मानसार-मानसिंह ४१३ मानसार ( स० पु०) मालवराजके एक पुत्रका नाम।। अम्बरराजधानी में इनका जन्म हुआ। कर्नेल यह मानसालय (सं० पु० ) मानसे आलयो यस्य । हस। साहबके मतसे ये भगवान् दासके छोटे भाई जगत्सिह- मानसिह-वहुतसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थकारों के नाम ।। के पुत्र थे। भगवान्ने इन्हें गोद ले कर पुत्रके समान १ आचारविवेकके प्रणेता । २ वृन्दावनमारीक रच.! लालन पालन किया और अन्तमें चे इन्हें राज्यका उत्तरा- पिता । ३साहित्यसारके प्रणयन-फर्ता। धिकारो बना गये। मुसलमानी इतिहासमै उनके इस मानसिंह-ग्वालियरके एक राजा। इन्होंने सम्राट शाह- पुत्रत्व सम्बन्धमें किसी प्रकार विभिा मतका उल्लेम्न जहाँके अधीन रह कर चम्बाराज पृथ्वीचांदकी सहा- नहीं देखा जाता है। हिन्दशास्त्रमें दत्तक और औरसजात यतासे तारागढ़ के राजा जगत्मिहको पराजित किया पुत्रके अधिकारित्व सम्बन्ध में कोई विशेष प्रभेद न रहने- और उनके अधिकृत दुर्ग आदिको तोड़ फोड़ दिये। के कारण हमने मानसिहको भगवान् दासका पुत्र हो मानसिंह-ग्वालियरके एक दूसरे राजा । ईस्वीसन् । मान लिया है। १५वो शतान्दोके अन्तमें अथवा १६वीं शताब्दीके शुरूमें । चीर और उन्नतचेता भगवानके यनसे लालित हो वे रोजसिंहासन पर बैठे थे। कर मानसिंह वंशोचित वोरखतका अवलम्यन फरनेमें मानसिंह--गुजरातके अन्तर्गत सालेर और महेर नामक | समर्थ हुए थे। यचपनसे हो युद्धविद्यादि उच्चशिक्षा पहाड़ी मुल्कके एक सामन्त राजा। गुजरातमें अमी- इनको उत्कट इच्छा थी। उसी प्रतिभावलसे कच्ची रन इ-सदाने जिस विद्रोहयहिको सुलगाया, मालिक, उनमें ही इन्होंने मुगलराजसभामें उय सम्मान प्राप्त मकयुलने विद्रोहियोंको पराजित, शेष सरदारोंको किया था। ये वादशाहके सहकारिरूपमें कुछ गुरुतर पकड़ और घन्दी कर गुजरातको उस विद्रोहवाहिको , कार्य करके उनके विशेष प्रोतिमाजन हुए थे। उन्होंने अपने धुमाया था। भुजवलसे खोतेनसे समुद्र पर्यन्त सारा प्रदेश मुगल. मानसिंह-गुजरातके अन्तर्गत झालावार प्रदेशके एक साम्राज्यमें मिला कर अच्छा नाम कमाया था। बङ्गाल, सामन्तराज । इन्होंने सुलतान बहादुरशाहके विरुद्ध उड़ीसा, आसाम और काबुलको जीत कर इन्होंने हो खड़े हो कर विरामगांव, मण्डल और बड़वान आदि : मुगलसाम्राज्यको सीमा बढ़ाई थी। भाग्यलक्ष्मीको स्थानोंको लूटा तथा शिलादार शाहजीको निहत किया।। प्रसन्नतासे ये वङ्गाल, विहार, उड़ीसा और कावुलके मानसिंह-योधपुरके राठोरवंशीय एक राजा। ये यशो-1 शासनकर्ता हुए। फिरिस्ताने लिखा है, कि मानसिंह- मन्तसिंहके पुत्र और उदयसिंहकं पौल थे। इन्होंने को जिस समय कुमारको उपाधि थी, उस समय इन्होंने मानपुराराज्य बसाया । इनके चंशधर मानपुरायोध' विहार, हाजीपुर और पटनाका शासनदण्ड अपने हाथ कहलाते हैं। लिया था। मानसिंह-मुगल-बादशाह यकवरशाहके प्रधान सेना सम्राट अकबरशाह अपने शासनकालके ६ठे यमें पति। ये कच्छवाहवंशीय अभ्यराधिए राजा भगवान् (६६६ हि०में ) मुइन-इ-चिस्तीका समाधिमन्दिर देखने. दासके पुत्र और राजा विहारीमल्लके पौल थे। पिताके के लिये अजमेर गये । विहारीमलने सपरिवार शडा. जीते जी इन्होंने पुमार मानसिंह नामसे इतिहासमें : नीरमें आ कर उनका स्वागत किया। राजभक्ति से प्रसन्न प्रसिद्धि पाई थी। भगवान्के मरने पर शाह अकयरने ! हो कर वादशाहने उन्हें राजोचित सम्मान दिसलाया इन्हें राजाकी उपाधिसे अलंकृत किया। दिल्लीश्वरने, था। सम्राटके अनुरोधसे विहारीमलने अपना कन्याको इनके वलयोर्य पर संतुष्ट हो, इन्हें बङ्गालका शासनकर्ता उन्हें समर्पण किया। इसके बाद पुत्र भगवान् और बनाया। अकबर प्यार-धशतः इन्हें फरजन्द (पुत्र).कहा। पौत्र कुमार मानसिंहको साथ ले राजा विहारीमल्ल रतन करते थे। दिल्लीदरवारमें इनको 'मोर्जा राजा' नामसे नगरमें सम्राट्फे समीप उपस्थित हुए । अनन्तर ये तीनों ही प्रसिद्धि थी। । ही मागरा राजधानीकी ओर सम्राटके साथ गये थे। ____ol. III. 10+
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