२८०
महिपनी-महिषासुर
महिपघ्नी ( स० स्त्रो०) महिपं महिषासुरं हन्तीति हन महिषासुर (सं० पु०) महिष एव महिपाख्योया असुर।
बाहुलकात् टक डीए । भगवती दुर्गा। . मसुरभेद, रंगासुरका लहका।
"महिपनी महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनि। ____ महिषासुरफी उत्पत्तिके सम्बन्धमें फालिकापुराणमें -
आयुरारोग्य विजय' देहि नमोऽस्तुते ॥" (दुगोत्रवपद्धति)। इस प्रकार लिखा है-रम्भ नामक किसी दैत्यने महादेव
महिपत्व ( स०सी० ) महिषस्य भावः त्व। महिपका को माराधना फरके उन्हें प्रसन्न किया। महादेवने ।
भाव वा धर्म।
उसे वर मांगने कहा। इस पर अपुत्रक रम्भासुर मोला,
महिपध्वज ( सं० पु०) महिपो ध्वजश्चिह्न वाहनत्वेन | 'देव ! , मैं आपसे और कोई भी यर नहीं चाहता, सिवा
यस्य । १ यमराज । २ जैन शास्त्रानुसार एक अर्हतका इसके कि आप मेरे घर पुत्ररूपमें उत्पन्न हों और
नामा
बिलोकमें मजेय, चिरायु, यशस्वो, श्रीमान् और सत्य.
महिषपाल (स'० पु०) महिपं पालयति पालि-गन् । प्रतिश वने। महादेवने 'तथास्तु' कह कर इसे स्वीकार
महिप पालक, ग्वाला।
किया।
महिपात्स्य ( स० पु०) मत्स्यविशेष, एक प्रकारको ___ रम्भासुर वर पा कर बहुत प्रप्त न हुमा और अपना
मछलो जो काले रंगको होती है। इसके सेहरे पड़े घर लौटा। राहमें एक युवती ऋतुमतो महियो पर
वड़े होते हैं। यह वलयोर्यकारी और दीपनगुण युन। उसको निगाह पड़ो। रम्माने कामसे पीड़ित हो उसके
मानो जाती है।
साथ सम्भोग किया। महिरोके गर्म रह गया। यथा-
महिषमर्दिनी ( स० स्त्री० ) महिपं महिपाल्पमसुरं मृदना समय उसो गर्भ से महिपासुरको उत्पत्ति हुई। महिपा-
तीति मृद णिनि-डीए । दुर्गा । इन महिषमर्दिनी देवीकी सुर सब प्रकारके गुणों से सम्पन्न हो सुरासुरका राज्य
पूजा गटाक्षरी मन्त्र द्वारा करनी होती है।
भोग करने लगा। महिषासुर घोर मापायो धा। एक
"भापडं वियत् सनयने श्वेता मर्दिनि ठद्वयम् । दिन यह मनमोहिनीरूप धारण कर कात्यायन मुनिके
अष्टातरी समाख्याता विद्या महिषमर्दिनी ॥" ( तन्त्रसार )। आश्रयमें गया। वहां मुनिके शिष्यों को लुमा कर उसने ।
तन्त्रसारमें इन को पूतादिका विस्तुत विवरण लिया | उनके तपमें बाधा डालने को कोशिरा का। इस पर :
है। इनका ध्यान-
हिमालय-शिखावासी मुनियर फास्यायन पडे. विगडे,
"गावडोपन्तसन्निभां मणिमयकुण्डलमण्डिता और उसे शाप दिया कि, 'तुम रखीफे हाथसे मारे
नौमि भालविलोचनां महिषोत्तमाननिषेदुषीम् । जाओगे।' उसो अभिशापके फलसे यह भगवतो दुर्गा
शङ्खचकृपाणखेटकवाण कार्मुकशुसकान्
देवो के हाथ मारा गया।
तर्जनीमपि विनती निजवाहुभिः शशिशेखराम् ॥" ___ महिषासुरने तोन यार जन्म लिया और तीनों हो
इसी ध्यानसे महिपमहिनोकी पूजा होती है। . वार देयोने तीन रूप धारण कर उसको मारा। देवोका
महिपमहाक (सं० पु०) शालिघान्यविशेष, एक प्रकार पहला र उप्रचण्डा, दूसरा भद्रकाली भोर तीसरा रूप
का जड़हन धान ।
दुर्गा था।
महिषवल्लो (स. स्त्रो०) महियराब्द वाच्या यलो, शाक _____घर पा फर रम्भामुरके लड़के महिषासुरने जव देव-
पार्थिवादिवस् समासः। लताविशेष, घिरेटा । सस्कृत असुरोंके ऊपर अपना पूर्ण प्रभुत्य स्थापन किया, तप एक
पयाय-सीम्या, प्रतिसोमा, मन्त्रयल्लिका, पाडशाखा दिन उसने हिमाल र पहाड़ पर सोते में एक भीषण म्यप्न
महिषयाहन (स० पु०) महिपः याहनं यस्य । यमराज । इस प्रकार देखा था, 'भगवतो भद्रकालोका रूप धारण
महिपाश (स'. पु.) १ भैसा गुग्गुल । २ भगन्दर। कर उसका शिर फारती है और जो रस निकलता है
महिपाक्षक (सं० पु०) गुग्गुल ।।
उसे पी कर अपनी प्यास बुझाती है। नींद टूटने के
महिपाईन (स० पु०) स्कन्दका एक नाम ।
वाद यह बहुत डर गया और तभीसे भगवतीकी उपासना
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३१८
Jump to navigation
Jump to search
यह पृष्ठ शोधित नही है
