पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५०८

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मारक, . फर्णहीन, चतुष्पद, पञ्चपद, त्रिपद, एकपर, एकहस्त :: भाग्यपति, : प्ययपति और रन्ध्रपति- भी मारक हैं। द्विहस्त, लिहस्त, चतुर्हस्त, हस्तहीन, गोधाकार; मनुष्या-मारफग्रह द्वारा प्याधि, मृत्यु: आदिका विचार करना । फार, वकाकार, ह'साकार आदि ( अद्धकृष्ण, . अद्ध रक्त, होता है। मारकग्रहके विशेष योग वा दृष्टिसे मृत्यु और .. कपिलवर्ण, पिङ्गलवर्ण, नीलवर्ण, शुक्लवर्ण, · पोतवर्ण, सामान्य:योग वा-सामान्य दृष्टिसे व्याधि होती है । मारक हरितपूर्ण मादि भीपणाकृति और नाना दलोंमें विभक्त | प्रहकी दशा, आतर्दशा और प्रत्यन्तर्दशामें उक्त फाल हुआ: . हो सभी गण उत्पन्न हुए। उत्पन्न होते ही वे.शङ्ख पट्ट करता है । अधया उन मारकग्रहों के साथ यदि किसी.. मृदङ्गादि बजाने लगे.। ये सभी गण जटाजूटधारी और ! - दूसरेका सम्बन्ध.हो, तो उस ग्रहको दशा या अन्तर्दशामें रथारोही.थे। नाना प्रकार के अस्त्र धारण कर पो'मार वैसा ही फल होता है-! ;मारकग्रहके साथ सम्बन्ध फाट' इत्यादि रूपसे भयानक शब्द करने लगे। कामदेव- नहीं होनेसे पीड़ादि नहीं होती.............. ने इन, सव गुणोंको देख कर ब्रह्मासे, कहा, ग्रामन् ! ये सब "अष्टम ह्यायुधस्थानं अष्टमाष्टमन यत् ।।... . . . . . : कौन काम करेंगे ? कहां रहेंगे, इनका क्या नाम रहेगा?.... तयोरपि व्ययस्थान मारकस्थानमुच्यते ॥५.(लघुपराशर) कृपया बतला दीजिये, ।। उत्तरमें लोकपितामह ब्रह्माने जन्मलंग्नसे आठवा, सातयां और दूसरा स्थान मारक- कहा, "इन्होंने जन्म लेते ही. 'गार मार' ऐसा शब्द किया था स्थान है। मतपय इन तीनों स्थानको ले कर मृत्यु . और ये मारात्मक हैं, इस कारण इनका नाम:मार होगा। और पोड़ादिका विचार करना उचित है। योसभी. प्राणियोंका:नाश कर सकेंगे। हे मनोभव.!! पराशर संहितामें इसका विषय इस प्रकार लिखा है-' । तुम्हारा अनुगमन करना हीः इनका, प्रधान कार्य होगा। जागरापति और धनपति दोनों ही मारक है। रवि और । जब कभी तुम अपने काममें कही: जाओगे तब ये लोग चन्द्रको छोड़ कर मारक स्थानके.सभी अधिपति ग्रह .. भी साथ,जा कर तुम्हारो. सहायता करेंगेः।। तुम जिस | मारकदोपयुक्त होते हैं.। रवि और चन्द्र ग्रहराज होनेके • पर, अस्त्र छोड़ोगे, उसका. मन.इन,सव,गणों द्वारा उचा. कारण.उनमें मारकदोष नहीं है। ....... ... . टन, होगा तथा ये शानियोंके ज्ञान पथमें हमेशा वाधा | विशोत्तरी मतसे मारकप्रहका निम्नोक्त प्रकारसे - डालेंगे। सभी प्राणी जिससे, संसार बंधनके अनुकूल निरूपण करना होता है। मारक-विचारके पहले योग , कार्य फरे, विघ्न वाधा रहते हुए भी पे उन्हें काम करने | जायुः या स्फुटायुःको गणना द्वारा परमायु स्थिर करके मे मदद,देंगे। ये सवगण महावेगशालो और . काम , मारकका निरूपण करे । यदि शनि तीसरे, छठे वा रूपी हैं। तुम इनका अधिनायक बनोगे। ये गण तपो. ग्यारहवें स्थानका अधिपति हो कर शाजनके अन्य | ग्यारहवें स्थातका अधिपति हो कर अथवा उनके अन्य निष्ठ, संन्यासी और ऊर्ध्वरेता है।" (कालिकापु० :६:१०)तम स्थानके अधिपतिके साथ युक्त हो कर किसी मारक. , . मारक; (:स०.पु०.) म्रियते, प्राणिना; यस्मिन्, पेनेति वा, , प्रहका सम्बन्धो हो, तो यह.शनि दूसरे सभी मारक ग्रहों .म:धम्, ततः संज्ञायां कन। १ मरक, मरण,::२ पक्षिको गतिकम कर., प्रयल .मारक हो जाता है। ......... . विशेष, वाज. नामक पक्षी : 1., ३. जन्मस्थानसे, आठवें जायापति, धनपति, पष्ठपति और अष्टमपति ये सभी । स्थानके गधिपति. एक ग्रहका नाम । ज्योतिपके अनु- मुख्य मारक है, किन्तु जायापतिकी अपेक्षा धनपति.और . सार मारकप्रद, स्थिर करनेमें पहले मारकका स्थान पष्टपतिको अपेक्षा अष्टमपति, प्रवल है। अतएव, इससे स्थिर करना होगा। इस मारक.स्थानका, अधिपति स्पष्ट मालूम होता है, कि धनपति, प्रथम,, जायापति जो ग्रह है, उसका दूसरा, सातवां मीर आठवां- अधिपति द्वितीय, अष्टमपति तृतीय और, पष्टपति चतुर्थ श्रेणीका . - साधारणतः मारफग्रह है। - कारण, दूसरा, साता और मारक है... पाप सम्बन्धसे, बलवान हो. फर,कहीं पर माइयां स्थान मारकस्थान बतलाया गया है. 1. अतएव या व्यक्तिविशेपमें तृतीय वा चतुर्थ श्रेणीका मारक,भी उन सब स्थानोंके अधिपति प्रह, ही मारफप्रह हैं.1, | प्रथम श्रेणीके जैसा-काम करता है। गृहस्पति और ..."भाग्यव्ययाधिपत्येन रन्धेशो मारका स्मृतः ।" ( पराशर)। शुक्र केन्द्रपति हो द्वितीय वा सप्तमस्थ होनेसे दोनों ही