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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२९५

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महाविष्णु-महावीर स्वामी नक्षनवटित नराकार चक्र। एक मनुष्यदेहको अहित । ७ सञ्चान पक्षी, वाज। ८ हनुमानजी। ६ देवता। करके उसके मस्तक पर ७ नक्षत्र, मुसमें ३, हृदयमें ५ | १० करवीरपुष गृक्ष, कनेरका गाछ। ११ एकवीर वृक्ष । और दोनों हाथ तथा दोनों पैर में तीन तीन करके १२, १२ कोकिल, कोयल। १३ जैनोंके वीवीसवें जिनेन्द्र। नक्षत्र विन्यास करना होगा। इसीका नाम महाविपुव. महावीर स्वामी देवो। (वि०) १३ बहुत बड़ा योर । चक्र है। सभी नक्षतांक १, २ इत्यादि रूपसे यथाक्रम महावीरचरित (सं० पली०) महाकवि भवभूति-प्रणीत विन्यास करना होता है । पीछे उस मनुष्यके किस प्रसिद्ध श्रीरामचरिताख्यान । अङ्गमें कौन नक्षत्र पड़ा है, उसे देख कर फल निर्णय | | महावीरचरित ( सं० पलो० ) अनतीर्थङ्कर महावीरको करना होगा। फल इस प्रकार है--मस्तक पर राज- जीवनो। सुख, मुखमें पटुता, हृदय में धनाध्यक्षता, दाहिने हायमें अर्थलाम, पाये में महादुःख, दाहिने पैरमें सुप्त और पाएं । महामार वरन शातपुर्व वादाचायमद । महावीर यर्द्धन शातपुत्र-बौद्धाचार्यभेद । पैरमें भ्रमण। इस प्रकार अपने अपने नक्षत्र द्वारा फल | महाबोर स्वामो-जनों के चौवीस तीर्थङ्करों में से अन्तिम जानना होगा। जिस किसी नक्षत्रका इस चक्रके अनु- तीर्थङ्कर, चौबीसवें जिनेन्द्र। भगवान महावीर' नाम- सार फल जानना हो, यह नक्षत्र उस पुरपके किस अंग' से भी इनकी प्रसिद्धि है। पर्याय-चीर अतिवीर, पद्ध- पर पड़ा है, पहले वही स्थिर कर पोछे उस अड्के सुख- मान और सन्मति । हरिवंश-सूर्य राजा सिद्धार्थ के औरस दुःखादिका जैसा फल ऊपर बतलाया गया है, उसीसे। और महारानी विगलाके गर्भसे भगवान् महाबोरका फल निर्णय करना होगा। (ज्योस्तित्त्व ) । जन्म हुआ था। जन-हरिवंशपुराण' तथा 'महावीर महाविष्णु (संपु०) महाश्चासौ विष्णुः सर्वव्यापक- पुराण' में लिखा है,-सिद्धार्थ नामक एक प्रबलपरा. श्चेति । महाविराट । (भागवतामृतकणिका ) । फ्रान्त प्रजानिय नरपति थे, जो मति-धूत-अवधिधानफे महाविहङ्ग (स' पु० ) गरुड़। । स्वामी तथा जैन धर्मके परम भक्त और बड़े हो महाविहार ( स० पु०) सिहलद्वीपके अनुराधापुरस्थ दानदार थे। हरिवंश वा नाथवंशके आप सूर्य थे और काश्यप कुलके तिलक। उनकी पटरानीका नाम धौद्धसङ्घाराममेद। यहां बोधिवृक्ष प्रतिष्ठित है। विशलादेवी था। महारानो त्रिशला अत्यन्त गुणवती, महावीचि (स.पु.) न विद्यते चाँधिः मुसं यन, महान् रूपचनी, जैनधर्म मक और पतिको अति प्रिय यो। वीचिरत्न। मनुके अनुसार एक नरकका नाम । त्रिशलाका पक नाम प्रियकारिणो भी था। ये पूर्व सचिव "नरकं कानसत्रञ्च महानरकमेव च । पुण्यके प्रतापसे ही ऐसे मोक्षगामी और जगत्के सावन महावाचि तपन संप्रतापनम् ॥" ( मनु ४८%) कल्याणकारो तीर्थदर पुत्र को जन्म देने में समर्थ हुई पा। नरक देखा। एक दिन विशला सो रही थीं, सोनेमें रात्रिके शेरमागमें महावीज (संपु०) पियाल वृक्ष, चिरौंजी का पेड़। उन्होंने सोलह शुभ स्वप्न देखे, जो भगवान् महावीर महायोग्य (सं० फ्लो०) वांजाय साधु इति यत्, महत् से अहिंसाधर्म-नवारक पुरुप-पुङ्गवके गर्भ में मानेको योज्यं । विटप, मुष्क और पक्षणका मध्य भाग। सूचना देते थे। महायोत (सं० पु०) पुराणानुसार पुष्कर द्वोपके एक आषाढ़ शुका ६, उत्तरापाढ़ नक्षनमें श्री महावीर पर्वतका नाम । (लिङ्गपु० ५३।२६) । स्वामोकी आत्मा १६वें स्वर्ग (अच्युतस्वर्ग) से चयन महायोर ( पु०) योन पक्षिण ईरयताति ईर-क, ततो' पूर्वक माता विशलाके गर्भ में माई । जिम समय महावीर महाश्वासो चीरश्चेति फर्मघा०। १ गयड़ । २ सिंह। स्वामी गर्ममें थे, उस समय स्वर्गको देवियां माताकी ३ गौतम बुद्धका एक नाम । ४ मनुके पुत्र मसानलका सेया करतो और नाना प्रकार मनोरम कथाएं सुनाया एक नाम । ५ वन । ६ श्वेत तुरङ्ग सफेद घोड़ा। करती थी। अनन्तर चैत्र शुक्ला त्रयोदशी दिन तीर्यदूर