सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४२८ पान्द्राज भट्टाक किनारे राजधानो बसाई थी । जव उनका । गीजोंकी हटी फूटी कोठी भादिको ले कर याणिज्य मौभाग्य-सूर्य मध्य गगनमें उगा हुआ था, उस समय ये | चलानेको चेप्टा की। उनके याद १६१६ ई०में अंगरेज प्रायः समस्त मान्दाजप्रेसिडेन्सीका शासन करते थे। | सौदागरोंने फालोकट और फागनुर आ कर याणिज्य विजयनगर देखो। व्यवसाय चलाने के लिये कोठी खोली १ . १६८३ ई में ... विजयनगरराज दो सदी तक प्रबल प्रतापसे तेलोचेटीमें अंगरेजोंका पश्चिम उपकूलका याणिज्य राज्यशासन फरके १५६५ ई०में दाक्षिणात्यके चार, भाण्डार स्थापित हुआ। १७०८ ई०में कोठीको रक्षाफे मुसलमानराज शकी मिलित शक्तिसे अधःपतनको लिये उन्हें कुछ जमीन मिली थी। अगरेजोको उन्नति- प्राप्त हुया। के साथ साथ पुर्तगीजोंने गोमा प्रदेशमें और ओल. . अफगान मुसलमानोंके बाद मुगल और महाराष्ट्र- न्दाजोंने स्पाइस द्वीपमें जा कर मांसारिक विप्लयसे दाग 'शक्तिकी दाक्षिणात्यमें तूती बोलने लगी। इस समयसे | खींच लिया। दाक्षिणात्यके द्वाविड़ीय राजवंशीको जातीय जीवनका १६११ ई०में अंगरेजोने मछलीपत्तन धन्दरमें तथा अवसन हुआ। कृष्णा जिलेके पेट्टपोली (निजामपत्तन) नगरमें मा फर . मुगल बादशाह औरङ्गजेबने कुमारिका तक अपना फरमण्डल उपकूलका याणिज्यांश ग्रहण किया। पोछे अधिकार फैला तो लिया था, पर ये यधार्थमें उन जीते। उन्होंने नेल्लूर जिलेके अरमागांव यन्दरमें कोठी खोली। हुए. प्रदेशोंको अपने साम्राज्यमें न मिला सके थे। १६३६ ई०में चन्द्रगिरिके हिन्दूराजासे अनुमति ले कर दाक्षिणात्यसे औरङ्गजेयके लौटने पर यदाके सभी राजे अगरेजोंने मान्दाजमें एक और कोठी खोली थी।',

एक पाकर स्वाधीन हो गये। सम्राट्फे दौण्ड १६७२ ई०में फरासियोंने पुंदीचेरीको परीदा । उम. .

प्रतापसे भय सा कर भी उन्होंने अपने अधिकृत के दो वर्ष याद उन्होंने यहां एक उपनिवेश बसाया था। प्रदेशों का स्वाधीनभावसे शासन करना छोड़ा नहीं । यहाँ । फरमण्डल उपकूलमें दोनों विभिा वणिक्सम्प्रदाय शान्त तक, फि. यादशाहके प्रतिनिधि निजाम भी अपनेको भावसे वाणिज्य व्यवसाय चलाते थे, उनमेसे किसीकी म्वाधीन बतलानेसे बाज नदों आये । सामन्तप्रधान कर्णाः' भी राज्य पानेकी इच्छा न थी।' टकके नयाय आर्षद राजधानी में रह कर साधीनभावसे १७४१ ईमें यूरोपमें अष्ट्रियाका सिंहासन ले कर राज्यगासन करते थे। तमोरमें शियाजीके एक घंश- अगरेज और फरासीसीमें झगड़ा खड़ा हुआ । उस सूत्र धरने राजपाट पसाया था। पाण्यराज्यमें मदुराके से भारतमें भी यंगरेज और फरासिमी आपसमें लड़ने नायगायनमा प्रभुत्व था । मध्य-अधित्यकाभूमिमें एक लगे। १७४६ में ला योदेनेने मान्दाजफे सेनाधाम हिन्दु-सरकार अपनी धाक जमानेको कोशिश कर रहे | पर ग्रमण किया और उसे जीत लिया । सेएट डेविड थे। भागे चल फर यही स्थान महिसुरराज्य नामसे दुर्गको छोड़ कर और समी स्थान अंगरेजोंके हायसे पजने लगा। राजनीतिफशल डुप्लेने जय देखा, कि जाते रहे। कर्णाटकके नयाय, अगरेजोंकी धोरसे फरा- दाक्षिणात्यफे राजे मुगलशक्तिको अधीनता स्वीकार सियोंके साथ लड़ने लगे। किन्तु सेएट थोमोफे युनमें फरनेको राजी है, तब उन्होंने दाक्षिणात्यमें यूरोपीय | दार खा कर घे भाग गये। प्रभाव फैलाना चाहा था। - १७४८ में आयलानापले (Air-in chancile )को पुर्तगीज नाविकप्रधान भास्को डि गामा १४१५६० सन्धिके अनुसार भारतमें फरासी और अंगरेजोंक बीच को २०वीं मईको शालिस्ट पहुंचे। प्रायःपक सदी तक मेल हो गया। मान्दज थांगरेजोको लौरा दिया गया। पुसंगोजीने मलयार-उपलका याणिज्य प्रयाद अपने | किन्तु इसी समयसै दोनों जातिये. मध्य जातीय विप. हायसे परिचालित दिया था । पुर्तगत प्रभाव का स्वपात हुआ। एक दूसरेका दोष दृढने लग गया। यिदुग होनेसे १७ सदा के प्रारम्भमें गोलन्दानि पुर्न / खण्डराज्योंका सिंहासनाधिकार ले कर दोनों में फिरसे