स्थिर हो अपने भन. ""महमे पत्तरे देयो रही पापे त्या भय करने लगे। भनित्य, मशरण, संसार, पास्य, भाददौ तस्य योग्यानि मतानि शारी" मन्पश्य, भागि, भानय, संवद निरासाज, बोधि ' (मार-पीत) | दुर्लभ, पनाम मायगामा म गितम