पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४२४

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| माया ३७६ पाधवसिंह-माधवाचार्य अधीनस्य यहुतसे गांव दिये थे । अव माधवसिंह राज्याधिकारकालमें उन्होंने महाराष्ट्र-नेना आपाजी . पितृराज्य दीको छोड़ स्वाधीन भावसे कोटाराज्यका सिन्धिया और मल हार होलकरके साथ युद्ध करके अच्छी शामन फरने लगे। इसी ममयसे वदी और कोटा पे याति पाई थी। राज्यरक्षाके लिये भी घे कई पक युद्ध दोनों भिन्न भिस राज्यमें परिणत हुआ। पहले कोटा करके अपनो योगताका प्रकष्ट निदर्शन दिखला गपे हैं।' राज्य यूदोराज्यके सामन्त शासित प्रदेशरूपमें गिना जिस दिन अम्बरसेनाके साथ जाटसेनाका घमासान युग जाता था। छिड़ा उस दिन मातेरोके सामन्तने, जो माधयसिंहसे हरगजय शके इतिहाससे जाना जाता है, कि १५६५ सताये गये थे, स्वजातिफा अपमान समझ कर दलवलके ई०में माधयसिंहका जन्म हुआ। उन्होंने अपने घीरत्वसे | साथ अंग्बरपतिका साथ दिया। जाटराज परास्त हुए। पारितोषिकस्वरूप सम्राट्से कोटाराज्य तथा राजाकी, माचेरोके सरदार प्रतापसिंहका सम्बरराजने बड़ा सम्मान उपाधि पाई थी। किया। पहले कोटामें भीलोंका बड़ा प्रभाव था । उस समय ____ इस युद्धफे चार दिन याद ही अमाशयरोगसे माधय. सामन्त बहुत थोड़ी-सी जगह ले कर ही राज्य करते थे। सिंहको मृत्यु हुई। उन्होंने सत्तरह घर्ष तक राज्य कोटाके प्रथम स्थाधीन चौहान राजा माधवसिंहने किया था। कुछ दिन और वे यदि जीषिट रहते, तो दिलोभ्वरके अनुप्रद और अपने पाहुवलसे राज्य बढ़ाया। उनके छोटे छोटे लड़कों के शासनकालमें अराजकताके उनके मृत्युकालमें कोटाराज्यको मोमा मालय और हर कारण कच्छवाद राज्यको शासनशक्ति ऐसी क्षीण न हो चतोकी सीमा तक विस्तृत थी । १६८७ ई०में मुकुन्दसिंह,! जाती। ये पिताफे जैसे विद्योत्साही और ज्योतिशाख मोहनसिंह, जुझाड़सिंह, फुनिराम सिंह और फिशोर- पारदर्शी थे। उनके शासनकालमें जयपुरराज्यमें दूर सिंह इन पांच पुत्रों को छोड़ घे परलोक सिधारे। दूर देशोंके पण्डित था कर यस गपे थे। .... माधयसिंह-गढ़ादेशके एक राजा। पृथ्यीसिंह और प्रतापसिंह नामक दो स्त्रीके गर्मसे माधवसिंह---एक हिन्दू राजा। ये यवनपारिपाट्या राज- | उनके दो पुत्र थे। . . . . . रोति नामक अन्धके प्रणेता दलपतिरायफे प्रतिपालक थे। माधवसिंह राजा-देवविलासार्या नामक अन्यके प्रणेता। . माधवसिंह-१ ग्रेचर पद्धतिफे रचयिता ! २ शब्दकौमुदी ! माधवसेन- एक प्राचीन कधि। .. नामक प्रन्धके प्रणेता। माधवसेन-बङ्गालके सेनवंशीय पफ राजा। माधयसिंह--जयपुरके कच्छ्यावशीय राजा सयाई जयः । सेनराजयगा देगे। सिंहफे पुत्र । ये अपने मामा मेवाड़ की रानाकी सहायता माधवसोमयामिन् ( स० पु० ) एक पण्डित । । । से भाई ईश्वरीसिंहको राजतसतसे उतार अभ्यरके सिंहा- . . माधवाचार्यदेतो। • सन पर बैठे। इस समय राजा सूर्यमल जाटके प्रथम माधवानन्द-शाम्मय कल्पद्रुमफे रचयिता . पुव जघाहिरसिंह भरतपुरके सिंहासनको अलंकृत फर | माधवाचार्य विद्यारण्यस्वामी )-भारतवर्ष के एक असा. • रहे थे। वे माधयसिंहफे वियद्ध खड़े हुए और विना| धारण पण्डित, घेदक विगात भाष्यकार सायणानायके उनको अनुमतिके जयपुरराज्य होते हुए दलयलफे साथ बड़े भाई। १४यों सदोमें दक्षिणको तुगभद्रा नदोके पुष्कर तीर्य पहुंचे। यहां मारवाड़पति विजयसिंहके ] सोरस्थित पम्पा नगरोमें इनका जन्म हुभा था। इनके साथ इन्होंने मित्रता कर ली। राजाकी ममाही रहनेपर पिताका नाम मायण और माताका . नाम थोमतो था। . भी जयादिरने दलदर्पित हो जरा भी परवाह न की मोर विजयानगरम् के राजा घुफरायफे पे फुलगुष तथा प्रधान • फिरसे जयपुरराज्य दो कर ही लौटे। इमो सुनसे दोनों मन्त्री थे । भारतीतीफे पास इन्दोंने संन्यासको में घमसान युद्ध छिट गया। युद्धर्मे हार ना कर जया-दीक्षा ली थी। २५० रोमठो शङ्करा..' "दिर भागे। , |चार्यके पद पर अमिपिन हुए । हालकणाष्ट्रा भाषा