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छठा अध्याय

वैद्यो या डाक्टरों को रोगी के साथ बहुत ही शिष्ट व्यवहार करना चाहिये, क्योंकि उस पर उनकी प्रत्येक बात का बड़ा असर पड़ता है। कई और अनिश्चित दाम लेनेवाले वैद्य के भाषी बिल के स्मरण मात्र से ही साधारण स्थिति के रोगी का रोग दिन में कई चार बढ़ जाता है। इस पर उसकी उतावली ओर धमकियांँ तो प्रलय उत्पन्न कर देती हैं। केवल धन खींचने की आशा से औषधि की योजना करना और एक पैसे की पुड़िया के लिए चार आने का बिल देना मनुष्यत्व के विपरीत है।

रोगी को आश्वासन देना, सच्चे मन से उसकी चिकिसा करना और आवश्यकता के समय उसकी दशा स्वयं देखना सभ्य वैद्य का कर्त्तव्य हे। कई वैध और डाक्टर तो ऐसे हैं कि वे अपने ही किसी मरते हुए रोगी को बिना फीस के नही देखते और मरे हुए रोगी को भी देखने की फीस ले लेते हैं । रोगी से पर-वशता के कारण कई भूलें हो जाती हैं, इसलिये क्रोध में आकर उसे मझधार में छोड़ देना सभ्य वैद्य के लिए उचित नहीं है । अनेक रोगियो की मृत्यु पीड़ा देखने से वैद्यो का हृदय बहुत कुछ कठोर हो जाता है। इसलिए उन्हें उसमे कुछ दया का सचार करना चाहिए ।

(५) मित्रों के प्रति

मित्रता धीमी बाढ़ का पौधा है, इसलिये उसका पालन करने में बड़ी सावधानी की आवश्यकता है । यद्यपि सभी मित्रता में शिष्टाचार के प्रभाव से बहुधा कोई नहीं पड़ता और उसके उपयोग से रूखापन समझा जाता है, तथापि सभ्यता की पराकाष्ठा से उतनी हानि नहीं है जितनी असभ्यता की छाया-मात्र से है। आज-कल विशेष परिचयवाले सज्जन भी मित्र कहलाते हैं,इसलिये साधारण रीति से सभी प्रकार के मित्रों के साथ उचित शिष्टाचार के पालन की अवश्यकता है । यद्यपि गहरी मित्रता