पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८३

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मदम्पद मशीला- पहम्मदर-पतियार खो तथा ३० १८५५ में यूसुफ भलो पाने रामपुरफे। मासिर उद्दीनके मरनेके बाद १८०१ में मंगरेज 'मसनद पर पाया किया। राजने इन्हें लगनको गद्दी पर विटाया। राजगदी पर महम्मद अली ai-कर्नाटकके एक नयाय, सनयरहीन मां- बैठते ही उन्होंने अपना नाम 'भगुल फने मोनुरीन के पुन्न । पिनाके मरने पर नघाव नासिरजङ्ग तथा सुल्तान अमान महम्मद अली शाह रमा। १८४२१०में गप्रेजोको सहायतास १७५० ४०में ये राजमिहासन पर पांच वर्ष राज्य करने के बाद लखनऊ नगरमै इनकी मृत्यु यठे। १७६५६०में इनका देहान्त हुआ। हुई। बादमें इनका लहफा मूर्य जा भामजाद अली शाह महम्मद अली बिन हम्मीद--'तारी द हिन्द य-सिन्ध' या गद्दी पर ये ठा। 'चाच नामा' नामक इतिहासके लेखक । . महम्मद अब्दुल याको'मा सोर-रहीमो' नामक महम्मद अली खां-किका एक नवाय, पिएडारी-सरदार इतिहासके प्रणेना। आमीर खांका पुत्र । पिताके मरने पर १८३४ ई० में पह, महम्मद अल कामिम पागद १.९६ प्रसिट भोगोलिक गही पर बैठा। परन्तु लायाफे हत्याकाण्डमें भाग. मोंने 8३०में मपनी जन्मभूमिका त्याग कर मक्षिका टेनेसे अंग्रेज सरकारने इसे गहोसे उतार दिया। . परसिया तथा पश्चिम भारममें ब्रमण कर पक ज्य (१८७० ई० में इसका पुत्र इग्रामिम अलोम वृटिश सरकार । लिग्या धा। के राजनैतिक विभागले नयाय बनाया गया। महम्मद इस्लाम--'तुम नाजिरीन नामक इतिहास के महम्मद अली मीर-मोरर उस सफा नामक य-प्रणेता प्रणेता, महम्मद फिजूल अन्सारीका लष्का । इसने • इनका पासस्थान युनिपुरम था। १७७०९०में अपनी पुस्तक समाप्त की। महम्मद अली मिरजागर एक मुसलमान कायि । दन | महम्म -मस्तियार-बङ्गारसम्म मुसलमान शासक • फी फाय रचनाशक्तिसे इन्हें माहिर' को उपाधि मिली इमका असल नाम था 'मालिक उल गाओं इतिपादोग थी। इनके पिता हिन्दू थे। मिर्जा जाफर मुअम्माई नामक । महम्मद इस्नियार। ये विलिना जातिफे थे। ति. एक गाड़के यहां इनके पिता नौकरी करते थे। भाइये , हासकारों ने इन्हे इनके पिता (महम्मद यमितयार खिलजी) "एक भी सन्तान न थी, इस कारण उसने अपने इसी । फे नामसे परिचित कर बडे भ्रम में डाल दिया है। ये -हिन्दू करके पुत्र कोमुललमानो धर्म में दोक्षित कर मान विधा, युद्धि, सहिष्णुता, माहम, यी त उदारता सारी सम्पत्तिका उत्तराधिकारी बनाया । इस धर्मत्यागी : सादि सद्गुणोंमे यिभूपित थे। पालक महम्मदने जाफरको संरक्षतामें उथ शिक्षा प्राप्त जन्मभूमिका त्याग कर ये गजनी गला दरवारमें

को। मिर्जा जाफरफी मृत्यु के बाद महम्मद दनेगानन्द । नौकरीफे लिये आये। पर यहां उपयुक्त घेतन न मिलने.

खांके आश्रयोंमें रहने लगे। दनेशानन्द मरने पर कम से दिन्दुस्तागको चल दिये। दिल्ली राजदरवारमें भी अप जीवनसे अवसर पा कर ये निर्जन स्थानमे अपना समय नको इच्छा पूरी न तु तय पे पदौन चले गये। यहां विताने लगे। इसी समय १६७८ में इनकी मृत्यु' शासक सिपाहसलार दिजायरदोन दगन मादिरफे दरयार, उपयुक्त येतन पर नौकरी करने लगे। ये उथ श्रेणीके एक कवि थे। इनफे बनाये अनेक नये, पना महम्मद माइने पृथ्वीराज माय ..काय प्रधान 'गुल र मोरङ्ग' काय विशेष प्रशंसनीय है। युसमें मग्नी ग्याति पाई थी। इस योग्ना कारण इस काध्यमें इन्होंने सम्राट भीरजेक्का राज्याभिषेक बड़ी उन्दं कउमण्टी जागीर पुरस्कार मिली थी। मार्ग पर ममता वर्णन किया है। कर उस सम्पत्तिके उत्तराधिकारी महम्मद-द-यख्तियार महम्मद भलो नाह- अपोध्याफे एक नवाब। पे गया हो । . नासिरहाला नाममे प्रसिर थे। इनके पिताका कुछ दिनों शवोंने भयोगाको मोर प्रस्थान "नाम मा नयाद · मयादत , अली गां सुनमाग जा' फिपा तथा मोगपत, मोपली (मैली ), और