सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४५१ मारकगंग-मारण प्रबल मारक होता है। इन सब मोरंक ग्रहोंकी दशाके ! “काजङ्घा, शतमूलो, क्षौरीप, परगाछा, तिल, भेकपणी, अग्राधिलमै ध्यंनियिशेपमें पापग्रहफे सम्बन्धी व्ययपति । दूर्वा, मूर्या, हरीनकी, तुलसी, गोक्षुर, मूंसाकानी, धन- और तृतीयपत्ति दोनों ही मारक हुआ करते हैं । आत्मक, चगंलता, नालमूली, हींग, दारचीगी, सहिजन, अपराजिता, मारफंग्रह और लग्नसे दूसरे, तीसरे, छठे, सातये' इन ; जलपीपल, भङ्गराज, सैन्धवलवण, प्रसारिणी, सोमलता, सव स्थानोंके प्रहोंमें यदि कोई भी. ग्रह अधिक बलवान् श्वेतसर्पप, अंसन, हंसपदी, व्याघ्रपदी, पलाश, मिलायाँ हो, तो वहां यही प्रह मारक है। यदि ये सब समान: और इन्द्रयारणो। ( रसेन्द्रसारस० ) वलं हों, तो उसकी मारक नामको प्रहं ही मारक है। मारका (१० पु०) १ चिह्न, निशान । २ किसी प्रकारका ' 'यदि मध्यायुःयोगमैं जन्म हो तथा छठे स्थानमें |.. चिह्न जिससे कोई विशेषता सूचित होती है। ३ युद्ध, बहुतसे पापग्रहोंके योगादिका सम्बन्ध रहे, तो छठा पति लड़ाई। ४ बहुत बड़ी या महत्त्वपूर्ण घटना। ही मुख्य मारक है। फिर दीर्घायु-योगमें जन्म होनेसे मारकाट (हिं० खो०) १ युद्ध, लड़ाई । २ मारने छठा पति जिस राशिमें रहेगा उस राशिके अधिपतिकी काटनेका भाव । ३ मारने कारनेका काम। , दशाम अथवा छठे स्थानेसे नया पांचचे अधिपतिकी मारकायिक स० पु०) बौद्धोंके अनुसार मारके अनुघर । दशा में मृत्यु होगी, ऐसा जानना चाहिये । गृश्चिक वा मारकोन ( हिं० स्त्री० ) एक प्रकारका मोटा कोरा कपड़ा मकरलग्नमें जिसको जन्म हुआ हो, उसका प्रवल मारक - जो प्रायः गरोवों के पहननेके काममें भाता है। । राहग्रह है। घलयान अनेक ग्रहोंके मारक होनेसे उन सब मारखोर ( फा० पु० ) काश्मीर और अफगानिस्तानमें प्रहीको दशा तथा अन्तर्दशाम रोग और क्लेशभोग होता! होनेवाली पफ प्रकारको यकरी या भेड़। यह प्रायः दो है। उनमें जो ग्रह प्रबल मारकं हैं, उनकी दशादिमें |. तीन हाथ ऊचो होती है और ऋतुके अनुसार रंग बद- साङ्गातिक पोड़ा, भय, शोक, मृत्युभय, चोर और अग्नि-! लती है । इसके सींग जड़में प्रायः सटे रहते हैं। इसकी भय, अपमान, निन्दा, धनहानि और वन्धन, यह आठ दाढ़ी लम्बी और घनी होती है। . प्रकार के मृत्युफल- हुमा करते हैं। (पराशरसंहिता) मारग ( संपु०) मार्ग देखो। पारकगण (सं० को०) मारकाणां गणं। रसेन्द्रसार मारङ्गा ( स० खो०) मेदा। संग्रहोक द्रव्यगण । बृहतो, पान, पिण्डंतर्गर, पुनर्णवा, मारजन ( स० पु० ) मार्जन देखो। . मण्डकपणी, कटकी, मसाकानी, मैनफल गायन योर मारजनी (स० स्त्री० ) मार्जनी देखो। 'शतमूलो ये सब द्रव्य मारकगण है। .... मारजातक ( स० पु०) मार्जार, दिली।

.. ..- .:: (रसेन्द्रमारस०) मारजार ( स० पु०) मार्जार देखो।

नारकत (सं० वि) मरकत-अण। मरकतसम्बन्धीय। मारजित् (स० पु०) मारं फार्म जितवान जि-क्षिप मोरकती (संस्त्री०) मरकतमणिसम्बन्धी - तुगागमः। १ बुद्धदेव । -२ फन्दपंचिजेता, यह जिसने . कामदेवको जीत लिया हो। मारकवर्ग (सं० पुरसेन्द्रसारसंग्रहोक्त प्रथ्यगण । गण-। ... , 'फे नाम-मोधा पच, चिता, गोखरू, तितलौकी, दन्ती, मारट ( स० लो०) शु मूल, ऊखको जड़। मारण (सं० ली०) मार्यते इति मणिन, भावे ल्युट् । जातिपुष्प, रास्ना, शरपुर, घृतकुमारी, चण्डालिनी, "

१ यध, हत्या करना।

'ओल, कुचिला,'हारमुच, लजालु, घोपा, "लाक्षा दन्तो- ' ___ "यान्ति पशुरोमाणि तावत् कृत्वेह मारणम् । त्पल घाला, पोपल; निसिन्दा, वन इलायची, विपलाङ्ग वृथा पशूना प्राप्नोति प्रेत्य जन्मान जन्मनि ।" लिया, शाल, भकयन, सोमराज, रविभक्ता, कांकमाची, (मनु ५।३८) श्वेत आकन्द, अपराजिता, वायसतुण्डी, सीज, विजयंद, अभिचार विशेष, जिस किया द्वारा मृत्युप्याधि सोउ, यराहक्रान्ता, हाथीसूड, कदलो, स्निा, फच्चो आदि अनिष्ट होता है उसे मारण कहते हैं । 'अथर्ववेद 'इमली, हरिद्रा, दारुहरिदा, पुनर्णया, श्वेतपुनर्णया, धतूरा, । और तन्शास्त्र में इस मारण क्रियाका विधान है।