पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६६८

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. पिष्टपाचक-गिसरो मिटपाचक (सं० वि०) सुमिटमासे धन कारो, जो यहुत चुयंग धर्मग्रन्य संग्रहफे लिये जो भारतवर्ष आपे थे, यह अच्छा भोजन बनाता हो। . उसोका फल था। चौद शब्द देखो। ', ' .. मिटपाट (सं० पु०)पृशमेद। बौसमधानताको हतश्री होनेके बाद शङ्कराचार्य, मिष्टमापी ( मनि 'सुपर कयन गील, मधुरभाषो कुमारिलभट्ट, माधवाचार्य, कायोर, नामदेय, रामदास, जो मीठा बोलता हो। दादु, कृष्ण और तुकाराम आदिके यत्नसे हिन्दूधर्ममें मिटरम (सं० लो० ) मीठा रस ।' शेय, यैप्णय आदि धर्मसंप्रदायका विस्तार हुंदरा था। विमान ( म० पु. ) मिष्टमन्नं । मधुग्द्रव्य, मिठाई। १वी सहोमें राममोहनराय, केशवचंन्द्रसेन भादिके मिस (हिं. पु. १ यहाना, होला। २.पापण्ड, नकल। यत्नसे ब्राह्मधर्मका प्रचार हुआ। ईसाई धर्म और (फा० ) ३ नाघ्र, ताया। इसलाम धर्मका ईसाई-मिशनरी और मुसलमानोंने मिस (10 खो०) कुमारी, कुंआरी लड़को। प्रचार किया था। मिसकीन (१० वि०)। जिसमें कुछ भी सामर्थ्य या ___ खीष्टान, मुसलमान और ब्राझ शब्द देखो। यल न हो, येवाग । २.निधन, गरीव । ३ सीधा सादा। मिसर (सं० फ्लो०) देशभेद, इजिप्त ।' मिस देखो। . मिसकीनता (१० स्रो०) दोनता, गरीवी। . . 'मिसरा (भ० पु०) कविता, विशेषता उर्दू या . फारसी, मिसकोनो (म० खीर) मिसफीन होनेका भाव, दीन या। श्रादिकी कविताका एक चरण, पद । ' । . दरिद्र होनेका भाय। . मिसरा तरह (अ० पु०) यह दिया हुमा मिसरा जिसके मिसन (हिं० स्रो०) बालू मिली हुई मिट्टीको जमान, आधार पर उसो तरदको गजल कही जाती है, पूतिकी ऐसी भूमि जिसकी मिट्टी में यालू भी मिला हुमा हो। लिगे दो हुई समस्या। । । मिसनो ( मिशनरी )-धर्मप्रचारफे उद्देशसे प्रचारक : मिसरी हिं० सी० ) १ मिनदेशका नियासी। २ मिन्न याजक यानो पावरोका भिन्न भिन्न देशमै जाना। पूर्व । देशको भारा। ३ घोबारा यहुत साफ करफ जमाई हुई समयमें ये सय प्रनारकगण देश देशमें घूमते और जनता.. दानेदार या रयेदार चीनी जो प्रायः फुजे या फतरेके रूप. के मध्य अपना अपना धर्म-मत प्ररुट फर उन्हें आने में बाजारों में विकती है। मतमें लाने की कोशिश करते थे। संम्झन प्रन्थमें पहले हम लोगों के देशमें दानेदार मिसरी तैयार होती थी मिशनरो 'परियाजक' शब्दमें लिया है। . या नद्दों, कह नहीं सकते। परदा, मिसरोफे रूपान्तरमें ईसा जन्मसे बदन पहले शाक्य युद्धके तिरोधानके दोबारा और मां (hoal-Sugar) जरूर तैयार होती थी। पादसे हो हम लोग भारतीय यौद्रोंके बीच धर्मप्रचार सय पूछिये तो हम लोग अपने देशमें सांडका हो बहुत यासनाका उदय होते देखते हैं। उस समय वौद्धसम्म दिनोंसे प्रचार देखने आ रहे हैं। यहुत प्राचीनकालमें दायने बौद्धधर्म फैलानेकी आशा चीन, तिपत, सिंदल, इजिप्त या मित्रदेशमें एक प्रकारको सफेद दानेदार ग्राम, श्याम, कोचीन, चीन, यय और जापान देशमें कार यनती थी। जय मित्र के साथ मारतय और परिमाजोंको भेजा था। अनाया इसके चेरि, पार्थिया, भरवसा वाणिज्य व्यापार चलता था उस समय मित्र. यपिनया, सोतन, फायुल (गान्धार), युवारा आदि देशको दानेदार चीनी गरयो मधया भारतीय प्राचीन देशर्मि भी यहुन परियामक भेजे गये थे। सम्राट अशोक / पणिम् सम्प्रदायसे मारत में लाई गई थी। मालूम के शासनकालमें भारतवर्ष में तमाम पोमधर्मका प्रचार | होता है, कि जयसे मिनदेशको चीनी इस देशमें माने था। चीनसम्राट मिन-तीने ६५ ,६०में बौद-परिमाज | लगी, तबसे भारतीय गांड़के कारयारम मारो धशा पटुवा काश्यपको अपने राज्यमें युलाया था। युद्धभदने भी और यह एक HIT उठगा गया। समोसे हम लोग चीनशमें रह कर मभी धर्मप्रन्योंका मर्मानुयाद कर सपने देशको धनो हुई पुगनी गांडका माव और. नाम साला । नौन-परिमाजक फा-दियन और यूएन.] भूल कर मिसरी दो पक्षपाती हो गपे है। . .