पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/८४२

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७५२ . यहांका सौताकुण्ड नामक गरम सोता एक हिन्दू तीर्थ है। कहते हैं, कि इस दुर्ग में पहले राजा कर्ण रहते समझा जाता है । शहरमें एक कारागार भी है। थे । 'दुर्ग को देखनेसे उसको प्राचीनताके सम्बन्ध - २ उक्त जिलेका एफ उपविभाग। यह अक्षा० २४. में किसोको सन्देह नहीं रह जाता । दुर्ग एक पहाड़ी ५७ से २५४४१० तथा देशा० ८५ ३८ से ८६५१ भूमिके ऊपर अवस्थित है। इसकी लम्बाई ५ हजार पू०के मध्य अवस्थित है। भूपरिमाण १८९२ घर्गमील | फुट और चौड़ाई साढ़े तीन हजार फुट है। उसके और जनसंख्या ६ लाखके करीब है। इसमें मुझेर, चारों ओर जो दीवार दौड़ गई है वह १५ हाथ ऊंची जमालपुर, खगड़िया और शेखपुरा नामक ४ शहर धौर है। एक ओर पुण्यसलिला जाह्रयो दुर्ग के चारों ओर १२६२ ग्राम लगते हैं। मुझेर और खगड़िया शहर हो । धूम फर वह गई है, दुसरी ओर गहरी खाई विद्य.. सबसे बड़ा है। यहां वाणिज्य जोरों चलता है। मान है । दुर्ग द्वार पर बहुत-सी लुप्तप्राय बौद्धमूर्ति । क्यूट, जो लपखोसरायके पास है, एक प्रधान रेलवे नजर आती हैं जो अतीत कोर्तिकी घोषणा कर रही है। संजशन है। दुर्ग में चार द्वार हैं। रेलवे स्टेशनसे पूर्व द्वार हो. ३ उक्त जिले का एक प्रधान शहर । यह अना० २५२३ कर प्रवेश करना होता है। इसका नाम लोहिततोरण . उ० तथा देशा० ८६२८० पू०के मध्य गङ्गाके दक्षिणी | (लोहेका दरवाजा ) है। इस स्थानसे दुर्गका दृश्य किनारे अवस्थित है। इस नामकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें बड़ा ही मनोरम लगता है। दक्षिणकी ओर एक सुन्दर बहुत मतभेद है। कहते हैं, कि अति प्राचीन कालमें मुगल राजपथ दौड़ गया है। इसके दोनों ओर दो बड़ी बड़ी अपि इस स्थानमें तपस्या करते थे। उन्हीं के नामानु, दिग्गी हैं। . सार यह स्थान मुद्गलपुरो, मुद्गलगिरि घां मुद्गलाथम भागलपुर शहरके समीप 'करणगढ़' नामक स्थानमें नामसे प्रसिद्ध हुमा। हरिवंशमें लिखा है, कि गाधि-सुत राजा कर्णकी राजधानी थी। कहते हैं, कि वे प्रति विश्वामित्र के पुत्रों में मुद्गल नामक एक राजा इस स्थान दिन यहां चण्डिका देवीको पूजा करने आते थे। एक का शासन करते थे। उन्हीं के नाम पर इस स्थानका प्रकाण्ड अग्निकुण्डमें एक कटाह घी रख कर वे पूजा मुद्गलपुर नाम रखा गया। डा० युकानन हमिल्टनका करने बैठते थे। पूजाके उपरान्त वे उस खोलते हुए कहना है, कि ८०० वर्षको पुरानो एक शिलालिपिमें घोमें कूद पड़ते थे। इस प्रकार उनका शरीर घीसे 'मुद्गगिरि' शब्द खोदा. हुआ है । मुद्गल शब्दसे मुद्गर अच्छी तरह भुन जाने पर देवोकी डाकिनी यह मांस . शब्द हो सकता है । क्योंकि, विहारके लोग 'ल' की जगह खाती थीं। पीछे वे हद्दोके एक टुकड़े को अमृतकुएंडके , 'र' का उच्चारण करते हैं। इससे मालूम होता है, कि मुद्ग- जलसे सिक्त कर उसीसे राजाको जिला देती थों । अन- गिरि था मुगलगिरिके अपनशसे 'मुरे' शब्द निकला न्तर चण्डिका देवी राजाको पर देना चाहती थी। होगा। तदनुसार राजा एक कराह सोने, चांदी और मणि मुक्ता. ___ कनि हम साहय कहते हैं, कि पाल राजाओंकी के लिये प्रार्थना करते थे। उस बड़े कड़ाहेमें एक सौ खोदित लिपिमें भी 'मुद्गगिरि-का उल्लेख देखने में माता मन सोना अटता था। दाता कर्ण प्रति दिन सबेरे है। घे यह भी कहते हैं, कि पहले यहाँ 'मन्' वा 'मुण्ड' ब्राह्मण और दरिद्रोंके वीच वह रत्न बांट देते थे।" नामक अनार्य जाति रहती थी, इसी सूत्रसे इस स्थानका | ' राजा कर्ण किस प्रकार प्रति दिन सी मन सोना नाम मुडर हुआ है। . दान करते हैं, यह जाननेके लिये राजा विक्रम छायेशमें मुर नगर दो भागों में विभक्त है। एक भागमें कर्णके यहां आये और नौकरी करने लगे। राजा कर्णने 'दुर्ग और दूसरे में नगर वसा हुआ है। विचारालय, उन्हें फूल तोड़ने और पूजाका सामान जुटाने में नियुक्त पुलिस, 'डाकघर और बहुतसे सरकारी कार्यालय किया। थोड़े हो समयमें विक्रमको कर्णका पूजा-रहस्य 'दुर्गमे हैं । दुर्ग देखने में बहुत सुरम्य और सुरक्षित ! 'मालूम हो गया। एक दिन रातको छावेशी विक्रम