पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पान्द्राज ४३१ बुलु और मराठी भाषा घोलचाल करते हैं। द्राविड़ीय । वैकुण्ठ, सङ्कम, पलार और पैलन्तोरई नामक बांध: तथा मानार्य जातिमें बहुतेरे हिन्दू या बौद्धधर्मको ग्रहण कर ! कृष्णा, कावेरी और फर्नेलको विस्तृत नहर काटी गई। बहुत कुछ हिन्दू असे आचारसम्पन्न हो गये हैं। हिन्दू- मलाया इसके डेनम्यकम और यरुड़की दिग्गी. भी मात्र हो शैव या वैष्णय हैं। पहाड़ी जाति,से अधि. स्थानीय लोगोंके उपकारार्थ बनाई गई थी। कांश लिङ्कायत हैं। यहां बहुत पहलेसे ही ईसाधर्मका अनाजको छोड़ कर यहां नोल, कहया, सिनकोना प्रचार चला आ रहा है। यहांके सिरीय मिसनरियोंका और लवण तय्यार किया जाता है। मछलीपत्तन, मान्द्राम कहना है, कि एपसल सेएट टामससे यहां ईसाधर्मका और मङ्गलूर में सूतोके अच्छे अच्छे कपड़े बनते हैं। प्रचार हुआ। कोचीनमें प्राप्त एक आसिरीय भाषामें | वाणिज्यको सुविधाके लिये यहां रेलवे लाइन तमाम लिखित यो शताब्दीका वाइविल-ग्रन्थ केम्ब्रिजके दौड़ गई है। पहले जहाज द्वारा मान्दाजका वाणिज्य फिटज विलियम लाइबेरीमें रखा हुआ है। लिटल | व्यवसाय षङ्गालके साथ चलता था। अभी इष्टकोष्ट माउण्ट नामक पहाड़ परके प्राचीन गिरजेमें जो पड़वो साउथ इण्डियन, महिसुरस्टेट, नीलगिरि रोघी, मराठा- भाषामें उत्कीर्ण एक शिलालिपि पाई गई है उससे सिसटम, मङ्गलूर-गुन्यो आदि रेलवे लाइनके खुल जाने- मालूम होता है, कि मनिकोय या नेटोरिय ईसाइयोंने कई से. यहांका पण्यद्रव्य कलकत्ता, यम्बई आदि भारतको शताब्दी पहलेसे यहां उपनिवेश बसा रखा था। विभिन्न राजधानीमें भेजा जाता है। महात्मा फ्रान्सिस जेभियर, नाविलियस, येसकी, १६३६ ई०में अगरेज सौदागरोंकी कोठी जब तक स्कार्टिज, जिनिकी, स्कूलटज, सर्टोनियस, ओफाविक्रम नहीं खोलो गई थी, तब तक मान्द्राज ययद्वीपके पएटम- आदि प्रसिद्ध धर्मप्रचारकांके यतसे यहां ईसाधर्मका के कार्याध्यक्षों के अधीन था। १६५३ ६०में मिः भारत विशेष प्रचार हुआ था। लूथर मतानुयायी दिनेमारगण येकर यहांको कोठोके अध्यक्ष थे। उसी साल जय १७२८ ई० में तथा अगरेज १८१४ ई०में यहां पहले पहल | मान्द्राज प्रेसिडेन्सी रूपमें गिना जाने लगा, तय कर धमप्रचारार्थ पहुंचे थे। पीछे विभिन्न साम्प्रदायिक साहव यहाँके प्रथम गवर्नर नियुक्त हुए। १६५८ से स्काच, अमेरिकन और अंगरेजमिसनरी आये.। । १६८२ ३० तक वङ्गालको कोठी मान्द्राजके अधीन, यो। धान सरसों भादि अनाजोंके सिवा यहां अंगरेज नवाव सिराजुद्दौलाको अन्धकृपहत्याके समय लाइव और कर्मचारियों के यत्नसे काफी, चाय, तमाफू, सिनकोने| वाटसन मान्दाजसे कलकत्त आये थे। आदिको खेतो होती है। १८६५ ६०में सैदापेट नगरमै मान्द्राज जवसे अंगरेजोंके अधिकारमें आया, तबसे गवर्मेण्टको आदत खोली गई। यहां फपिकार्यको उन्नति-! जिन सव अंगरेज लाटोंने यहांका शासन किया था के लिये रुपियिद्याकी शिक्षा दी जाती है। उनके नाम नीचे दिये गये हैं। १८७५ ७६ ई में मनायटिके कारण प्रेसिडेन्सो.भर १ आरन येकर १६५३ १०.सन में दुर्भिक्ष पड़ा था। १८७७ ई०में कृष्णानदीके किनारे २ टामस् चेम्यर १६५६ से कुमारिका अन्तरीप तकके सभी जिलों में दुर्भिक्षका ३ एडवर्ड विएटर १६६१ प्रपल प्रकोप दिखाई दिया था। तुगभद्राके दक्षिण | ४ जार्ज फषसमफट् १६६८ घेल्लरी, अनन्तपुर, कर्नूल, कड़ापा, नेल्लूर, उत्तर मर्काट ५ विलियम लैंहरन .. १६७० और सलेम जिलेमें दुर्भिक्ष राक्षसने पैशाचिक प्रतिमूर्ति ६ष्ट्रीनसाम माएर . १६७८ धारण कर धीभत्स नृत्य किया था। इस दुर्भिक्षसे। विलियम गिफोर्ड . १६८१, सैकड़ों मनुष्य अनाहार यमलोकको सिधारे थे। ८ पलिहु एल . . . १६८७ जलाभाव दूर करने के लिये अगरेजोंने नदी आदिसे नाथानिपल दिगिन्सन् . १६९२ नहर काट निकाली। पोछे..१८८३.६०में पेल्लूर श्री. १० टमास पिट १६६८ ..