समाज के प्रति अवसर पड़ने पर उस समाज का शिष्टाचार-पालन भी सामाजिक शिष्टाचार का एक अंग है। परन्तु इस पुस्तक में उस शिष्टाचार का विचार न किया जायगा, क्योंकि उसके अनेक भेद हो सकते हैं और प्रत्येक भेद के लिए एक अलग पुस्तक की आवश्यकता है । इस ग्रन्थ का उद्देश्य तो केवल आधुनिक हिन्दुस्थानी समाज के शिष्टाचार का वर्णन करना है। ‘समाज' शब्द भी बहुत व्यापक है और अभी तक उसकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं बनाई गई, अतएव इस पुस्तक में समाज उन व्यक्तियों का समूह माना गया है जो विशेष काल वा स्थान से सम्बन्ध रखते हैं और जिनके रीति रिवाज,सभ्यता और नैतिक तथा पादार्थिक अवस्था में बहुत कुछ सादृश्य रहता है। हिन्दुस्थानी समाज उस समाज का नाम
है जो अधिकाश में मध्य-देश* का निवासी ओर हिन्दी भाषा-भाषी
है । आधुनिक शब्द से गत और प्रचलित शताब्दी की लगभग उतनी अवधि का अभिप्राय है जिसके भीतर हमारे समाज की “भाषा, भोजन, भेष, भाव और भावी” में समधि-रूप से विशेष परिवर्तन नहीं हुआ और न होगा । समाज के पूर्वोक्ति चिह्नों में किसी समय विशेष हेरफेर भी हो जाय, तो भी व्यक्तियों के सम्बन्ध से उनमें सादृश्य रहता ही है । यदि ऐसा न होता तो यह जानना कठिन हो जाता कि कौन व्यक्ति किस समाज का है। आधुनिक हिंदुस्थानी शिष्टाचार के वर्णन में प्राय उन्हीं सब रीति रिवाजो का वर्णन रहेगा जिनसे अधिकाश में हिन्दुस्थानी समाज की पहचान होती है।
- प्राचीन काल के मध्य देश को आज-कल हिन्दुस्थान कहते हैं जो 'दक्षिण' का विरोधार्थी है । इस देश के निवासी हिन्दुस्थानी
कहलाते है जिनकी भाषा हिन्दी (वा हिन्दुस्थानी ) है और धर्म वैदिक है ।।