पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६४१

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मयाराज-मियाँव.ली ५७३ रेलवे स्टेशन है । एकसे लाहोरसे मूलतान जाया | मध्य अवस्थित है । भूपरिमाण १४७८ वर्गमील और जाता है। जनसंख्या लाखसे ऊपर है। इसमें इसी नामका एक शहर मियाराज-मालिक अम्वरका सहकारी एक सेनापति ।। और ७० ग्राम लगते हैं । जवसे सिन्धु सागरसे दोभाव ' इसने मुगलसेनाके विरुद्ध युद्ध करके निजामशाही राज्य को नहर काट निकाली गई है, तबसे यहां फसल अच्छो की रक्षाकी थी। लगती है । यहांके अधिवासियों में मुसलमानोंको संख्या मियांवालो-१ पावप्रदेशके मूलतान विभागका एक ही अधिक है। जिला । यह मशा० ३० ३६ से २३ १४ उ० तथा देशा० । . ३ उक्त तहसोलका एक शहर । यह अक्षा० ३२ ७०४६ से ७२ पूल के मध्य अवस्थित है । भूपरिमाण | ३५ ३० तथा देशा० ७१ ३१ पू०के मध्य अवस्थित है। १८१६ धगमोल है। इसके पूर्वमें अटक, शाहपुर और यहाँका सुप्रसिद्ध सैयदवश मिरांवाली मियां नामसे झा: दक्षिण में मुजफ्फरगढ़ ; पश्चिममें इसा खेल तह- मशहर है। ये लोग स्थानीय किसी मुसलमान साधुके सील तथा उत्तरमें वन्नू और कोहट जिला है। वशधर हैं। अपनो उदारता और दयालुताके गुणसे ., इस जिलेका प्राचीन इतिहास नहीं मिलता । १४वीं | इन्होंने सर्वसाधारणमें अच्छा नाम कमाया है। उक्त सदीमें दक्षिणसे जाटो'ने मा कर इस स्थान पर दखल मियांयश जहां वास करते हैं बद्द वल्लोबल कहलाता जमाया। १७वी संदीके आरम्भमें हम जसकनी वलोच. है। वर्तमान मियांवाली नगर उस वल्लोवखेल नगर- का नानं पाते हैं। इसका राज्य सिन्धसे चनाव और का अंशमात्र है। एक तहसीलदार और असिष्टएट चक्करसे लियाद तक विस्तृत था । मनकेरामें उसकी कमिश्नर यहांका विचार कार्य करते हैं। राजधानी थी । पीछे यह गवरोंके हाथ आया। उन्होंने मियांवाली-पावके गुजरानवाला जिलान्तर्गत एक १७४८६० तक यहाँका शासन किया। अनन्तर दुरोनी] प्राचीन नगर । अभी यह खंडहरमें पड़ा है। यह खान- में इन्हें मार भगायों और सिंहासन पर कंजा किया।। नगर असरूर था अशक्य नामसे मशहर था । यहां : द्वितीय सिख-युद्ध में सर पच पडवईने मूलतानका फुछ बहुत पुराने जमानेके ईटों के स्तूप पड़े हुए हैं। प्रनतस्य 'भाग देखल किया और उसके साथ साथ १८४८ ई०में चित् कनिहम इसे चीन-परिवाजक यूएनचुबङ्ग द्वारा 'मियांवालीको भी उसमें मिला लिया । १९०१ ई०में वर्णित तसेकिया । (तकि) नगर बतलाते हैं। एक 'यह जिला संगठित हुआ। ५७के गदरमै यह जिला एक समय यह तकि-राज्य बहुत बढ़ा चढ़ा था। पश्चिममें तरह शान्त था। कुछ घुड़सवार बांगो हो गये थे, सिन्धुनद, उत्तरमै हिमालय पर्वत, पूर्व में वितस्ता और ' पर उनका शीघ्र ही दमन किया गया। दक्षिणमे सिन्धु-पञ्चनद-सङ्गम तक इसका विस्तार था। .. इस जिले में ४ शहर और ४२६. प्राम लगते हैं । जनसंस्था चार लाखसे ऊपर है । मुसलमानोंको संख्या ___ उक्त बड़े बड़े स्तूप देखनेसे मालूम हुआ है, कि सबसे ज्यादा है। विद्या शिक्षा में इस जिलेका स्थान उनके भीतर जो ईटे हैं यह बहुत पुरानी और नाना- २८ जिलों ३ १६वां आया है। अभी कुल मिला कर ५ निननैपुण्ययुक्त हैं। माज मी वर्षा ऋतुके समय उन सिकेण्डी, ७२ प्राइमरी, ३ पचलिक, १३ उच्च श्रेणीक । स्तूपों से शकजानिके सिक्के निकलते हैं। और २०४ पलिमेण्ट्री स्फूल हैं। इन सब स्कूलों में सबसे ) . . सम्राट अकवर शाहके जमाने में उप्रशाह नामक एक बड़ा हाई स्कूल है जो मियांवालो शहरमें अवस्थित है। दोप्रा-सरकारने इस स्तूपसे कुछ ईटे निकाल कर मस स्कूलके अलावा - सिभिल.. गरूपताल और पांच चिकि- जिंदकी छत वनाई थी। यूपनचुयङ्गने तकि नगरसे त्सालय हैं। ............... | दो मोल उत्तर-पूर्व सम्राट अशोक प्रतिष्ठिन युद्धस्मृति . .. २ उक्त जिले की एक तहसील । यह अक्षा० ३२.११. चिह्न सम्वलित स्तूपका वर्णन किया है . यहांसे थोड़ी से ३३२३० तथा देशा० ७१.१६ से.७१:५८०के दूरके फासले पर भी एक स्तूप देखा जाता है। Vol. XVII, 144