पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८०९

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मुकिपता-मुखजाह ७२५ . २पुरोके जगन्नाथमन्दिरके दक्षिण पार्श्व में अवस्थित निःसरण, घरका द्वार । ३ नाटक, एक प्रकारको एक मण्डपी. संघि। नाटकका पहला गद। ५किसी पदार्यका मुक्तिमतो (सं० स्त्रो०) नदीमेद, महाभारतके अनुसार अगला या ऊपरी भाग । ६ शम्म, यात 1 ७ नाटक। एक नदीका नाम। ८ वेद । पक्षीकी चोंच। १० जोरक, जीरा ।११ मादि, मुतिमुक्त (सं० पु०) मुफ्त्या मोबनेन मुक्तः। शिहक, आरम्म । १२ दडहर । १३ मुरगाशे । १४ किसी वस्तुसे शिलारसा पहले यानेवालो घस्तु । (ति०) १५ प्रधान, मुल्य । मुक्तिवाद (सं० १०) मुक्ति-चिपक घिचा। मुखार (सं० पु०) दन्त, दांत । मुक्ति देखो। । मुम्वगंधक (सं० पु.) मुखे गन्धः अस्मात् कप । पलाण्ड मुक्तिसाधन (सं० लो०) मोझलाभके लिये विरानु: | प्याज। प्याज मानेसे मुखसे दुर्गन्ध निकलती है. विन्तनरूप साधनाविशेष, मुक्ति प्राप्त करनेकी कामना- इसीसे इसका मुखगंधक नाम पड़ा है। से ईश्वर और आत्माके स्वरूपका चिन्तन करना। मुखघण्टा (सं० स्रो०) मुपे धप्टेय शमसाद्श्यात् । मुफ्तिसेग (सं० पु.) राजभेद । । बहुत-सी स्त्रियोंके मुखसे निकला हुआ यह शप जो मुक्तेश्वर (सं० ली० ) १ शिवलिङ्गमेद । २ उडियाके | माङ्गलिक कार्य में किया जाता है। डान्तर्गत एक विख्यात मन्दिर । इसका शिल्पकार्य परशु- मुखचन्द्र (सं० पु०) चन्द्रमाके समान समुज्ज्वल मुनी। राम और भुवनेश्वर मन्दिरके जैसा है। ३ सयादि- | मुखचपल (सं०नि०) मुखेन चपलः । मुखर, जो अधिक धर्णित देवमूत्तिभेद । या पढ़ पढ़ कर दोलता हो। २ कटुभाषी, जो कटुवचन मुखड़ा (हि.पु०) झारी आदि टोंटीदार बरतनों में किया | कहता है । .हुआ वह छेद जिसमें रोटी जड़ो जाती है। मुखचपलता (सं० स्रो० ) १ बहुत अधिक या पढ़ चढ़ मुसा (सक्लो०) खनति विधारयति अन्नादिकमनेन ) कर बोलना। २ कटुमापण । 'खन्यते विधातासुग्वमनेनेति खन् (दित् खनेर्मुट चोदात्तः। मुखचपलत्य (सं० लो० ) मुसचपलस्प भायः त्व । मुस- . उप ५।२०.) इति करणे अच्. सच मित् मुड़ागमश्च । १ | चपलता। मुखचपझता देखो। मुखधियर, मुंह। मुख्यपला (सं० स्त्री०) आर्याच्छन्दोविशेष। घपलो, . .. . "प्रजासूजा यतः ख्यातं तस्मादाहुर्मुखं वुधाः।" मुखचपला और जघनचपलाके भेदसे आर्या अनेक प्रकार (अमरटीका) की है। इनमेंसे मुखचपलाके प्रथम पादमें १२ माया, शिर, भाखे, नाक, मह, कान, ढोढ़ी और गाल मादि | द्वितीयपादमें १८ माता, तृतीय पादमें १२ माता और सभी अंग मुख कहलाते हैं। गर्भस्य भ्रणके पांचवें चतुर्थ पादमें १५ माता होती है। मासमें मुख होती है । पर्याय-घफ्त, भानन, आस्य, । मुखचपेरिका (सं० स्त्री० ) १कानके अन्दरका एक अय- वदन, तुण्ड, लपन। यथ। २गालमें तमाचा लगाना। _ "भोष्ठौ च दन्तमूलानि दन्ता जिहा च सालु च। .. मुखचीरो (सं० स्रो०) मुतस्य चिरं यायशेर इय ... गलो गलादिसकन्न सप्ताङ्ग मुखमुच्यते ॥" ( माषप्र०) | मुख-चोर-स्वल्पायें को। १ जिहा, जीभ 1.२ पला, - दोनों होंठ, दांतको जड़, दांत, जोभ, तालु और गला | प्याज । इन सातोंको मुख फहते हैं। गलेफे ऊपरी भागसे ले कर | मुराज (सं० पु०) मुखात् जायते इति जन-इ। मारण। तालु तक मुख शब्दका अभिधेय है । स्त्री और बालकोंका | 'बामणोऽस्य मुरगमासीत्' (भूति) प्रमाणे मुगारो प्राह्मण ___.1 मुम्मा हमेशा शुद्ध रहता है। उत्पन्न हुए हैं, इसीसे प्रापणको मुरगा का है. वि) . "मतिका सन्तता धारा मार्जारा बारिन्दा २ मुपजातमाल, मुणसे उत्पन्न । नीमुख बालकमुख न दुष्ट मनुरमवीत ॥” (कर्मक्षो.)। (सं० लो०) मुणस्प मूलं रास्य Vol. XVII, 181