७४ महम्पद दिनमें पांच बार भगवान्का भजन करना होगा। जो बल के साथ यहांके भरवों पर चढ़ाई कर दो। घेलका 'नमाज नहीं पढ़ सकते उन्हें मोतर्द्धिनकी तरह अजान | पर प्रोसका अधिकार था, इसलिये प्रोस और महम्मदीप देना होगा। सब किसीको कुरानके अनुसार धर्म कर्मः | सेनाके साथ ११६ ई० में युद्ध हो गरा। 'मतानगरमें का पालन करना होगा। तब तफिफोंके लिये इतना मुसलमानीकी सेना हार पा कर भागो . किन्तु पालिंदकी किया जा सकता है, कि ये लोग अपने रा मन्दिरकी | योरतासे उन्हें विशेष मुसीबतें न उठानी पड़ी थी। दूसरे मल-लाटदेवीको मूर्ति म्पयं न तोड़ दूसरोंसे तोड़वा | वर्ष महम्मदने तीस हजार सेनाओं के साथ प्रोम तुम सकते हैं।" 'ग्रीकों के विरुद्ध युद्धयाला कर दो । तायुक पडोम् सीमान्त इसके बाद दूतगण स्वदेश लौटे। यहां पहले उन्हीं। तक पहुंचने पर जव महम्मदने देखा कि प्रोसयाले लड्ने मे रख्यादेयोके मन्दिरमं प्रविष्ट हो कर म्लानमुखसे कपड़े को तैयार नहीं तव ये क्षुग्ध हो कर सदेश लौटे। परन्तु .द्वारा अपना मुंह ढक लिया और सारी बाते' देश- इनकी याला निरफल न गई। लौरतो पार इन्होंने पासियोंसे कह सुनाई। सर्वसम्मतिसे महम्मदके अनेकों उत्तरीय अरबके ईसाइयों तथा यहूदियोको वियद्ध युद्ध कराना ही स्थिर हुआ। परन्तु ये इस्लामधर्ममें दीक्षित किया। ६३१६०के मान मासमें लोग महम्मदको ‘सेनाका प्रचण्ड प्रताप अच्छी । अन्तिम तीर्थयात्रासे लौर कर महम्मद ग्रीक जातिके तरह जानते थे, इसलिये उनके वियद्ध युद्ध ठाननेका साथ फिरसे युद्धकी तैयारी करने लगे। परन्तु इस साहस न हुआ। पोछे जातीय सभाकी सलाहसे उन धारकी तैयारी करते करते इनको जीवनलीला (यो' लोगोंने फिरसे सन्धि स्थापनका मस्ताच महम्मदके निकट जून ६३२ १०) समाप्त हो गई। पेश किया और यह भी कहला भेजा कि वाईफवासी महम्मद एक महापुरुष तो गपश्य थे, पर उनका इस्लाम धर्म स्वीकार करेंगे, परन्तु रवा मन्दिरको मह जोवन गनेक फलोंसे कलुपित था। पुरानमें तो ग्मदको सेना अथवा दूत ही आ कर ध्वंस कर जाये। इन्होंने चारसे अधिक म्याद निध किया है, परन्तु दुःख इतने दिनों के बाद महम्मदको धर्मयात्रा सफल दुई। है, कि स्यय आप हो इस साधुयादका अपलाप कर गये, भरवके परतन्त्र राजाओंने अब प्रोस तथा पारसको हैं। कोई कोई ऐतिहासिक कहते हैं, कि महम्मदने ' अधीनता त्याग कर महम्मदकी शरण ली तात्पर्य यह पन्द्रह यिवाह फिपे थे। इनमें से कुछ नियोंको तो पल्या. कि महम्मद अय अरवर एकच्छत राजा हो गये। अपने / धिकार भी प्राप्त न हो सका था। इनको वारद शिया जीवनफे शेषकाल ( अर्थात् ६४२ ई०.) में ये धर्मराज्य ! फे नाम नीचे दिये गये हैं। फैलानेको इच्छासे प्रोसके साथ युद्ध करनेको तैयार . महम्मदको नियां हो गये। दौदेवियाफे युद्ध में जयलाम करनेके बादसे , नाम . इनकी पदो याति हो गई थी। अतएव इस समय | म्युतिया (सयालिदकी कग्या, झुण्डके मुण्ड लोग इनके अनुयायी हो गये जिसस इनके . १५ वर्षको अवस्था पलको पृद्धि होने लगी। प्रायः समी महम्मदीय मनु- ६१६ चरोंने अपने दोसादाताका अनुसरण अस्त्र शरसे सुस- २॥ शुदा (TAL को कन्या) । ६७४ जित हो कर किया था। ३। मापेशा (मायु यारको फन्पा) ६७७ ____ महम्मदने अपनो इम यिशाल शक्तिका अनुमय कर४। दाफ्सा ( उमद सत्ताको फम्या) ६६५ आस पास राजामों को इस्लामधर्ममें दीक्षित होनेके ५। उम्शालमा ( भावु उग्मयकी कन्याः । लिपे दूत भेजे। पेलका (प्राचीन मोभाव) प्रदेश में यह महम्मको भम्पान्य मी एक दूत भेजा गया था, पर यह मार डाला . रियाम ,मधिक दिन - गया। महम्मदको रसको स्पयर लगते ही उन्होंने दल : . नाजाधिन रहो) . '
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