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छठा अध्याय


“बहुत दया आती है और मैं बहुत चाहता हूं कि तुम्हें इस दण्ड से मुक्त कर दूँ। परन्तु खेद है, मैं न्याय के कारण विवश होकर तुम्हें यह सब से कठिन दण्ड देता हूँ", तो उस न्यायाधीश के प्रति मरते-मरते भी अपराधी के मन में अच्छा भाव रहेगा।

अशिष्टता के सब से बुरे उदाहरण अधिकांश में मूर्ख पुलिसवाले प्रकट करते हैं। इन लोगों की दृष्टि में किसी से सभ्यता पूर्वक बात करना कदाचित् अपना रुप खो देना है । ये लोग बहुधा सीधे बात करना जानते ही नहीं और अपराध स्वीकार कराने में तो भावी अपराधी का कभी-कभी प्राणान्त कष्ट दे डालते हैं। पुलिसवालों के लड़के-बच्चे तक अपने पिताओं की प्रवृत्ति का अनुकरण कर बहुधा दूसरे लड़को पर अपना अधिकार जमाना चाहते हैं । पुलिसवालो की अनुचित प्रवृति और असभ्य व्यवहार के कारण लोग बहुधा इनके पड़ोस में रहना पसंद नहीं करते । यद्यपि हिन्दुस्थान की पुलिस की इतनी निन्दा होती है तो भी इँग्लेण्ड की पुलिस के विषय में केवल प्रशंसा ही सुनी जाती है। हिन्दुस्थान में भी अनेक पुलिसवाले बड़े ही सभ्य देखे और सुने गये हैं पर ऐसे लोग अपने विभाग में बहुधा सफल नहीं समझे जाते।

प्राथियो के प्रति अशिष्टाचार प्राय ऐसे स्थानों में भी देखा जाता है जहाँ इसके लिए कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखाई देता। यदि कोई नौकर किसी महाजन के यहांँ जाकर नौकरी के लिए प्रार्थना करता है तो महाजन उस नौकर को कभी-कभी धुतकार देता है। यदि कोई किसी से उपयोग के लिए कोई वस्तु मांँगता है तो उस वस्तु का स्वामी बहुधा उद्दण्डता पूर्वक यह उत्तर देता है कि “यह चीज यहाँ कहाँ रखी है।"