पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७८७

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पुकुटराय-मुकुन्ददत्त- मुकुटराय-दिल्ली वादशाह द्वारा सम्मानित नवद्वीपवासो। १ काशीगाहात्म्पसंग्रहके रचयिता । २ केनोप निषटिप्पन, एक ब्राह्मण। ये क्रोडियान नामसे परिचित थे। । गरुडोपनिषट्टिप्पन, चूलिकोपनिपट्टिष्पन और ब्रह्मास्त्र मुकुटिन् ( स० वि०) मुकुट-मस्यास्तीति मुकुट-इनि । व्याख्या नामक चार प्रन्योंके प्रणेता । ३ रागानुगा विपत्ति मुकुटधारी, जिसने मुकुट धारण किया हो। के रचयिता। मुकुटी (स' स्त्री० ) अंगुलि-मोटन, उगली मटकाना । | मुकुन्दक (सपु०) १ पलाण्ट, प्याज । कोई कोई सुकु- मुकुटेकापण (सक्लो०) प्राचीनकालका एक प्रकारका न्दककी जगह मुकुन्दक पढ़ते हैं। राजकर जो राजाका मुकुट यनवानेके लिये लिया "विशापो तत्र भूयीष्ठ वरुकः मुमुकुन्दकः ॥" (मुश्रुत १४६) जाता था। २पटिकमोहि, साठो धान । मुकुटेश्वर (स० पु०) १ राजपुत्रभेद । २ शियलिङ्ग-] "पष्टिकः शतपुष्पश्च प्रमोदकमुकुन्दको । विशेष। ३ मावीन तीर्थविशेष । महापष्टिक इत्याद्याः षष्टिकाः समुदाहनाः ॥" ( भावप्र० ) मुकुटेश्वरी (सं. स्त्रो०) माकोट ( मुकुट ) देशको दाक्षा- ३ तैरभुक्तके अन्तर्गत एक स्थानका नाम । यणी मूत्तिभेद। मुकुन्दकवि-सुशानविंशतिके रचयिता । मुकुट श्वरीतीर्थ ( स० क्लो० ) मुकुटेश्वरी देवीमूर्ति प्रति मुकुन्दगोविन्द-ग्रहामृत-यर्पिणीके प्रणेता रामाननके ठित माचोन तीर्थभेद । गुरु। मुकुट्ट ( स० पु०) एक प्राचीन जातिका नाम जिसका मुकुन्द दत्त-श्रीचैतन्य महाप्रभुके सहपाठी एक प्रसिद्ध उल्लेख महाभारतमे आया है। (भारत० सभापर्व ) | वैष्णव । चप्रामके चमशाला नामक गांवमें मुकुन्ददत्त- मुकुण्टो ( स० स्त्री०) युद्धानविशेष, लड़ाईका एक का घर था, किन्तु वाल्यवस्थासे ही वे नवद्वीपमें रहते हथियार। थे। श्रीमहाप्रमुके साथ हो उनकी विद्याशिक्षा भारम्भ मुकुन्ति-तैलड़के पन्ध्रवंशीय एक राजा। हुई थी। मुकुन्द (सं० पु० ) १ विष्णु । मोक्ष देनेके फारण इनका | मुकुन्ददत्त-एक प्रसिद्ध वैष्णय । आयुर्वेद शास्त्र में उनको ___ नाम मुकुन्द हुमा है । अथवा वे भक्तिरसमय प्रेम. विशेष अधिकार था। एक सुचिकित्सक होने के कारण यवन ब्राह्मणोंको दान करते हैं, इसीसे इनका नाम उनको सर्वत्र प्रसिद्धि थी। नवाब हुसेनग्न दिन्दु कर्म- चारियों के विशेष पक्षपाती थे। उन्होंने इन्हीं मुकुन्द. 5 ' "मुकुमव्यमान्तय निर्वाणमोक्षवाचकम् । को राजचिकित्सक नियुक्त किया था । एक दिन तद्ददाति च या देवो मुकुन्दस्तेन कीर्तितः ॥ नवाद वायु सेवनके लिये ऊंचे स्थान पर बैठे थे, मुकु भक्तिरसप्रेभवचनं वेदसम्मतम्। भृत्य मस्तककी बगलमें मोरपंखसे घोरे धोरे पंखा यस्तइदाति विप्रेभ्यो मुकुन्दस्तेन कीर्तितः ॥" कर रहा था। चिकित्सक भी उसी जगह उपस्थित थे। (प्रदाय पु० जन्मस० ११० १०) मोरपंखका गुच्छा भयायके मस्तक, लगते देष चिकि- २निधिविशेष। त्सकफे मनमें एक महान भावका उदय हुगा। उनको "यत्र पद्ममहापग्री तथा मकरकच्छपौ स्मरण हुआ-"यहोपीड़ नटवरयपुः कर्यायोः फर्णिकार विन- मुकुन्दो नन्दकरचेव नीलः शवोऽटमोनिधिः ॥" दासः कनककपिशं वैजयन्तीय माला । रन्धान येणारधरमुधपा (मार्कण्डेयपु०६८।५) निधि देखो। पूरयन् गोप बृन्दै नृन्दारपप सपदरमय प्राविशदगीत कोक्तिः" रत्नभेद। ४ कुन्दुरि, कुदरू । ५पारद, पारा।। ____स्मरण होते हो ये मच्छित हो नीचे गिर पड़े। बहुत ६ श्वेत करवो, सफेद कनेर । 0 उपोदिका, पोईका देरफे याद मूर्छा दूर होने पर नपाइने पूछा, 'तुम्हारे साग! ८ गाम्मारवृक्ष, गम्भारो नामका पेड़। हठात् गिरनेका कारण क्या है ? येधने उत्तर दिया, मुकुन्द-कुछ प्राचीन संस्कृत अन्धकारों के नाम । यया- शाहनगाह ! हमें यह सक रोग है।' - Voh XII. 173