पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/२७

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दूसरा अध्याय

(२) कभी किसी की बुराई न करनी चाहिये, भूठ कभी न बोलना चाहिये और दिये हुए दान की प्रसिद्धि कभी न करनी चाहिये।

(३) लोगो को वही चीजें खिलानी चाहिये जिनको विद्वान पसंद करें और जो शीघ्र पचने वाली हो।

(४) शरीर के अंग तथा नाखून बजाना नहीं चाहिए, दांँतों से नाखून काटना बुरा है। अंगुली से पानी पीना बुरा है। पांँव या हाथ से जल का पोटना या ताडना न चाहिए।

(५) बेठने के लिए आसन, ठहरने के लिए जगह, पीने के लिए पानी और मीठी बातें, ये चार चोजें भले आदमियों के यहाँ सदा बनी रहती हैं, कभी कम नहीं होतीं।

(६) अंगहीन या अधिक अंगवाले, मुख, बूढ़े, कुरूप, निर्धन और जाति से हीन पुरुषों को कभी ताना न दे।

(७) सूने मकान म अकेला न सोवे,अपने से बड़े को सोते से न जगावे।

(५) पौराणिक काल में

पौराणिक काल अनुमानतः सन् ३०० ईसवी से सन् २००० ई० तक माना जाता है। इस काल मे बोद्ध-धर्म का पराभव करने के लिए हिन्दू धर्म की जागृति हुई और कई धर्म ग्रंथ लिखे गये जिनमें १८ पुराण प्रसिद्ध हैं। पुराणों में विशेषत देवताओ की कथाएँ हैं। पर इनमें अनेक सदाचार सम्म को नियम और उपदेश भी पाये जाते हैं। अष्टादश पुराण। में विष्णु पुराण अधिक प्रसिद्ध है। इसमे सदाचार और शिष्टाचार सम्बन्धी जो नियम पाये जाते हैं उनमें से कुछ ये हैं—