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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


दफ्तरों के कई एक बड़े बाबू तो अपने पद का इतना गर्व करते हैं कि ये उम्मेदवारों को अपने कमरे के भीतर ही नहीं आने देते अथवा उनकी एक भी बात का निश्चित उत्तर नहीं देते। कई लोग प्रार्थियों को बार-बार भटकाते हैं और अन्त में उनकी प्रार्थना को निर्दयता पूर्वक अस्वीकृत कर देते हैं। सभ्यता-पूर्वक सूचित की हुई अस्वीकृति प्रार्थियों को उतना कष्ट नहीं पहुँचाती जितना अधि- कारियो की अहमन्यता और असभ्यता।

कई एक वकीलो की यह रीति है कि वे बहुधा आसामियो से रुपया तो भर पूर ले लेते हैं, पर मुकदमे को तैयारी नहीं करते और पेशी पर हाजिर नहीं होते। यदि मुवकिल उनसे कुछ कहता है तो ये बहुत गरम होते हैं और मुकदमा छोड़ देने की धमकी दे देते हैं । बेचारा आसामी यह अत्याचार उन लोगों के हाथो सहता है जो देश के नेता बनने का दम भरते हैं । गोसाई जी ने ठीक कहा है कि “पर उपदेश कुशल बहुतेरे"।

(१२) सम्पादकीय

सम्पादकीय शिष्टाचार में सम्पादक, लेखक, प्रकाशक और पाठको का परस्पर शिष्ट व्यवहार सम्मलित है । प्रकाशक को पत्र की छपाई पुराने पिसे टाइपो से न करानी चाहिये और यदि पत्र का मूल्य महंगा हो तो उसे अच्छे कागज पर छपाना चाहिये। पत्र में अश्लील विज्ञापन न छापे जायँ ओर जहाँ तक हो ध्रूतौं के विज्ञापन प्रकाशित न किये जायँ । सम्पादको को ऐसे लेख न छापना चाहिये जिनमे किसी एक रस को पराकाष्टा हो । उसे प्राय सभी रसो के उचित परिमाण वाले लेख छापना उचित है । मासिक पत्रों में पद्य का भी उचित समावेश होवे ।

किसी पुस्तक की समालोचना करते समय पुस्तक ही की समालोचना करना उचित है, उसके लेखक के विषय में व्यक्तिगत