मुकिपता-मुखजाह
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. २पुरोके जगन्नाथमन्दिरके दक्षिण पार्श्व में अवस्थित निःसरण, घरका द्वार । ३ नाटक, एक प्रकारको
एक मण्डपी.
संघि। नाटकका पहला गद। ५किसी पदार्यका
मुक्तिमतो (सं० स्त्रो०) नदीमेद, महाभारतके अनुसार अगला या ऊपरी भाग । ६ शम्म, यात 1 ७ नाटक।
एक नदीका नाम।
८ वेद । पक्षीकी चोंच। १० जोरक, जीरा ।११ मादि,
मुतिमुक्त (सं० पु०) मुफ्त्या मोबनेन मुक्तः। शिहक, आरम्म । १२ दडहर । १३ मुरगाशे । १४ किसी वस्तुसे
शिलारसा
पहले यानेवालो घस्तु । (ति०) १५ प्रधान, मुल्य ।
मुक्तिवाद (सं० १०) मुक्ति-चिपक घिचा। मुखार (सं० पु०) दन्त, दांत ।
मुक्ति देखो। । मुम्वगंधक (सं० पु.) मुखे गन्धः अस्मात् कप । पलाण्ड
मुक्तिसाधन (सं० लो०) मोझलाभके लिये विरानु: | प्याज। प्याज मानेसे मुखसे दुर्गन्ध निकलती है.
विन्तनरूप साधनाविशेष, मुक्ति प्राप्त करनेकी कामना- इसीसे इसका मुखगंधक नाम पड़ा है।
से ईश्वर और आत्माके स्वरूपका चिन्तन करना। मुखघण्टा (सं० स्रो०) मुपे धप्टेय शमसाद्श्यात् ।
मुफ्तिसेग (सं० पु.) राजभेद ।
। बहुत-सी स्त्रियोंके मुखसे निकला हुआ यह शप जो
मुक्तेश्वर (सं० ली० ) १ शिवलिङ्गमेद । २ उडियाके | माङ्गलिक कार्य में किया जाता है।
डान्तर्गत एक विख्यात मन्दिर । इसका शिल्पकार्य परशु- मुखचन्द्र (सं० पु०) चन्द्रमाके समान समुज्ज्वल मुनी।
राम और भुवनेश्वर मन्दिरके जैसा है। ३ सयादि- | मुखचपल (सं०नि०) मुखेन चपलः । मुखर, जो अधिक
धर्णित देवमूत्तिभेद ।
या पढ़ पढ़ कर दोलता हो। २ कटुभाषी, जो कटुवचन
मुखड़ा (हि.पु०) झारी आदि टोंटीदार बरतनों में किया | कहता है ।
.हुआ वह छेद जिसमें रोटी जड़ो जाती है। मुखचपलता (सं० स्रो० ) १ बहुत अधिक या पढ़ चढ़
मुसा (सक्लो०) खनति विधारयति अन्नादिकमनेन ) कर बोलना। २ कटुमापण ।
'खन्यते विधातासुग्वमनेनेति खन् (दित् खनेर्मुट चोदात्तः। मुखचपलत्य (सं० लो० ) मुसचपलस्प भायः त्व । मुस-
. उप ५।२०.) इति करणे अच्. सच मित् मुड़ागमश्च । १ | चपलता। मुखचपझता देखो।
मुखधियर, मुंह।
मुख्यपला (सं० स्त्री०) आर्याच्छन्दोविशेष। घपलो,
. .. . "प्रजासूजा यतः ख्यातं तस्मादाहुर्मुखं वुधाः।" मुखचपला और जघनचपलाके भेदसे आर्या अनेक प्रकार
(अमरटीका) की है। इनमेंसे मुखचपलाके प्रथम पादमें १२ माया,
शिर, भाखे, नाक, मह, कान, ढोढ़ी और गाल मादि | द्वितीयपादमें १८ माता, तृतीय पादमें १२ माता और
सभी अंग मुख कहलाते हैं। गर्भस्य भ्रणके पांचवें चतुर्थ पादमें १५ माता होती है।
मासमें मुख होती है । पर्याय-घफ्त, भानन, आस्य, । मुखचपेरिका (सं० स्त्री० ) १कानके अन्दरका एक अय-
वदन, तुण्ड, लपन।
यथ। २गालमें तमाचा लगाना।
_ "भोष्ठौ च दन्तमूलानि दन्ता जिहा च सालु च। .. मुखचीरो (सं० स्रो०) मुतस्य चिरं यायशेर इय
... गलो गलादिसकन्न सप्ताङ्ग मुखमुच्यते ॥" ( माषप्र०) | मुख-चोर-स्वल्पायें को। १ जिहा, जीभ 1.२ पला,
- दोनों होंठ, दांतको जड़, दांत, जोभ, तालु और गला | प्याज ।
इन सातोंको मुख फहते हैं। गलेफे ऊपरी भागसे ले कर | मुराज (सं० पु०) मुखात् जायते इति जन-इ। मारण।
तालु तक मुख शब्दका अभिधेय है । स्त्री और बालकोंका | 'बामणोऽस्य मुरगमासीत्' (भूति) प्रमाणे मुगारो प्राह्मण
___.1 मुम्मा हमेशा शुद्ध रहता है।
उत्पन्न हुए हैं, इसीसे प्रापणको मुरगा का है. वि) .
"मतिका सन्तता धारा मार्जारा बारिन्दा
२ मुपजातमाल, मुणसे उत्पन्न ।
नीमुख बालकमुख न दुष्ट मनुरमवीत ॥” (कर्मक्षो.)। (सं० लो०) मुणस्प मूलं रास्य
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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८०९
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