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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


पड़कर उनका समझोता करा देने की आवश्यकता है। बूढ़े मनुष्य अपने अपमान को सहसा भूलते नहीं हैं और समय पड़ने पर बहुधा उसका बदला लेने का प्रयत्न करते हैं, इसलिए बूढ़े मनुष्यों को अपने समवयस्क सज्जन के साथ भलमनसाहत का व्यवहार करना चाहिये । यथार्थ में दो बूढे लोगो का आपस में कुछ कहना सुनना निन्दनीय विषय है।

( ३ ) छोटों के प्रति

छोटी अवस्था वालो के प्रति बड़ों का व्यवहार सहानुभूति पूर्ण होना चाहिये । जब तक छोटे, परन्तु समझदार लोग जान बूझकर कोई अपराध न करें तबतक बड़ो को उन्हें शान्ति पूर्वक क्षमाकर देना चाहिए । बिना किसी विशेष कारण के बड़े लोगो को छोटों के प्रति क्रोध अथवा तिरस्कार प्रगट करना उचित नहीं है। छोटो के कार्यों में बड़ो को सदैव सहायता देने के लिए तैयार रहना चाहिये।

छोटों के प्रणाम का उत्तर प्रेम-पूर्वक और उचित रीति से दिया जावे । छोटी उमर-वाले प्रार्थना अथवा परामर्श के रूप में जो कुछ कहना चाह उसे उदारता-पूर्वक सुनना उचित है। यदि छोटे लोग किसी कुसंग में पड़े हो अथवा किसी कुकर्म में प्रवृत हों तो बड़ो का यह काम है कि वे लोग उन्हें बिगड़ने से बचाने का उपाय करें। ऐसे लोगो को एकान्त मे परामर्श देना उचित है।

नव-युवक बहुधा बात-चीत, पोशाक और चाल-ढाल में कुछ वनावट प्रकट करते हैं। कुछ सीमा तक यह प्रवृत्ति उचित है, परन्तु अधिक होने पर उसे रोकने की आवश्यकता है । जिस समय छोटी उमर-वाले किसी आवेश में आकर कुछ अनुचित बातचीत करने लगें उस समय उनको किसी न किसी प्रकार से शान्त करना आवश्यक है और फिर किसी दूसरे समय उनसे अनुचित बात-चीत के सम्बन्ध में थोड़ा-बहुत असंतोष प्रकट करना चाहिये।