नवीनता का समावेश करना अनुचित है। किसी जाति में प्रचलित
विशेष प्रकार के पात्रों का उपयोग करना भी अशिष्ट समझा जाता
है। यद्यपि मुसलमानो के टोटीदार लोटे के समान पात्र से जल
पीने में अधिक सुभीता है, तथापि हिदुस्थानियों के लिए ऐसे
पात्र का उपयोग करना उपहास का कारण और अशिष्टता का
चिन्ह होगा। हम लोग देखते हैं कि मुसलमान लोग अपने पूर्वजो
को चाल-ढाल की रक्षा करने में ऐसी रहन-सहन का उपयोग
करते हैं जो हिन्दुओ की दृष्टि से विरुद्ध समझी जाती है ।
उदाहरणार्थ हम लोग कुहना से शुरू करके पंजो तक हाथ
धोते हैं, परन्तु मुसलमान लोग इसके विपरीत पंजो से आरंभ
करके कुहनो तक हाथ धोने की रीति पालते हैं। इन क्रिया में
स्वयं कोई विशेषता नहीं है, वरन मुसलमानो का रीति मे वहुधा पहिने हुए कपड़े भींग जाते हैं, तो भी एक जाति दुसरी जाति को हाथ धोने की रीति को केवल इसीलिये अनुचित समझती है कि वह विदेशी रीति है।
इसी प्रकार उठने बेठने, चलने फिरने अभिवादन करने और मिलने जुलने की रीति में एक जाति दूसरी जाति से बहुधा भिन्न होती है और जो लोग जानकर अथवा अनजाने भी दूसरी जाति के चाल व्यवहार का व्यर्थ अनुकरण करते हैं वे सभ्यता की श्रेणी में बहुत नीचा स्थान प्राप्त करते हैं ।
( २ ) विदेशी-भाषा
लोगो के मन पर विदेशी-भाषा का बड़ा प्रभाव पड़ता है जो
कभी लाभदायक और कभी हानिकारक होता है। जब विदेशी-
भाषा के प्रभाव में पडकर लोग उसे ज्ञान की प्राप्ति और सत्य की खोज के लिए पढ़ते हैं तब यह प्रभाव लाभकारी होता है, परन्तु