महम्मद-महम्मद श्य . . . नाम . मिन् , प्रतिमाको बहुत कुछ मेघाच्छन्न कर दिया है। इनके '६। उमहायिया (याधुः सोफियानकी चलाये इस्लामधर्ममें मरत धर्मस्यको गभीरता न रहने कन्या) ६६४ पर गी मामाजिक प्रतिपत्तियों को पूर्ण शक्ति विरा- 01 जनव (महम्मदफे नौकर जती है। यदकी विधवा खी) ___इनके कर्मजीयनका सूत्रपात मदीना मौर उसकी ८। जैनय (खुनोमाको कन्या) ४१ । मैमुना परिपुष्टि तथा अवसान मपक में हुआ था। इन दोनों हरितकी कन्या ) ६७१ स्थानों को कार्यपरम्परा ऐतिहामिझोंका आलोय १०। जयारिया (हरितकी कन्या ) ६७०, ५ मास विषय होने पर भी उनको धर्मप्रतिष्ठाफे सम्बन्ध में कोई ११। सफिया (होयर विन अख्तारको इष्टसाधक विषय नहीं है। कुरानमें जिन सब नियमों १२। मरिया कोप्तो (इजिप्टदेशको कन्या, को ये ईश्वरकी अभि यक्ति पतला गपे हैं ये सब नियम इसके गर्भसे इब्राहिम सर्वसाधारणके निकट विवादास्पद हैं। प्रतिहिंसा का जन्म हुआ) । मोर प्रवचनाने जो फलटुकालिमा इनके जीवन पर पोती ' अनेक भक्त सुधियोंने महम्मदके इस बहथियाइका सम- है यह मिट नहीं मरती। 'धन करते हुए कहा, कि देवतगण माधारण मनुष्यों-, नखलाके युद्ध में भीषण नर-दस्या तथा फोसिरफे को सरह पार्थिव नियमों के वोभत नहीं है। अतएव युद्धमै छः सी निरपराध यादियों के प्राणविनाशने महम्मद अवतारी पुरुष थे। . महम्मदके जीयनको सदाफे लिये फलहित कर दिया है। जगत्के इतिहातमें असामान्य प्रभुता मात करने पर ये एक प्रभूत प्रतिभाशाली पुरष थे, इममें सन्देह नहीं। पाले महम्मदको जीवनीकी आलोचना करनेसे मालूम , पंचल अपनी आकाइझाको पूर्ण करनेके लिपे ही थे होता है, कि एकमात्र सांसारिक व्यापारको छोड़ और : ऐसे ऐसे फटोर फर्म कर गये हैं। 'कोई भी दोष इनमें न था । 'अरपके एकछत्र-रामा दो। विस्तृत विवरण कुरान और मुसलमान कन्दमें देखो। पर भी इन्होंने साधुजीयनके अनुचित प्रह्मचर्यको सभी । महम्मद १म--तुरुकफे एक मुन्नान, सुल्तान यायजिव. फठिनतामों का अवलम्बन किया था। मान, पान और के पुत्र। ययाजिदकी मृत्यु के बाद इनके पुों में विरोध घेशभूषा किमो विषयमें उनकी स्पदा न थो। पर हो । घड़ा हुमा जिससे ११ वर्ष तक तुर्य में अराजकता फैली धनरतादि पार्थिव ऐश्व में उनको कुछ कुछ भान रहा। पीछे १४१२ ई०में महम्मद रिताको गदी पर । 'देखी जाती थी। ये अपने जीवन के उद्देश्यानुकूल उपा-, बड़े माहमो थे। म्होंने अपने पापलसे कोपादौकिया, सनाफे कालिन नियमों का पालन कर गये । एकमात्र मर्मिग, यालाविया राज्यको जोना था कस्टैन्टनोपलो मरलोकको मुक्तिके लिये हो ये पैगम्बर हो कर धराधाम मम्राट मानुपल.पालि उन्दोगमसे मित्रता होने पर होने पर उतरे थे, ऐमो उनकी उक्ति थी। मदीनायालो को अपने राज्यफे की प्रदेश उग्दे में रमें दिये। सन् १४१२ गरपरका महत्व यदि ये न दिखलाते तो कभी मी उनके ०को ४१ वर्षकी भयस्याम पहिया नापल नगरमें इनका इम्लामधर्मका प्रचार नहीं हो सकता था। मापारण' देहावसान हुभा । म पुत्र २५ मुराद राजसिंहासन पुरपको सरद सियों को भी इन्होंने अपने धर्ममतको अधिकारी पी. मधिकारिणी बनानेसे न छोहा। इसके लिये परयत्ती महम्मद.श्य-तुर्य जातिके एक मप्रार। इनमे अपन यल मुसलमान सम्प्रदायने इनको तोप निंदा की है। मह, और पराममसे 'महन्'को उपाधि पाई थी। १४५१ मदने भपको कभी भी चरित व्यक्ति न पत में पिता (२५ मुराद )के मरने पापे रामगहरी लाया। ये सपने कार्यसेही देवदत कहलाये। परन्तु पर बैठे और पुत्रसे भी बढ़कर का पालन करने मुसलमानों के पवित्र प्राध पुरानने दी महम्मदको बगे। नो मी हो, कोदका विषय याद किये गहों पर
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७९
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