मान्द्रान राक्षसराज रायणका नाश करनेके लिये राम-/ मलवार और त्रियांकुड़ प्रदेशमें वास करते हैं। कोचीनमें चन्द्रने जिस धानरफुलको सहायता ली थी सम्भवतः यहदियोंका उपनिवेश स्थान भी कई सदी पहले विड़ लोग ही उस यानर जातिके रूपमें कल्पित हुए | हुआ था। है। इस अनार्य जातिकी-उनको आकृति प्रकृति देख ___भारतीय बाणिज्य-लोलुप पुर्तगीज सौदागरोंने इस फर-वानरवंशसम्भूत कह कर श्लेपोक्ति करना असङ्गत मलवार उपकूलमें आते ही आशानुरूप पण्यद्रष्य संग्रह प्रतीत होने पर भी सभ्यतम रामचन्द्र के अनुचरोंके निकट कर लिया था। पुर्तगीज देखो। निकृष्टता सम्पादन करना ही उनका उद्देश्य था। जो ___ इसके बाद बहुत विघ्न बाधाओं को झेलते हुए अङ्ग- कुछ हो, रामचन्द्र के शुभागमनसे इस देशकी अनार्य रेजोने करमण्डल उपकूल में अपनी गोटी जमाई। यहां द्राविड़ जाति हिन्दूधर्म में दीक्षित हुई थी, ऐसा अनुमान साइबके बुद्धिकौशलसे फरासो प्रतिनिधि डुप्लेकी राज्य किया जाता है। इसके सिवा द्राविड़ जातिको प्राची लाभको आशा पूरी न होने पाई। फिर सर आपरकूट- नताका प्रमाण और कुछ भी संग्रह नहीं किया जा की अयर्थ कूटनीति, हैदरकी अदम्य वीरता, टोपू सुल- सकता। तानको जिघांसा और वीरवर घेलिङ्गटनके जयप्रयण. इसके बाद यहां धौद्धधर्मस्रोत वहने लगा। बौद्ध- जोवनको फार्यपरम्परा दिखाई देती है। सच पूछिये परिवाजोंने दाक्षिणात्यमें जो प्रभाव फैलाया था | तो उन्हीं सब घटनाओं के बल अङ्गरेजोंने दाक्षिणात्य उसका विवरण दूसरी जगह दिया गया है। आधिपत्य फैलाया था। १८०६ ई०के वल्लूरविद्रोहके बाद यौद्धधर्म देखो। मान्दाजमें और कोई घटना न घटो। ___ वर्तमान ऐतिहासिकयुगमें मुसलमानी अमलदारीके वाद यहां महाराष्ट्र जातिका अभ्युदय हुआ था। विभिन्न इतिहास पढ़नेसे मालूम होता है, कि इङ्गलैण्डकी सर्वदमन राजशक्ति द्वारा मान्दाजमें शान्ति स्थापित समयमें विभिन्न राजाओं के शासनकालमें यहां धर्म और होनेसे पहले दक्षिण भारतमें और कभी भी एफच्छना. शासनकार्यका परिवर्तन होने पर भी यहांकी प्रचलित तामिल और तेलगूभापामें कोई हेरफेर नहीं हुआ। इस- धिपतिका शासन नहीं था। कुछ समयके लिये एक से साफ साफ मालूम होता है, कि द्राविड़ जाति यहां मात्र विजय नगरके हिन्दूराजाओंने यहां सर्वजनीन राज- शक्ति फैलाई थी। किन्तु दुरारोह गिरिसङ्कट तथा याहुत पहलेसे रहती आई थी। ___ यद्यपि यहांकी राजकीय घटानायलोका कोई धारा- उस पर्वतवासी दुई जातिके आक्रमणसे उनका साम्राज्य नएप्राय हो गया था। वाहिक इतिहास नहीं मिलता, तो भी इतना जरूर कहा जा सकता है, कि प्राचीन भारतीय इतिहासको घटना दक्षिण भारतके प्राचीनतम इतिहासका पर्दा उठाने- दक्षिण भारतमें ही घटी थी ये सय घटनायें सचमुच | से हम लोग देखते हैं, कि यह प्रेसिडेन्सी बहुतसे छोटे ही यहुत विस्मयकर थी। दाक्षिणात्य देतो। । छोटे राज्योंमें विभक्त थी। उनमें एकफे अभ्युत्थानसे विभिन्न देशीय राज-इतिहास पढ़नेसे मालूम होता दूसरेका अधःपतन हुआ था। पाश्चात्य ऐतिहासिकोने ६. कि मलयार उपकूल दाक्षिणात्यके वाणिाज्यभाएडार. जिस तामिलप्रदेशको दायिह यतलाया है, यह भी एक रूपमें गिना जाता था। राजा सलोमनके शासनकाल- समय पाण्ट्य, चेर और चोलराज्यमें विभक्त था। में राधा उनके वाद तामिल नामक भारतीय पण्यद्रष्यों को मंगेस्थेनिस आदि भारत भ्रमणकारी प्रोकयासियों- . यूरोपमें यात प्रसिद्धि थी। सिरियायासी ईसाई और के नमणवृत्तान्तसे मालूम होता है, कि कलिङ्ग, अन्ध्र भरवशके मुसलमान याणिज्य करनेको इच्छासे बहुत और पाण्डय-राज्य उस समय दक्षिण भारतमें बहुत बढ़ा पहलेसे ही दाक्षिणात्यफे पश्चिम उपफूलमें पा कर यस पढ़ा था। वह अन्धराग्य यसमान मान्द्राम-प्रेसिडेन्सी- गपे थे। उनके यंशधर आज भी मिश्रधमी हो फर! के उत्तर तथा कलिङ्गाज्य समुद्रफे किनारे बसा हुमा ।
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