मान्द्रान ४२० या। किंतु उन प्रभावशाली तीनों राज्योंकी विस्तृति | मान्द्राजके उत्तरका समूचा चोलराज्य छोटे छोटे 'कहां तक धी, ठीक ठोक मालूम नहीं। सामन्तराज्यों में विभक्त हो गया। ये सब सामन्तराज. अन्ध्र, कनिङ्ग और पापड्य देखो। गण एक तरह स्वाधीन भावसे हो राज्यशासन करते हैं। वौद्ध-सम्राट अशोकके शासनकाल में हम लोग चोल. वे लोग आपसमें रात दिन युद्धमें उलझे रहते थे। और चेर । केरल) राज्यका प्रभाव देखते हैं। सम्म मुसलमान राजाओंने अच्छा मगैका देख कर दाक्षिणात्य चनः उन दोनों सामन्त राज्योंने पाण्ड्यराज्यको अघो- पर चढ़ाई कर दी। इधर जिस प्रकार मुसलमान लोग नता तोड़ कर स्वाधीनता ध्वजा फहराई थी। दक्षिण भारतमें अपनी प्रतिष्ठा जमानेके लिये प्रद्धपरिफर चोल और केरल देखो । हुए थे, उधर उसी प्रकार होयसाल यल्लालवंशीय राज- उसके बाद पल्लवराजवंशका गभ्युदय हुमा। उन्होंने गण चोल और केरल राजाओंको राज्यभ्रष्ट करके पाण्ड्य मान्दाजके समीप एक राजधानी वसा कर महामभावः। और गहराज्यमें अपना प्रभाव फैला रहे थे । १४यों शाली एक विस्तीण साम्राज्यको स्थापना की थी। शताब्दीके आरम्भमें हम दाक्षिणात्यके विभिन्न राजवंश- प्रबल प्रतापी पल्लवोंके हाथसे कलिङ्ग और अन्ध्रराजवंश का इस प्रकार परिचय पाते हैं। भारतके सबसे दक्षिण- का अधःपतन हुआ। पल्लवबंशके वाद भारतका पूर्वी में एकमात्र पाण्ड्य राजवंशका प्रभाव फैला हुआ था। उपफूल छोटे छोटे राज्यों में विभक्त हो गया था। तोर और मान्द्राज-प्रदेशमें डूबता हुआ गौरव रवि क्षीण ___ पलय देखो। । ज्योति दे रहा था। प्रायोद्वीपके मध्यांशमें प्रतापान्यित पलवराजवंशका सौभाग्यसूर्य जव मध्यगगनमै | होयसाल वल्लालोंने राजशक्तिको दृढ़ कर रखा था; किन्तु उगा हुआ था, तब पश्विम चालुक्यराजने चोल और उनके राज्यके उत्तर अराजकता सम्पूर्णरूपसे फैली हुई पल्लवराज्य पर धावा बोल दिया । किन्तु चालुफ्य-सेना थी। बल्लाल देखो। में प्रवल पराक्रम रहते हुए भी उक्त दोनों राज्योंका कुछ। इन सब प्राचीन राजवंशको उत्पत्तिके सम्बन्धमें भो अनिष्ट नहीं हुआ। वीं शताब्दीमै पल्लवराजयंशके | वहांके राजोपाख्यानमें अलौकिक प्रवाद आरोपित हुए भाग्यने पलटा पाया। चालुक्य राजवंशसे वे परास्त । हैं। घे सब गाण्यान विश्वासयोग्य नहीं होने पर भी हुप । तभीसे ले कर ११वीं सदी तक यहां पूर्व चालुपय- उन सब राजाओंके उत्कीर्ण शिलाफलफ, ताम्रशासन राजवंशका आधिपत्य रहा। इस समय काञ्चीपुरके और देवमन्दिरादिमें भास्करकीर्तिके जो अपूर्व निदर्शन पल्लवगण चालुफ्योंके हाथसे परास्त हुए। शेपोक्त । हैं उन अतीत राजवंशधरों के कार्यकलापका प्रान्त घालुपय राज दाक्षिणात्यमें सात पागोडा बना कर परिचय देते हैं। अपनी वंशकीतिको अचल कर गये है। पीछे इन मुसलमानोंके अभ्युदयसे हो यहाँका धारायाधिक दाक्षिणात्यवासी पल्लवोंने फिरसे चालुपयोंको भगा कर इतिहास मिलता है। दिल्लीके खिलजीवंशीय श्य सम्राट अपनी राजशक्तिको अक्षुण्ण रखा। अलाउद्दीनके विख्यात सेनापति मालिक काफूरने होय. ११वीं शताब्दीमें चोलराज्य विशेष समृद्धिशाली हो। साल वल्लालचंशीय राजाको परास्त कर दाक्षिणात्य गया। चोलराजने अपने वाहुवलसे दक्षिणस्थ पाण्ड्य | फतह किया। उन्होंने अपने पाहुवलसे कुमारिका अन्त राजवंश, केरलफे गड्लवश तथा सिंबलराजको अपने | रोप तक के समस्त भूभागोंको लूटा और पूर्व उपकूलस्थ अधीन कर लिया था। धीरे धीरे उन्होंने पूर्व चालुपय जितने सामान्तराज थे उन्हें परास्त कर मुसलमानोंकी पंशषे अधिकृत उडीसा तक तथा पल्लवराज्यके कुछ अधीनता स्वीकार कराई थी। मालिक कापुर देखो। अशीको अपने राज्यमें मिला लिया। मुसलमानी सेनाकै दाक्षिणात्यसे चले जाने पर विजय- इस प्रकार चालुक्यवंशका अधिकृत विस्तृत राज्य नगरके हिन्दूराजवशने मस्तक उठाया। उन्होंने दाण. धोरे धोरे हाथसे जाता रहा । फिर १३वीं सदी । णात्यके दूसरे दूसरे हिन्दुराजाओंको परास्त कर तुग-
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