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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


किया जाता था और पितरो तथा अतिथियों को अन्न का भाग न दिया जाता था । रसेईि करने-वाला पवित्रता न रखता था और तैयार किया हुआ भोजन भली भांति ढांक-मूँद कर न रखा जाता था। वे लोग खाने के पदार्थों को प्राय खा जाते थे, बच्चों तथा नौकरो को उनका हिस्सा न देते थे। इस प्रकार का ओर भी बहुत वर्णन पूवोक्ति ग्रंथ में पाया जाता है जिसमें सूचित होता है कि महाभारत-काल में सभ्य व्यवहार की बारीक बातो पर भी बहुत ध्यान दिया जाता था।

रामायण-काल में जिस प्रकार रामचन्द्र आदर्श पुरुष हो गये हैं उसी प्रकार महाभारत काल में श्रीकृष्ण आदर्श-पुरुष थे। आप में दैवी और मानवी दोनो प्रकार के गुण थे। बाल-सखाओ के प्रति आप का अनुराग जैसा प्रसिद्ध है वैसा ही आप का किया हुआ भारतीय युद्ध का सगठन लोक विख्यात है।

(४) स्मृति-काल में

स्मृति-काल में जो अनुमान से विक्रम-संवत् के आरभ के आसपास माना जाता है, शिष्टाचार विषयक विवेचन अधिकता से किया हुआ पाया जाता है, क्योकि इस काल में कई धर्म शास्त्रों और स्मृतियो की रचना हुई थी। इन पुस्तकों मे विशेष-कर धार्मिक जीवन से सम्बन्ध रखने वाले नियम पाये जाते हैं, परतु यत्र-तत्र इनमें शिष्टाचार-सम्बन्धी वातें भी मिलती हैं। स्मृतियाँ कई ऋषियों ने लिखी हैं जिनमे मनु-स्मृति सब से अधिक प्रसिद्ध है। भिन्न-भिन्न स्मृतियो में शिष्टाचार-सम्बन्धी जो नियम मिलते हैं उनमे में कुछ सक्षेष्त यहाँ लिखे जाते हैं—

(१) बुराई करने पर भी गुरु के सामने न बोलें और गुरु के धमकाने पर भी कहीं चला न जाना चाहिये।