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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


विक लज्जा पर बुरा प्रभाव पड़े। नाटको में रंग मञ्च पर मृत्यु अथवा श्रृंगार-रस की पराकाष्ठा न दिखाई जावे और न करुणा-रस की अधिकता से दर्शको के चित्त में अत्यत व्याकुलता उत्पन्न की जावे।

सड़को पर या गलियों में अश्लील गीत गाते हुए निकलना असभ्यता है । जुलूस के अवसर को छोड़कर किसी दूसरे समय में अकेले व्यक्ति अथवा कुछ लोगो के समूह के लिए सड़क पर या गलियों में गाते हुए चलना अनुचित है। फकीर अथवा साधु लोग सड़को और गलियों में गाते हुए निकलते हैं, पर उनके पक्ष में ऐसा करना अशिष्ट नहीं समझा जाता । बस्ती के रास्तो में जोर-जोर से बातें करते हुए निकलना भी अनुचित है । कई एक महात्मा नग्न वस्था में स्त्री-पुरुषो को भीड़ के साथ सडको पर फिरते हैं। इन महात्माओ को ब्रह्म-ज्ञान के साथ-साथ कुछ शिष्टाचार-ज्ञान भी होना आवश्यक है। प्रत्येक मनुष्य को सड़क पर अपने बायें हाथ की ओर चलना चाहिये जिससे सवारियो और दूसरे लोगों को आने -जाने में सुभीता हो । व्याख्याताओ को अथवा उत्सव मनाने वालों को अपना काम सड़क के ऐसे भाग में न करना चाहिये जहाँ लोगो का आवागमन होता है

ऐसे कार्यालयों में जहाँ कई लोगो का काम रहता है, लोगो को समय के क्रम से अपना काम कराना चाहिये । कार्यालय के कर्म- चारी को भी उचित है कि वह पहले आये हुए व्यक्ति का कार्य पहले करे, चाहे वह किसी भी स्थिति का क्यो न हो। शिष्टाचार का पालन न करने से बहुधा अदालतो, डाकघरो और स्टेशनो में अपना-अपना काम शीघ्र निकालने की इन्छा के कारण पढ़े-लिखे लोगो में भी परस्पर धक्का-मुक्की हो जाती है। कभी-कभी बल वान और प्रतिष्ठित लोग दुसरो की आवश्यकता पर कुछ भी ध्यान