सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/१५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१३३
छठा अध्याय


न देकर अपना काम पहले कराने के लिए सब प्रकार के उचित और अनुचित उपाय करते हैं। हम लोगों में स्वार्थ-साधन की उत्सुकता और दूसरे के सुभीते की अवहेलना इतनी प्रबल है कि कभी कभी बलवान या धनवान लोग रेल गडिया में आराम से लेटे रहते हैं और निर्बल,बालक,वृद्ध और स्त्रीयाँ उनके सामने घटों खड़ी रहती हैं।

जिन मार्गों से मनुष्यों का आवागमन अधिकता से होता है उनमे से पशुओं को निकालना अथवा गाडियो या घोडों का बड़े वेग से दोड़ाना उचित नहीं। सड़क के किनारे रहने-वालो को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वे अपने छोटे-छोटे बच्चो को सड़क पर खेलने या फिरने न देवें, क्योंकि ऐसा करने से दुर्घटनाओं की सम्भावना रहती है। कई एक गाड़ीवान इतने मूर्ख होते हैं कि वे परिणाम का कुछ भी ध्यान न कर अपनी गाड़ी को दूसरे की गाड़ी आगे निकालने के लिए उसे किसी भी तरफ बड़े जोर से चलाते हैं। ये लोग बहुधा अशिक्षित होने के कारण पैदल लोगों को एक तरफ हटने के लिए सूचना देने में सभ्यता पूर्वक बोलना ही नहीं जानते।

( १४ ) बाल-शिष्टाचार

लड़को में बहुधा आपसी झगड़े हो जाते हैं, जिनका एक मुख्य कारण उन लोगों में शिष्टाचार को शिक्षा का साधारण अभाव है। यद्यपि पाठ-शालाओं में शिष्टाचार को थोड़ी-बहुत शिक्षा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से दी जाती है तथापि विद्यार्थी अपनी अवस्था के प्रभाव में पड़कर बहुधा व्यवहार में उस शिक्षा को भूल जाते हैं। कई विद्वानों का ऐसा मत है कि लड़को को शिष्टाचार की शिक्षा देना मानो उन्हें बंधन में डालना है, पर अनुभव से इस बात की