पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/९९

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पहम्मद गोरी ( घोरो) एक सालज पोर उन्हें अपने कन्धे पर चढ़ा कर भीषण। सेना क्षण मर भी टहर नहीं सकतो तब चे निराश हो युद्ध क्षेवसे ले भागा जिससे उनकी जान बच गई। : अपनी राजधानी लौटे। इधर सुल्तान मी मगरनार मा ___ मुसलमानी सेना रणस्थलम सुलतानको न देख धमके, पर विजय प्राप्त न कर सके। मगर निवासियोंने ‘प्याकुल हो गई। पीछे रणस्थलमें पीट दिग्ना कर जब ये जाइन नदीसे एक नहर पूर्व की ओर काट निकाली थी। माग रही थी, तो राहमें उस पोर युवकके कंधे पर। इसोसे घोरफे अनेक समोर पकड़े गौर मारे गये। इयर मुलतानको देख उन्हें जानमें जान आई । मुलतान । रसद भी घट गई थी जिससे सुलतानको लाचारपत ससैन्य गजनी लौटे। इसका यदला चुकानेके लिये । पालम लौट जाना पड़ा । मान्दनुदमें पहुंच कर जय । सुल्तानने फिर भी दूसरे वर्ष भारतवर्ष में प्रवेश किया। सुल्तान नामको नमाज पढ़ रहे थे इसी समय नुफिन्तान. इस वार इनपो साथ एक लामा योस हजार मुसलमान के अमोर उन पर यकायक टूट पड़े किन्तु मुलतानकी गुढ़सयार थे। यहां आने पर जम्बूराज नृसिंहदेव और सेनापतिने बड़ी योरतासे गवुओंको मार मगाया । सेना. जयपाल भी इनके साथ मिल गये। सुल्तानने तमरहिन्द, पतिने उनका पीछा भी करना चाहा था, पर सुलतानने "दुर्ग जीत कर तिरीरोमें छायती झाली । तिरीरी रण- यह कहते ही मना कर दिया, कि भगवान्की इमा · क्षेत्रमें घमसान लड़ाई छिड़ो। इस लड़ाई में हिन्दुओंके । अवश्य पूरी होगी। में विधर्मियोंके सम्मुणा जाऊंगा और भाग्यने फिस प्रकार पलटा खाया, पह पृथ्वीराज शध्दमें ' धर्मराजा अवश्य स्थान करूगा । सेनापति तदनुसार

सविस्तार लिया जा चुका है। यहां पुनरल्लेया नियो. सदलयल जवानकी ओर चल दिये । पथश्रमसे

' भारान्त तथा दुर्यल पान सो सेनाने मुलतानको छोड़ .पृथ्वीराजकी पराजयफे याद अजमेर, हांसी, सरस्वती कर चली गई। दूसरे दिन जो कुछ बच गई, उसे दो

मादि समन शिवालिक प्रदेश सुल्तानके हाथ लगे।। ले कर मुलतानने अपनी राह ली । इस समय बहुत

कुतुबहिन ऐयफको उन स्थानोंका शासक बना कर सी विधी सेगानें था कर पुलतानको घेर लिया। .सुल्तान गजनी लौटे । पुनुयकी चेटासे थोड़े दो दिनोंम अथ सुलतानफै फोतदासाने उनसे कदा, किम लोगों के कन्नौज, वालियर, याराणसी, पदाऊ', अनदलवाद आदि पास यहुन थोड़ी-सी सेना रह गई, इस कारण युद्ध स्थानोंमे गजनीपतिकी अधीनता सोफार की थी। क्षेत्रसे भाग जाना ही हम लोगों को प्रा दोगा।

अनन्तर धूर या घोरपति गयासुद्दीन महम्मदका परन्तु मुलतानने उनको बात पर ध्यान नही दिया ।

.होरटमें देहान्त हुमा। इस समय मुन दोन ग्युरासनको विधमों मुगलसेनाफे सामने मुट्ठी भर मुसलमानोसेना ..मात सीमामें तुस और सराफे निकट रहते थे। बई। कय तक उपर मरती थी, एफ पक कर यमपुर जाने भाका मुत्यु-संवाद पाकर यह फौरन यहसि हीररको लगी। मुलतान भी मगल सैनाके सोनाराघातप्ते चल दिये । अन्त्येटिमिया करमेफे याद उन्होंने अपने जर्जर हो गफै। इस समय तुर्फ एलदास मगर इन्द . पधेरे भाई गयासुद्दीन मालमतको फरा, इसफिजार भान्नद दुर्गमें उडान ले जाते तोमवार इनकी जान प्रदेश और यस्ता नगर तथा मुल्तान गयासुद्दीन के जमाई पचन न पाती। मालिक गिया दोनको घोर, गारसिरप्रदेश, फिरोजक- दूसरे दिन अमरकन्दप गुलतान मोसमान और का सिंहासन तथा दापरराज्य एयम् अपने मांजे मालिक तुर्किस्तानफे 'मालिकगण इनकी सदायमा मापे । मासिण्डीनको दीरट प्रदेश मर्पण किया। इसके बाद | पिमियोंने उपरोन सहापोंको देख कर घरको राद . इन्दनि पोरफे फुछ समोर और मालिकको ले कर दिजरी ली। मुलतान मी गजनोमो सौटे। विताना .६० में पारिजा प्रदेशकी मोर युदयात्रा कर दी । कर जिसमें सीन वर्ष युद्ध चला म उसका भायो. पारिजम् पतिने मनुफी गतिको रोकना चाहा लेकिन जब जन करने लगे। .उन्होंने देणा सुल्तानकी प्रचएट सेनाके सामने उनको इस समय कुछ समोर नया सादर भीर